काली मृदा (मध्य प्रदेश)

काली मृदा (Black Soil)

काली मृदा को रेगुर मृदा (Regur Soil) या काली कपास मृदा (Black Cotton Soil), करेल तथा चेरनोजम मृदा भी कहते हैं। यह मृदा मध्य प्रदेश के सम्पूर्ण क्षेत्रफल के 43.44% भाग पर विस्तृत है, जो मालवा के पठार, नर्मदा घाटी, विन्ध्याचल एवं सतपुड़ा घाटियों में स्थित पन्ना, दतिया, ग्वालियर तथा शिवपुरी आदि जिलों में पायी जाती है।
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काली मृदा का निर्माण दक्कन ट्रैप शैलों के विखण्डन से हुआ है। इसमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं जैव पदार्थों की मात्रा कम पायी जाती है, जबकि चूना, मैग्नीशियम, पोटाश, एल्युमिनियम एवं लोहा प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
लोहे की अधिकता के कारण इसका रंग काला होता है। इस मृदा की प्रकृति क्षारीय (Alkaline) होती है, क्योंकि इसका pH मान 7.5-86 के मध्य होता है। यह मृदा ज्वार, कपास, गेहूँ, चना, जौ व सरसों आदि फसलों के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
काली मृदा को मुख्यतः दो भागों में वर्गीकृत किया गया है-

काली मृदा का वर्गीकरण

  1. गहरी काली मृदा
  2. मध्यम एवं छिछली काली मृदा

1. गहरी काली मृदा (Deep Black Soil)
  • गहरी काली मृदा मध्य प्रदेश के लगभग 16.21 मिलियन हेक्टेयर लाख एकड़ क्षेत्र पर विस्तृत है, जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का लगभग 36.5% भाग है। यह मृदा मुख्य रूप से नर्मदा घाटी, मालवा एवं सतपुड़ा के पठारी क्षेत्रों में पायी जाती है।
  • इस मृदा में चिकनी मृदा की मात्रा 20 से 60% तक मिलती है। यह मृदा गेहूँ, तिलहन, चना तथा ज्वार की कृषि के लिए उपयुक्त है।
  • गहरी काली मृदा का विस्तार मध्य प्रदेश के लगभग 35 जिलों में है, जिनमें होशंगाबाद, हरदा, नरसिंहपुर, शहडोल, उमरिया, जबलपुर, कटनी, सागर, आदि जिले सम्मिलित हैं।

2. मध्यम एवं उथली काली मृदा (Medium and Shallow Soil)
  • यह मृदा मध्य प्रदेश के 3.06 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल पर विस्तृत है जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का लगभग 6.91% भाग है।
  • इस मृदा का विस्तार मालवा पठार के उत्तरी भाग, निमाड़ क्षेत्र तथा सतपुड़ा क्षेणी के समीपवर्ती क्षेत्रों में है। जिसमें मुख्यत: बैतूल, छिन्दवाड़ा, सिवनी, नरसिंहपुर आदि जिले सम्मिलित हैं।
  • मध्यम काली मृदा का रंग भूरा अथवा हल्का काला होता है तथा उथली काली मृदा का रंग गहरा काला तथा पीला होता है।
  • उथली काली मृदा में 15-20% चिकनी दोमट मृदा पायी जाती है।

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