नर्मदा-सोन घाटी एवं दक्षिणी-पूर्वी क्षेत्र
नर्मदा-सोन घाटी क्षेत्र में मानसून की दोनों शाखाओं से वर्षा होती है। ग्रीष्म ऋतु में तापमान और आर्द्रता की अधिकता से उमस भरी गर्मी पड़ती है, जिससे मौसम कष्टदायी हो जाता है। इसके पूर्वी क्षेत्रों में बंगाल की खाड़ी का मानसून और चक्रवातीय वर्षा का योगदान होता है। परिणामस्वरूप नर्मदा-सोन घाटी के पूर्वी क्षेत्रों में वर्षा अधिक होती है।
मध्य प्रदेश के दक्षिण-पूर्व भागों में सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला की औसत ऊँचाई लगभग 800 मी. है। इस पर्वत श्रेणी में महादेव एवं मैकाल श्रेणियाँ स्थित हैं, महादेव श्रेणी की औसत ऊँचाई 1200 मी. है। सतपुड़ा के पूर्वी भाग में अमरकंटक पठार और बघेलखण्ड पठार अवस्थित हैं।
- इस क्षेत्र में शीत ऋतु सामान्यतः शुष्क होती है तथा ग्रीष्म ऋतु में तापमान 40° सेल्सियस से अधिक नहीं होता है जबकि रात का तापमान लगभग 25° सेल्सियस तक होता है। फलस्वरूप इस क्षेत्र का मौसम सुहावना रहता है। इस क्षेत्र में सप्ताह में दो से तीन बार में वर्षा होती है।
- मानसून की दोनों शाखाओं (अरब सागर की शाखा एवं बंगाल की खाड़ी की शाखा) जब इस क्षेत्र में स्थित ऊँची पहाड़ियों से टकराती हैं, तो यहाँ पर अत्यधिक वर्षा होती है।
- मध्य प्रदेश के दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र में बंगाल की खाड़ी से आने वाले चक्रवातों से वर्षा होती है। इस क्षेत्र में वार्षिक वर्षा 125 से 150 सेमी. तक होती है। इस क्षेत्र में गर्मी और सर्दी सामान्यतः कम होती हैं। होशंगाबाद जिलें में पचमढ़ी स्थित है, जिसकी ऊँचाई 1350 मी. है। जहाँ वार्षिक वर्षा लगभग 215 सेमी. तक होती है।
मध्य प्रदेश में ग्रीष्म ऋतु को युनाला, वर्षा ऋतु को चौमासा तथा शीत ऋतु को सियाला कहते हैं। राज्य में भारत मौसम विभाग (IMD) का एकमात्र कार्यालय इन्दौर में स्थित है।
वर्ष 2013 में उज्जैन के डोंगला में मध्य प्रदेश की पहली अत्याधुनिक वेधशाला का निर्माण किया गया है, जिसका नामकरण खगोलशास्त्री आचार्य वराहमिहिर के नाम पर किया गया है।
वर्ष | सामान्य वर्षा | मानसून वर्षा | % वृद्धि/कमी |
---|---|---|---|
2019-20 | 1088 | 1351.1 | +44% |
2021-22 | 1088 | 991.7 | -8.9% |
वर्षा के क्षेत्रीय प्रारूप में राज्य के पश्चिमी और दक्षिणी क्षेत्रों के जिलों में सामान्य से अधिक वर्षा हुई। मध्य और पूर्वी मध्य प्रदेश के अधिकांश जिलों में सामान्य वर्षा हुई। जबकि उत्तरी मध्य प्रदेश के जिलों विशेषकर बुन्देलखण्ड क्षेत्र में वर्षा की कमी हुई।
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