लैटेराइट मृदा (Laterite Soil)
इस लेख में लैटेराइट मृदा की विशेषताओं, निर्माण प्रक्रिया, रासायनिक संरचना, कृषि उपयोगिता और मध्य प्रदेश के छिन्दवाड़ा व बालाघाट जिलों में इसके विस्तार की जानकारी दी गई है।
लैटेराइट मृदा एक चट्टानी मृदा है, इसलिए इसमें चट्टानों के कण अधिक पाए जाते हैं। इस मृदा को लाल बलुई मृदा तथा स्थानीय स्तर पर भाटा भी कहा जाता है।
इसका निर्माण मानसूनी जलवायु की आर्द्रता एवं शुष्कता में क्रमिक परिवर्तन के परिणामस्वरूप उत्पन्न विशिष्ट परिस्थितियों में होता है। इसमें आयरन एवं सिलिका की बहुलता होती है।
इस मृदा में ह्यूमस की मात्रा कम पायी जाती है, क्योंकि इन क्षेत्रों में तापमान व वर्षा की मात्रा अधिक होने के कारण क्षारीय तत्व व ह्यूमस जल के साथ घुलकर नीचे की परतों में चले जाते हैं।
यह मृदा अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में पायी जाती है, जो बागानी फसलों (चाय एवं कॉफी) के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
यह मृदा छिन्दवाड़ा और बालाघाट जिलों के अधिकांश भू-भाग पर विस्तृत है।
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