वर्षा ऋतु (मध्य प्रदेश) | Varsha Ritu (Madhya Pradesh)

वर्षा ऋतु (मध्य प्रदेश)

मध्य प्रदेश में दक्षिण-पश्चिम मानसून का आगमन सामान्यतः मध्य जून तक होता है। राज्य के दक्षिणी एवं पूर्वी भागों में सामान्यतः 12 जून तक वर्षा आरम्भ हो जाती है।
varsha-ritu-madhya-pradesh
राज्य में वर्षा दक्षिण-पश्चिम मानसून की दोनों शाखाओं-अरब सागर एवं बंगाल की खाड़ी द्वारा होती है।
राज्य के पूर्वी तथा दक्षिण-पूर्वी क्षेत्रों में अधिकांश वर्षा बंगाल की खाड़ी की शाखा से, जबकि उत्तर-पश्चिम एवं मध्यवर्ती क्षेत्रों में दोनों शाखाओं (अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी) द्वारा वर्षा प्राप्त होती है।

  • मध्य प्रदेश में दक्षिण-पश्चिम मानसून (बंगाल की खाड़ी) द्वारा सबसे अधिक वर्षा प्राप्त होती है। राज्य के अन्य क्षेत्रों में भी बंगाल की खाड़ी शाखा से वर्षा होती है, किन्तु समुद्र तट से दूरी बढ़ने के साथ-साथ वर्षा की मात्रा कम हो जाती है।
  • अरब सागर मानसून की मुम्बई शाखा जब मध्य प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्रों में पहुँचती है तो मुम्बई के पहाड़ी क्षेत्रों से उतरते समय घर्षण के कारण इसका तापमान बढ़ जाता है, जिससे आर्द्रता में कमी होती है। परिणामस्वरूप मध्य प्रदेश के पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में वर्षा की मात्रा कम हो जाती है।
  • अरब सागर की केरल शाखा एवं बंगाल की खाड़ी की शाखा से मध्य प्रदेश की दक्षिण-पूर्व में स्थित ऊँची पहाड़ियों से टकराने के कारण इन क्षेत्रों में सबसे अधिक वर्षा होती है।

राज्य में पठारी और मैदानी भागों के उच्चावच (Relief) में अत्यधिक भिन्नता के कारण वर्षा की मात्रा में भी क्षेत्रीय भिन्नता पायी जाती है। यहाँ सबसे पहले वर्षा दक्षिण-पूर्वी क्षेत्रों में प्रारम्भ होती है, तत्पश्चात् उत्तर-पूर्व, मध्यवर्ती तथा पश्चिमी भागों में होती है।

मध्य प्रदेश में पूर्व से पश्चिम एवं दक्षिण से उत्तर की ओर वर्षा की मात्रा क्रमशः घटती जाती है। यहाँ सबसे अधिक वर्षा, जुलाई एवं अगस्त माह में होती है।

दक्षिण-पश्चिम मानसून के आगमन का मुख्य कारण जेट स्ट्रीम का हिमालय के दक्षिणी ढालों से उत्तर की ओर स्थानान्तरित हो जाना है।

मध्य प्रदेश में वर्षा का वार्षिक वितरण

राज्य के बैतूल, छिंदवाड़ा, सिवनी औसत बालाघाट, मंडला, डिंडोरी तथा अनूपपुर जिलों में वार्षिक वर्षा 125 से 150 सेमी. के मध्य होती है।
राज्य के मध्यवर्ती तथा उत्तर-पूर्वी भागों में स्थित भोपाल, रायसेन, विदिशा, सागर, सीधी, छतरपुर, दमोह जिलों में औसत वार्षिक वर्षा 75 से 100 सेमी. के मध्य होती है।
राज्य के उत्तर-पश्चिम में स्थित दतिया, शिवपुरी. मुरैना, भिण्ड, इंदौर, उज्जैन, रतलाम, धार अलीराजपुर, सीहोर तथा शाजापुर आदि जिलों में औसत वार्षिक वर्षा 75 सेमी से कम होती है।

मानसून का आगमन

  • मई माह में उत्तर-पश्चिमी भारत के मरुस्थलीय क्षेत्रों का तापमान अधिक तेजी से बढ़ने के कारण वहाँ निम्न वायु दाब का क्षेत्र विकसित होने लगता है तथा जून के प्रारंभ में यह निम्न वायुदाब क्षेत्र इतना शक्तिशाली हो जाता है कि, वह हिन्द महासागर से आने वाली दक्षिणी गोलार्द्ध (Southern Hemisphere) की व्यापारिक पवनों (Trade Winds) को आकर्षित कर लेता है। दक्षिणी-पूर्वी व्यापारिक पवनें, विषुवत रेखा को पार करके अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में प्रवेश कर जाती हैं, जहाँ ये भारत के ऊपर विद्यमान वायु परिसंचरण तंत्र में मिल जाती हैं।
  • भूमध्यरेखीय गर्म समुद्री धाराओं के ऊपर से प्रवाहित होने के कारण ये पवनें अपने साथ पर्याप्त मात्रा में आर्द्रता लाती हैं। भूमध्य रेखा को पार करने के पश्चात् इनकी दिशा दक्षिणी-पश्चिमी हो जाती है। इसी कारण इन्हें दक्षिण-पश्चिम मानसून कहते हैं।
  • दक्षिण-पश्चिम मानसून में वर्षा का आरम्भ अचानक तीव्र मेघ गर्जन और विद्युत चमक के साथ होता है, जिसे मानसून का प्रस्फोट (Burst of Monsoon) कहते हैं।

दक्षिण-पश्चिम मानसून का प्रभाव मध्य प्रदेश में मध्य अक्टूबर तक रहता है। इसलिए राज्य में मध्य जून से मध्य अक्टूबर का काल वर्षा ऋतु या दक्षिण-पश्चिम मानसून का काल कहलाता है।
जुलाई में मध्य प्रदेश का औसत तापमान 30° सेल्सियस तक रहता है जिसके कारण यहाँ निम्न वायुदाब की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। परिणाम स्वरूप बंगाल की खाड़ी में आने वाले तूफान या चक्रवातों का निरन्तर आगमन होने लगता है।

मध्य प्रदेश में सबसे अधिक वर्षा पचमढ़ी (होशंगाबाद) में  215 सेमी. तथा सबसे कम वर्षा गोहद (भिण्ड) में 55 सेमी होती है।

मध्य प्रदेश में दक्षिण-पश्चिम मानसून से लगभग 85 प्रतिशत तक वर्षा होती है। 15 अक्टूबर के बाद दक्षिण-पश्चिम मानूसन लौटने लगता है, जिसे मानसून का निवर्तन (Retreat of Monsoon) कहते हैं।

Post a Comment

Post a Comment (0)

Previous Post Next Post