मध्य प्रदेश की प्राकृतिक संरचना

मध्य प्रदेश की प्राकृतिक संरचना

इस लेख में हम मध्य प्रदेश की प्राकृतिक संरचना का विस्तृत अध्ययन करेंगे। मध्य प्रदेश अपनी भौगोलिक विविधता के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें ऊँचे पर्वत, विस्तृत पठार, गहरी घाटियाँ और महत्वपूर्ण नदियाँ शामिल हैं। राज्य की भौगोलिक विशेषताएँ इसके पारिस्थितिक तंत्र, जलवायु, कृषि और सांस्कृतिक विरासत को प्रभावित करती हैं।
इस लेख में आपको मध्य उच्च प्रदेश, सतपुड़ा-मैकाल श्रेणी और बघेलखण्ड के पठार के बारे में विस्तार से जानकारी मिलेगी। हम जानेंगे कि ये भौगोलिक क्षेत्र मध्य प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में कैसे फैले हुए हैं, उनकी ऊँचाई कितनी है, वहाँ की प्रमुख नदियाँ कौन-सी हैं, और ये क्षेत्र जैव विविधता व कृषि के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं।
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इसके अलावा, इस लेख में हम यह भी अध्ययन करेंगे कि मध्य प्रदेश की प्राकृतिक संरचना राज्य के आर्थिक, पर्यावरणीय और ऐतिहासिक विकास को कैसे प्रभावित करती है। इस लेख को पढ़ने के बाद, आप मध्य प्रदेश की भौगोलिक विशेषताओं को बेहतर ढंग से समझ पाएंगे और यह जान सकेंगे कि यह राज्य भौगोलिक रूप से कितना समृद्ध और अनूठा है।

मध्य प्रदेश की प्राकृतिक संरचना
  • मध्य उच्च प्रदेश
  • सतपुड़ा-मैकाल श्रेणी
  • बघेलखण्ड का पठार

मध्य उच्च प्रदेश

  • इस प्राकृतिक प्रदेश के निर्माण में आर्कियन, धारवाड़, विंध्यन तथा दक्कन ट्रैप की चट्टानों का योगदान है। ज्यामितीय दृष्टि से यह त्रिभुजाकार है। इसका विस्तार मध्य प्रदेश के दो तिहाई क्षेत्र में हुआ है।
  • इसका निर्माण विभिन्न काल क्रमों की चट्टानों के अनाच्छादन (Denudation), अपरदन (Erosion) एवं अवसादों के निक्षेपण (Deposition of Sediments) के परिणामस्वरूप हुआ है जिन क्षेत्रों में चट्टानों के रूपान्तरण की प्रक्रिया तीव्र थी तथा भूगर्भिक हलचलों का प्रभाव अधिक था, वहाँ चट्टानों की स्थलाकृतियों के उच्चावच में अधिक क्षेत्रीय भिन्नता पायी जाती है।
  • भू-गर्भिक हलचलों के फलस्वरूप पर्वत, पठार, कगार, भ्रंश आदि का निर्माण हुआ, इन्हीं कगारों एवं भ्रंशों में नदियों के प्रवाहित होने के कारण जलप्रपात तथा नदी घाटियों के क्षेत्रों में मैदानों का विकास हुआ है।
  • मध्य उच्च प्रदेश का विस्तार उत्तर में यमुना नदी के मैदानी क्षेत्र, पश्चिम में अरावली पर्वत श्रृंखला तथा दक्षिण में नर्मदा एवं सोन नदियों की घाटियों तक है।
  • इस क्षेत्र में स्थित विंध्याचल श्रेणी की अधिकतम ऊँचाई 752 मी. सम्भावित है। इस पर्वत श्रेणी से निकलने वाली प्रमुख नदियाँ बेतवा एवं चम्बल हैं।
  • नर्मदा तथा सोन नदियों के उत्तर में विंध्यन कगारी प्रदेश में भाण्डेर तथा कैमूर श्रेणियाँ स्थित हैं। पश्चिम से पूर्व की ओर जाने पर विन्ध्याचल श्रेणी की ऊँचाई घटती है, जो क्रमशः भाण्डेर में 725 मी. तथा कैमूर श्रेणी में 686 मी. है।
  • नर्मदा के उत्तर में स्थित पठारी भागों से निकलने वाली नदियाँ गंगा नदी में मिल जाती हैं। इसलिए मध्य उच्च प्रदेश को गंगा नदी बेसिन कहा जाता है।
मध्य उच्च प्रदेश को निम्नलिखित 5 उपप्रदेशों में विभाजित किया गया है-

मध्य उच्च प्रदेश
  • मालवा का पठार
  • मध्य भारत का पठार
  • बुन्देलखण्ड का पठार
  • रीवा-पन्ना का पठार
  • नर्मदा-सोन घाटी

मालवा का पठार

  • मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा पठार 22°17' से 25°08 ' उत्तरी अक्षांश तथा 73°17' से 79°4' पूर्वी देशांतर के मध्य स्थित है। यह लगभग 88,222 वर्ग किमी. क्षेत्रफल में विस्तृत है जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का 28.6 प्रतिशत है।
  • इस पठार के दक्षिण में नर्मदा नदी, दक्षिण-पश्चिम में गुजरात और उत्तर-पश्चिम में राजस्थान, उत्तर में मध्य भारत का पठार एवं बुन्देलखण्ड की उच्च भूमियाँ तथा पूर्व में विंध्यन पर्वत शृंखला स्थित है।
  • मालवा पठार की चट्टानें दक्कन ट्रैप का उत्तरी भाग हैं। इस पठार का निर्माण बेसाल्ट और ज्वालामुखी पदार्थों से हुआ है। इनके अपघटन और वियोजन से काली और गहरी भूरी कपास मृदा का निर्माण हुआ है।
  • इस पठारी क्षेत्र में दो अपवाह तंत्रों का विकास हुआ है- (i) चम्बल, सिन्ध तथा बेतवा आदि नदियाँ उत्तर की ओर प्रवाहित होती हुई यमुना नदी में मिल जाती हैं। (ii) माही, नर्मदा और ताप्ती नदियाँ पश्चिम की ओर प्रवाहित होती हुई अरब सागर में मिल जाती हैं।
  • मालवा पठार की औसत ऊँचाई 500 मी. है। इस क्षेत्र में स्थित पहाड़ियाँ सिगार चोटी (881 मी.) जनापाव (854 मी.), धाजारी (810 मी.) तथा गोमनपुर चोटी (510 मी.) प्रमुख हैं। मध्य प्रदेश की अधिकांश नदियों का उद्भव मालवा पठार से हुआ है, इसीलिए इस पठारी प्रदेश को नदियों का मायका कहा जाता है। दक्षिण से उत्तर की ओर इस पठारी प्रदेश की ऊँचाई घटती जाती है।
  • मालवा पठार का विस्तार राज्य के 18 जिलों में है- मंदसौर, राजगढ़, इन्दौर, उज्जैन, भोपाल, रतलाम, धार, झाबुआ, देवास, शाजापुर, सीहोर, अशोक नगर, विदिशा, रायसेन, सागर, अलीराजपुर, गुना तथा आगर-मालवा।
  • कर्क रेखा मालवा पठार के मध्य भाग से होकर गुजरती है। मालवा का पठार नर्मदा व चंबल के मध्य जल विभाजक का कार्य करता है।

मध्य भारत का पठार

मध्य भारत के पठार की अवस्थिति 24°10' से 26°48 उत्तरी अक्षांश तथा 74°50 से 79°10' पूर्वी देशान्तर के मध्य है।
मध्य भारत का पठार मध्य प्रदेश के उत्तर व उत्तर-पश्चिम में स्थित है। इसकी दक्षिणी सीमा पर मालवा का पठार, पश्चिम में राजस्थान, उत्तर में यमुना का मैदान, तथा पूर्व में बुन्देलखण्ड का पठार स्थित है। इसका ढाल उत्तर व उत्तर- -पूर्व की ओर है। इसे चम्बल का उपार्द्र प्रदेश भी कहते हैं।
इन चट्टानों का निर्माण आर्कियन, धारवाड़ तथा विंध्यन क्रम की चट्टानों के अनाच्छादन, अपरदन तथा वनस्पतियों के निक्षेपण के परिणामस्वरूप हुआ है।
इस क्षेत्र में भू-गर्भिक हलचलों के कारण कगारों का निर्माण हुआ है। मालवा पठार से निकलने वाली नदियाँ इन्हीं कगारों से प्रवाहित होती हैं। इसके ऊपरी भाग की मृदा का इतना अधिक रूपान्तरण हो गया है कि, इनकी मूल विशेषता लगभग समाप्त हो चुकी है। यहाँ प्रवाहित होने वाली नदियों ने उत्खात भूमि अथवा बीहड़ों (Ravines) का निर्माण किया है।
इस क्षेत्र की औसत ऊँचाई लगभग 500 मी. है। इसके अन्तर्गत् राज्य के ग्वालियर, शिवपुरी, भिण्ड, मुरैना, श्योपुर, गुना, नीमच तथा मन्दसौर जिले सम्मिलित हैं।

चम्बल घाटी
इस पठार के मध्य में चंबल घाटी स्थित है, जो पठार से भी 300 मी. अधिक गहरी है। चम्बल घाटी एक नतिलम्ब घाटी है, जिसका निर्माण चम्बल नदी द्वारा जलोढ़ मिट्टी के निक्षेप से हुआ है। चम्बल घाटी में खड्ड भूमियाँ पायी जाती हैं। इन खड्डों की गहराई 15 से 30 मी. तक है। यह क्षेत्र मृदा अपरदन से भी प्रभावित है।

  • चम्बल-सिन्ध घाटी का मैदान भू-आकृतिक विविधता से परिपूर्ण है, जिससे इन क्षेत्रों में बाढ़कृत मैदान, खड्ड तथा दोआब आदि का विकास हुआ है। मध्य भारत के पठार का कुल क्षेत्रफल 45,000 वर्ग किमी. है, जिसमें से 32,896 वर्ग किमी. क्षेत्रफल मध्य प्रदेश में है, जो राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 10.7 प्रतिशत है।
  • इस क्षेत्र में वनों की अत्यधिक कटाई के कारण इसके उत्तरी क्षेत्र का अपरदन सबसे अधिक हुआ, जिससे यह क्षेत्र भारत के सबसे बड़े बीहड़ क्षेत्र में परिवर्तित हो गया है।

बुंदेलखण्ड का पठार

  • बुंदेलखण्ड का पठार मध्य प्रदेश के उत्तर मध्य में स्थित है। इसका विस्तार 24°6' से 26°22' उत्तरी अक्षांश तथा 77°5' से 80°20' पूर्वी देशांतर के मध्य है। इसके दक्षिण-पूर्व में मालवा का पठार, पश्चिम में मध्य भारत का पठार, उत्तर में यमुना का जलोढ़ मैदान तथा दक्षिण-पूर्व में पन्ना और अजयगढ़ की पहाड़ियाँ स्थित हैं।
  • बुन्देलखण्ड पठार का कुछ भाग समतल प्राय मैदान (Peneplain) है तथा इसका ढाल उत्तर की ओर है। ग्रेनाइट व नीस चट्टानों से निर्मित यह पठार तीन ओर से अर्द्ध चंद्राकार है। यह पन्ना श्रेणी, बिजावर श्रेणी तथा चंदेरी पाट से घिरा हुआ है। इस क्षेत्र में नरहट कगार भी स्थित है।
  • इस पठारी प्रदेश का विस्तार मध्य प्रदेश के भिण्ड, दतिया, शिवपुरी, सागर, पन्ना छतरपुर, टीकमगढ़ तथा ग्वालियर एवं उत्तर प्रदेश के झाँसी, जालौन, हमीरपुर, ललितपुर, बाँदा जिलों में है। दोनों राज्यों में इसका कुल क्षेत्रफल 54,560 वर्ग किमी. है जिसमें से 23,737 वर्ग किमी. क्षेत्र मध्य प्रदेश राज्य में स्थित है, जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का 7.7 प्रतिशत है। इसकी सबसे ऊँची चोटी सिद्ध बाबा (1,172 मी.) है।
  • बुन्देलखण्ड पठार की चट्टानों का निर्माण आग्नेय एवं कायान्तरित चट्टानों से हुआ है जिसमें ग्रेनाइट शेल तथा नीस के निक्षेप पाये जाते हैं। यहाँ निचले विंध्यन, भाण्डेर, रीवा तथा कैमूर उपक्रम की चट्टानें पायी जाती हैं। इसके उत्तरी भाग में यमुना का जलोढ़ मैदान तथा दक्षिण-पश्चिम के निचले भाग में दक्कन ट्रैप की चट्टानों का विस्तार पाया जाता है।
  • भू-आकृतिक दृष्टि से इस पठारी भाग को मैदानी और उच्च भूमि में विभाजित किया गया है। बुन्देलखण्ड पठार के लगभग 70 प्रतिशत भाग की ऊँचाई 300 मी. से कम है, जबकि अन्य भागों की ऊँचाई 300 से 600 मी. के मध्य है।
  • इसका एक तिहाई भाग समतल मैदान (Peneplain) है, जिसके तीनों ओर विंध्यन कगार है। इस क्षेत्र से प्रवाहित होने वाली नदियों ( धसान, केन तथा बेतवा आदि) ने सँकरी घाटियों (Narrow Valleys), जलप्रपात, कगार एवं खड्डों आदि का निर्माण किया है।

रीवा पन्ना का पठार

  • रीवा-पन्ना पठार को विंध्यन कगारी प्रदेश भी कहते हैं। इसका निर्माण आर्कियन चट्टानों के अपक्षय और अपरदन के फलस्वरूप अवसादीकरण या कायान्तरण से हुआ है। इस पठारी क्षेत्र में भूगर्भिक हलचलों से कगार, दरार तथा भ्रंश आदि स्थलाकृतियों का निर्माण हुआ है।
  • इसकी भौगोलिक स्थिति 23°10' से 25°12' उत्तरी अक्षांश तथा 78°4' से 82°18' पूर्वी देशांतर के मध्य है। इसका विस्तार पन्ना, रीवा, दमोह, सागर तथा सतना जिलों में लगभग 31,954 वर्ग किमी. क्षेत्र पर है, जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का 10.37 प्रतिशत है।
  • इस पठार के दक्षिणी भाग पर कगार हैं, जो रीवा-पन्ना पठार को बघेलखण्ड पठार से अलग करते हैं। इसके उत्तर-पूर्व में सोन नदी सँकरे कगारों से होकर प्रवाहित होती है, जबकि दक्षिण-पश्चिम में नर्मदा नदी का कगार है, जिसका पश्चिम की ओर अधिक विस्तार हुआ है।
  • इस पठार का मध्य भाग समतल है, जिसे दमोह का पठार कहते हैं। रीवा-पन्ना पठार की ऊँचाई 350 से 400 मी. के मध्य है। इसके धरातलीय भाग में चूना पत्थर, क्वार्ट्जाइट तथा बालू पत्थर आदि के निक्षेप पाये जाते हैं।
  • इस क्षेत्र में टोन्स, केन, सोन तथा बीहड़ आदि नदियाँ अनेक जलप्रपातों का निर्माण करती हैं। मध्य प्रदेश का सबसे ऊँचा जल प्रपात चचाई जलप्रपात है, जो रीवा जिले में बीहड़ नदी पर स्थित है। इस पठारी क्षेत्र के अन्य जलप्रपात केवटी, बहुटी तथा पियावन आदि हैं।
  • भाण्डेर तथा कैमूर श्रेणी, विंध्याचल पर्वत श्रृंखला पर स्थित है। यह पर्वत शृंखला उत्तर के मैदान और दक्षिण के पठारी भागों के मध्य विभाजक का कार्य करती है।

नर्मदा सोन घाटी

  • नर्मदा- सोन घाटी का निर्माण भू-गर्भिक हलचलों के कारण भ्रंशों में हुआ है। यह प्रायद्वीपीय भू-भाग का एक भूखण्ड है, जिस पर विभिन्न कालक्रमों में भूगर्भिक हलचलों के कारण भ्रंश तथा कगार आदि स्थलाकृतियों का निर्माण हुआ है।
  • नर्मदा तथा सोन नदियों की विषम स्थलाकृतियों से प्रवाहित होने के कारण एवं उच्चावच में भिन्नता के कारण नदियों ने अनेक जलप्रपातों का निर्माण किया है। इस भ्रंश के दक्षिण में सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला का विस्तार है। नर्मदा- सोन नदी घाटी राज्य का सबसे निचला भू-भाग है।
  • नर्मदा सोन नदी घाटी लगभग 86,000 वर्ग किमी. में विस्तृत है, जो मालवा के पठार के बाद मध्य प्रदेश राज्य का दूसरा सबसे बड़ा भौगोलिक प्रदेश है। यह राज्य के कुल भू-भाग का लगभग 26 प्रतिशत है। इसका विस्तार मध्य प्रदेश के अनूपपुर, मण्डला, डिण्डोरी, जबलपुर, नरसिंहपुर, कटनी, सीधी, होशंगाबाद, रायसेन, हरदा, खण्डवा, खरगौन, धार, बुधनी, बड़वानी तथा अलीराजपुर जिलों में है। सोन नदी घाटी के उत्तर-पश्चिम में कैमूर की पहाड़ियाँ स्थित हैं।
  • नर्मदा-सोन नदी घाटी प्राचीन काल से प्रमुख कृषि क्षेत्र रहा है। मालवा पठार के पश्चात् यह क्षेत्र राज्य के कृषि उत्पादन में दूसरा सबसे समृद्ध क्षेत्र है। नर्मदा के पूर्व व दक्षिण-पूर्व में गोंडवाना काल के कोयले के निक्षेप पाये जाते हैं।
  • इस नदी घाटी क्षेत्र में आर्कियन काल से होलोसीन काल तक की चट्टानें पायी जाती हैं। नर्मदा की निचली घाटी, गुजरात राज्य में स्थित है। इस घाटी के उत्तर तथा दक्षिण में दक्कन ट्रैप की चट्टानें पायी जाती हैं।
  • इसके उत्तरी भाग में निचले दक्कन ट्रैप तथा दक्षिणी भाग में ऊपरी दक्कन ट्रैप की चट्टानें पायी जाती हैं। नर्मदा की उत्तरी सहायक नदियों की लम्बाई अधिक एवं दक्षिणी सहायक नदियों की लम्बाई कम है। इसके दायें तट से मिलने वाली नदियाँ हिरण, तिनदोनी, बारना, चंदकेशर, कॉनर, मान, हथनी तथा ऊरी आदि हैं, जबकि बायें तट से मिलने वाली नदियाँ शक्कर, बरनार, दुधी, तवा तथा गंजाल आदि हैं।

बघेलखण्ड का पठार

बघेलखण्ड के पठार का विस्तार राज्य के उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में हुआ है। इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश, पूर्व में बिहार तथा दक्षिण-पूर्व में छत्तीसगढ़ राज्य स्थित हैं। मध्य प्रदेश में इसका विस्तार शहडोल, सिंगरौली, कटनी, उमरिया, सीधी तथा अनूपपुर जिलों तक है। बघेलखण्ड का पठार सोन नदी के दक्षिण में स्थित है। इसका विस्तार 23°40' से 24°35' उत्तरी अक्षांश तथा 80°5' से 82°47' पूर्वी देशांतर के मध्य स्थित है। इसका कुल क्षेत्रफल 1,40,000 वर्ग किमी. है, जिसका 25,000 वर्ग किमी. क्षेत्र मध्य प्रदेश में स्थित है। यह राज्य के कुल क्षेत्रफल का 7 प्रतिशत है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह राज्य का सबसे छोटा पठार है।
बघेलखण्ड पठार के निर्माण में आर्कियन काल से लेकर जुरैसिक काल तक के शैल समूह पाये जाते हैं। इसकी स्थलाकृति के उच्चावच में अधिक भिन्नता है। इस पठारी भाग में गोंडवाना क्रम की चट्टानें अधिक हैं, यही कारण है कि, इस क्षेत्र में कोयले के निक्षेप अधिक पाये जाते हैं। इस पठारी क्षेत्र में स्थित सिंगरौली कोयला क्षेत्र मध्य प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा कोयला क्षेत्र है, जिसमें ग्रेनाइट, नीस, क्वार्ट्जाइट, चूना पत्थर, क्वार्ट्ज तथा कांग्लोमरेट आदि के निक्षेप भी पाये जाते हैं। इस पठारी क्षेत्र में सोन, रिहन्द तथा गोपद आदि नदियाँ प्रवाहित होती हैं।

सतपुड़ा-मैकाल श्रेणी

  • सतपुड़ा मैकाल श्रेणी की भौगोलिक अवस्थिति 21° से 23° उत्तरी अक्षांश एवं 74°30' से 81° पूर्वी देशांतर के मध्य है। इसका विस्तार मध्य प्रदेश के अलीराजपुर, बड़वानी, बुरहानपुर, खण्डवा, हरदा होशंगाबाद, बैतूल, सिवनी, छिंदवाड़ा तथा बालाघाट जिलों तक है। इसका कुल क्षेत्रफल 34,000 वर्ग किमी. है, जो मध्य प्रदेश के कुल भू-भाग का लगभग 11 प्रतिशत है।
  • इस पहाड़ी क्षेत्र से नर्मदा, ताप्ती तथा गोदावरी आदि प्रमुख नदियों के अतिरिक्त वेनगंगा, शक्कर, गार, छोटी तवा और वर्धा आदि नदियाँ भी प्रवाहित होती हैं। मैकाल श्रेणी में स्थित अमरकंटक पठार से नर्मदा, सोन, जोहिला नदी का उद्गम होता है। इस क्षेत्र से सर्वाधिक नदियों का उद्गम होता है। इसी कारण इसे वाटर शेड भी कहते हैं।

सतपुड़ा मैकाल श्रेणी क्षेत्र में स्थित पहाड़ियाँ
  • बड़वानी पहाड़ी (641 मी.)
  • कालीभीत पहाड़ी (770 मी)
  • बिजलगढ़ पहाड़ी (849 मी.)
  • धूपगढ़ चोटी (1352 मी.)

  • सतपुड़ा-मैकाल श्रेणी मध्य प्रदेश की दक्षिणी सीमा का निर्धारण करती है। इसके उत्तर मे नर्मदा एवं दक्षिण में ताप्ती नदियों के मध्य क्षेत्र को सतपुड़ा मैकाल पहाड़ी के नाम से जाना जाता है। इसका निर्माण बेसाल्ट चट्टानों से हुआ है। इसमें क्वार्ट्ज तथा ग्रेनाइट आदि के निक्षेप पाये जाते हैं।
  • सतपुड़ा-मैकाल पहाड़ी की लम्बाई लगभग 900 किमी. एवं ऊँचाई लगभग 770 मी. है। इसका विस्तार मध्य प्रदेश के दक्षिणी भागों में पश्चिम से पूर्व में अरमकंटक पठार तक है। इस पहाड़ी पर पचमढ़ी पर्वत शिखर (1067 मी.) स्थित है, जिसे सतपुड़ा की रानी कहा जाता है। इस पर्वत शृंखला की सबसे ऊँची चोटी धूपगढ़ (1352 मी.) है, जो मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में स्थित है।
  • संरचनात्मक तथा उच्चावच विविधता के आधार पर सतपुड़ा मैकाल श्रेणी को तीन भागों में विभाजित किया गया है-

सतपुड़ा मैकाल श्रेणी
  • पश्चिमी सतपुड़ा श्रेणी
  • पूर्वी सतपुड़ा श्रेणी
  • मैकाल श्रेणी

पश्चिमी सतपुड़ा श्रेणी

पश्चिमी सतपुड़ा श्रेणी का विस्तार गुजरात के पूर्वी भागों तथा महाराष्ट्र के उत्तर से लेकर मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले तक है। सतपुड़ा पहाड़ी के पश्चिमी भाग को राजपीपला की पहाड़ी के नाम से भी जाना जाता है। पश्चिमी सतुपड़ा की चौड़ाई लगभग 60 किमी. है। इसके पश्चिमी भाग में नुकीले शिखर, खड़े ढाल, कगार तथा भ्रंश आदि पाये जाते हैं। यहाँ स्थित चट्टानें दक्कन लावा के पठार का भाग हैं। इस क्षेत्र में असीरगढ़ पहाड़ी तथा नर्मदा नदी के मध्य में निमाड़ का मैदान स्थित है।

पूर्वी सतपुड़ा श्रेणी

पूर्वी सतपुड़ा श्रेणी की चौड़ाई लगभग 120 किमी. है। इसके दक्षिण में महादेव की पहाड़ी (1,200 मी.) स्थित है। पचमढ़ी के समीप सतपुड़ा की सबसे ऊँची चोटी धूपगढ़ (1,350 मी.) स्थित है, जो महादेव पहाड़ी का भाग है। पूर्वी सतपुड़ा श्रेणी का निर्माण आर्कियन तथा गोंडवाना क्रम की चट्टानों से हुआ है।
इसमें क्वार्ट्जाइट तथा गुलाबी बलुआ पत्थर के निक्षेप पाये जाते हैं। इस क्षेत्र में विशाल कोयले के भण्डार स्थित हैं। पूर्वी सतपुड़ा श्रेणी का दक्षिणी ढाल अपेक्षाकृत तीव्र है।

मैकाल श्रेणी

मैकाल श्रेणी, सतपुड़ा का पूर्वी विस्तार है, इसकी आकृति अर्द्ध चन्द्राकार है। इसका अधिकांश क्षेत्र छत्तीसगढ़ में स्थित है। सतपुड़ा श्रेणी की दूसरी सबसे ऊँची चोटी अमरकंटक (1024 मी.) है, जो मैकाल श्रेणी में स्थित है।
इसका निर्माण आर्कियन और गोंडवाना काल की चट्टानों से हुआ है। अमरकंटक पठार के उत्तर से नर्मदा एवं दक्षिण से महानदी, वेनगंगा आदि नदियाँ निकलती हैं। मैकाल श्रेणी के पठार का अधिकांश भाग नर्मदा के ऊपरी बेसिन एवं दक्षिण का कुछ भाग महानदी तथा वेनगंगा नदी बेसिन में सम्मिलित है।

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