मध्य प्रदेश का इतिहास MCQ
(a) 2
(b) 4
(c) 5
(d) 6
व्याख्या: (a) छठी शताब्दी ई.पू. में 16 महाजनपदों में से वर्तमान मध्य प्रदेश में स्थित अवन्ति व चेदि (चेतिया या चेतिय) महाजनपद का उल्लेख बौद्ध ग्रंथ अंगुत्तरनिकाय, महावस्तु तथा जैन ग्रंथ भगवती सूत्र से प्राप्त होता है।
(a) अथर्ववेद
(b) यजुर्वेद
(c) सामवेद
(d) ॠग्वेद
व्याख्या: (d) प्राचीन मध्य प्रदेश के अवन्ति महाजनपद का उल्लेख सर्वप्रथम ऋगवेद में प्राप्त होता है। किंतु राज्य अथवा स्थान के नाम की दृष्टि से अवन्ति का प्रथम उल्लेख पाणिनी की अष्टाध्यायी के सूत्र स्त्रियामवन्ति-कुरुभ्यश्च में हुआ है। अवन्ति महाजनपद को अवन्तिका, अवन्तिपुरी, अवन्ति नगरी, अवन्तिकापुर, उज्जयिनी आदि नामों से अभीहित किया गया है।
(a) वीतिहोत्र
(b) जयध्वज
(c) कार्तवीर्य सहस्त्रार्जुन
(d) तालजंघ
व्याख्या: (c) दीपवंश के अनुसार राजा अच्चुतगामी ने उज्जयिनी नगरी (अवन्ति) की स्थापना की थी किंतु अनुश्रुतिगम्य इतिहास एवं अन्य पौराणिक संदर्भों के अनुसार हैहय वंश के कार्तवीर्य सहस्त्रार्जुन (सहस्त्रबाहु) के पुत्र तलजांघ के 5 पुत्र क्रमश: वीतिहोत्र, सार्यात, अवन्ति, भोज और कुण्डिकर थे, जिसमें अवन्ति के नाम पर इस महाजनपद का नाम अवन्ति महाजनपद पड़ा।
(a) ओजीन
(b) उ-शे-येन-ना
(c) कनकश्रृंगा
(d) अच्चुतगामी
व्याख्या: (a) पेरिप्लस ऑफ द एरिथ्रियन सी नामक पुस्तक में अवन्ति महाजनपद को ओजीन नाम से उल्लेखित किया गया है। वर्तमान नाम उज्जैन उज्जयिनी का ही अपभ्रंश है। पालिग्रंथों में इसका नाम उज्जैनी है, वहीं प्राकृत ग्रंथ इसे उजेनी लिखा गया है। रोमन इतिहासकार क्लाडियस टॉलमी इस स्थान का उल्लेख 'ओजन' नाम से किया है। इसके अतिरिक्त इस नगर के कई अन्य नाम भी हैं- सुवर्ण श्रृंगार, कुशस्थली, अवन्तिका, अमरावत, चूड़ामणि, पद्मावती, शिवपुरी, कुमुदवती, कुश स्थली, 'हेम शृंगा, भोगवती, हिरण्यवती व उज्जयिनी आदि। बोधम्यन धर्मसूत्र में इसका अवन्ति नाम आया है, वहीं स्कंदपुराण का एक भाग अवन्ति-खंड के नाम से प्रसिद्ध है। वाल्मीकि ने अपनी रामायण में अवन्ति-राष्ट्र की चर्चा की है।
(a) विदिशा
(b) महेश्वर
(c) ओंकारेश्वर
(d) उज्जैन
व्याख्या: (d) चीनी यात्री ह्वेनसांग ने मध्य प्रदेश के उज्जैन नगर को उ-शे-येन-ना के नाम से अपनी यात्रा विवरण में उल्लेखित किया है। सेण्ट्रल इण्डिया गजेटीयर में ल्युअर्ड (स्नंतक) द्वारा उल्लेखित नवतेरी नगर उज्जैन ही था तथा उज्जैन का बौद्ध कालीन नाम अच्युतगामनी या अच्युतगामी था। कंदबरी बाणभट्ट द्वारा रचित ग्रंथ में उज्जैन का उल्लेख कनकशृंगा के रूप में प्राप्त होता है तथा जैन कवि सोमदेव ने यशसितलकचंपू में इसे पद्मावती नाम से उल्लेखित किया है। रामायण काल में अवन्ति देश तथा महाभारत काल में संदीपनी आश्रम के रूप में उज्जैन (अवन्ति) की चर्चा की गई।
टिप्पणी: उज्जयिनी का शाब्दिक अर्थ है विजेता या जयनगरी। कहा जाता है कि प्राचीनकाल में त्रिपुर नामक दानव ने ब्रह्मा से वरदान प्राप्त कर देवताओं को परेशान करने लगा। देवताओं ने शिव के कथनानुसार रक्तदंतिका चंडी देवी की अराधना कर उन्हें प्रसन्न किया। देवी ने प्रसन्न होकर शंकर को महापाशुपत अस्र दिया, जिसके द्वारा उन्होंने उस मायावी त्रिपुर को तीन खंडों में काट दिया, इस प्रकार त्रिपुर को उज्जिन (बुरी तरह से पराजित ) किया गया। इस प्रकार इस स्थान का नाम उज्जयिनी पड़ा।
(a) वत्स
(b) दशार्ण
(c) चेदि
(d) अवन्ति
व्याख्या: (d) महागोविंद सुतंत में माहिष्मती को अवन्ति महाजनपद की राजधानी बताया है। डॉ. डी. आर. भंडारकर के अनुसार अवन्ति महाजनपद 2 भागों में विभक्त था। एक उत्तरी भाग जिसे उत्तरी अवन्ति कहा जाता था, जिसकी राजधानी उज्जयिनी थी। दूसरा दक्षिणी भाग - जिसे अवन्ति दक्षिणापथ कहा गया है। अवन्ति दक्षिणापथ की राजधानी माहिष्मती (माहिस्सति) नामक नगरी थी। भौगोलिक दृष्टि से अवन्ति राज्य का विस्तार नर्मदा नदी की घाटी में मान्धाता नगर से लेकर महेश्वर तक फैला हुआ था।
(a) सोम
(b) तुर्वसु
(c) अंतोदया
(d) यदु
व्याख्या: (a) पौराणिक परंपरा अनुसार भारत युद्ध के 95 पीढ़ी वर्ष पूर्व मनु वैवस्वत हुए थे, जिनकी पुत्री इला का विवाह बुध या सोम के साथ हुआ था। इन्हीं के पुत्र पुरूरवा का वंश चंद्र वंश कहलाया। इसका राज्य चंद्रवंसी क्षत्रिय-राज्य था। इला से उत्पत्ति के कारण इसे ऐल वंश के नाम से भी जाना जाता है। पुरूरवा के राज्य के उत्तर में अयोध्या का शक्तिशाली राज्य था तथा दक्षिण में युद्धप्रिय करूषों का राज्य स्थित था। इसलिये पुरूरवा ने अपना राज्य विस्तार गंगा-यमुना दोआब, मालवा और पूर्वी राजस्थान में किया। इस राज्य विस्तार से वर्तमान बुंदेलखंड तक उसका साम्राज्य फैल गया और कारूष वंशी राजा राज्य (वर्तमान बघेलखंड) को स्पर्श करने लगा था। कहा जाता है कि अपने शासन के अंतिम दिनों में उसने ब्राह्मणों को तंग किया और नैमिष ऋषियों के प्रतिष्ठित स्वर्णिम यज्ञ-स्थान को छीनने की कोशिश की। प्रतिक्रियास्वरूप ऋषियों ने विद्रोह कर दिया और पुरूरवा को मारकर उसके पुत्र आयु को सिंहासन पर बैठा दिया। पुरूरवा का विशाल साम्राज्य उसके पुत्रों आयु और अमावसु के मध्य बंट गया। आयु प्रतिष्ठान की मुख्य शाखा से शासन करने लगा जबकि अमावसु ने उत्तर के अधीगत राज्यों को संगठित करके गंगा-यमुना दो-आब में कान्यकुब्ज वंश की नींव डाली। आयु का पुत्र नहुष, जो एक महान विजेता था। पृथ्वी पर रंगशाला की सर्वप्रथम स्थापना करने का श्रेय उसे दिया जाता है। नहुष का पुत्र ययाति था, जो इस वंश का सर्वाधिक यशस्वी शासक सिद्ध हुआ। पुराण तथा महाभारत से ययाति के विवाह का विस्तृत वर्णन मिलता है। देवयानी और शर्मिष्ठा उसकी पत्नियां थीं। देवयानी भार्गव ऋषि उशनस शुक्राचार्य की पुत्री थी जबकि शर्मिष्ठा असुरों के राजा वृषपर्वा की पुत्री थी। देवयानी से उसके दो पुत्र यदु और तुर्वसु हुए तथा शर्मिष्ठा से तीन पुत्र- अनु, द्रुह्यु तथा पुरू हुए। ययाति ने अपने साम्राज्य का विभाजन अपने पुत्रों में कर दिया। इस विभाजन में यदु को चर्मण्वती (चंबल), वेत्रवती (बेतवा) तथा शुक्तिमती (केन) से अभिसिंचित प्रदेश प्राप्त हुआ। तुर्वसु को रीवा के समीपवर्ती प्रदेश (वर्तमान बघेलखंड) प्राप्त हुए। यदु के दो पुत्र थे क्रोष्ट्रि तथा सहस्त्रजित। क्रोष्ट्र के वंशज यादव कहलाए और सहस्त्रजित के हैहयवंशी कहलाए।
(a) मान्धात्रि
(b) युनवाश्व
(c) दण्डक
(d) कृतवीर्य
व्याख्या: (c) वैवस्वत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु के द्वारा सूर्यवंशी क्षत्रिय-राज्य की स्थापना की गई। यह चंद्रवंशी पुरूरवा का समकालीन था तथा इसने अयोध्या के साम्राज्य की स्थापना की थी। इक्ष्वाकु को मनु के द्वारा मध्यदेश का राज्य प्रदान किया गया। इक्ष्वाकु के पुत्र दण्डक का राज्य मध्य प्रदेश के दक्षिणी क्षेत्र पर था, जो घने वनों से आच्छादित क्षेत्र था। दण्डक के नाम पर ही यह वन क्षेत्र दण्डकारण्य कहलाया। दण्डकारण्य की स्थिति वर्तमान छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर जिले में है।
(a) आनर्त
(b) मान्धाता
(c) कान्यकुब्ज
(d) माहिष्मती
व्याख्या: (b) युवनाश्व का पुत्र मान्धात्रि सूर्यवंशी परंपरा का महान शासक था, जिसे विष्णु का पंचम अवतार भी कहा गया है। उसने अपने पराक्रम व पौरूष के आधार पर नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नगर की स्थापना की थी। ऐल वंश की राजकुमारी बिंदुमती से उसके तीन पुत्र पुरुकुत्स, अम्बरीष और मुकुन्द तथा एक कन्या कावेरी उत्पन्न हुई। पुरुकुत्स ने मध्य प्रदेश में मध्यभारत क्षेत्र में बसे नाग राजाओं को मौनेय गन्धर्वों के विरुद्ध सहायता देकर विजयी बनाया तथा नाग राजा की कन्या नर्मदा से विवाह किया। उसके भाई मुचकुंद ने पारियात्र और ऋक्ष पर्वत के प्रदेश को जीतकर नर्मदा के तट पर एक दुर्ग का निर्माण कराया। परंतु मुचकुंद की विजय अल्पकालिक रही। चंद्रवंश की हैहय शाखा के राजा महिष्मन्त ने उसे पराजित करके उससे यह दुर्ग जीत लिया और नगर का नाम माहिष्मती रखा, जो वर्तमान में महेश्वर के नाम से जाना जाता है।
(a) सहस्त्रबाहू
(b) पुरुकुत्स
(c) मुचकुंद
(d) जमदग्नि
व्याख्या: (d) परशुराम काल 2550-2350 ई.पू. में भृगुवंशी ऊर्व का पुत्र रिचिका ने कान्यकुब्ज के राजा गाधी की पुत्री सत्यवती से विवाह किया था, जिनके पुत्र का नाम जमदग्नि था। जमदग्नि धनुर्विद्या में विशेष पारंगत थे एवं उन्होंने अयोध्या के राजा रेणु की पुत्री रेणुका से विवाह किया था, जिससे परशुराम नामक पुत्र की प्राप्ति हुई थी। हैहयवंश के कार्तवीर्य अर्थात सहस्त्रार्जुन ने जमदग्नि ऋषि के आश्रम में देवीय गुणों से युक्त कामधेनु को बलपूर्वक छीनकर अपने साथ ले गया था। इस धृष्ट आचरण से जमदग्नि के सबसे छोटे पुत्र परशुराम ने क्रुद्ध होकर अपने पिता के अपमान का बदला लेने के लिए माहिष्मती पर आक्रमण करके कार्तवीर्य अर्थात सहस्त्रार्जुन को परास्त कर उसकी सहस्त्र भुजाएं काट डाली थी तथा उसका वध कर दिया।
टिप्पणी: कार्तवीर्य अर्जुन के पुत्र जयध्वज का राज्य अवन्ति (आधुनिक मालवा) पर था। जयध्वज सहित अर्जुन के अन्य पुत्र परशुराम के साथ संघर्ष में मारे गये। जयध्वज के पुत्र तालजंघ ने हैहय वंश के पुनरोद्धार की चेष्ठा की। परंतु वह भी दीर्घ काल तक जीवित नहीं रहा और हैहय वंश निर्बल होने लगा। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी तालजंघ नामक राजा के पतन की कथा का उल्लेख है। तालजंघ के पांच पुत्र थे- वीतिहोत्र, शार्यात, भोज, अवन्ति और कुण्डिकेर। इनमें से वीतिहोत्र और कुण्डिकेर विंध्याचल में वर्तमान बुंदेलखंड में फैली पर्वतमालाओं में रहे। अवन्ति ने मालवा क्षेत्र पर राज किया और उसी के नाम से यह क्षेत्र अवन्ति नाम से जाना जाने लगा। उसने यादवों से विदिशा हस्तगत कर लिया तथा कान्यकुब्ज, काशी और कोशल पर आक्रमण किये।
(a) विदिशा
(b) रायसेन
(c) छिंदवाड़ा
(d) मंडला
व्याख्या: (a) सूर्यवंश में दिलीप खटवांग नामक शक्तिशाली राजा था, जिसे दिलीप द्वितीय के नाम से भी जाना जाता है। उसके पुत्र रघु के नाम पर रघुवंश की स्थापना हुई तथा रघु का पुत्र अज और अज के पुत्र भगवान श्री राम के पिता चक्रवर्ती नरेश राजा दशरथ हुए थे। दशरथ की एक पत्नी कौशल्या दक्षिण कोशल की राजकुमारी थी, जो आधुनिक मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ से सम्बद्ध था। रामायण में मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ के प्राचीन भौगोलिक, ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक जीवन का विवरण मुख्य घटनाक्रम के साथ मिलता है। वनवास प्राप्ति के पश्चात राम चित्रकूट (बांदा जिला उत्तरप्रदेश) से दक्षिण पूर्व दिशा की ओर बढ़ते हुए दण्डकारण्य वन पहुंचे, जहां उन्होंने अपने अधिकांश वनवास का समय व्यतीत किया। दण्डकारण्य को वर्तमान छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के दण्डकारण्य क्षेत्र से समीकृत किया जाता है। वन गमन के मार्ग का सूक्ष्म विश्लेषण करने से प्रतीत होता है कि राम, सीता और लक्ष्मण चित्रकूट से होते हुए वर्तमान मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ के पन्ना, सतना, शहडोल, अनूपपुर, अम्बिकापुर, बिलासपुर, रायपुर, कांकेर, बस्तर, दन्तेवाड़ा आदि जिलों से होते हुए गुजरे। प्रस्थान मार्ग में राम ने सोन और महानदी को निश्चय ही पार किया होगा। राम के वनवास काल में लंका के राजा रावण द्वारा सीता का हरण कर लिया गया, जिसके परिणामस्वरूप राम ने लंका पर आक्रमण करके रावण का वध कर दिया। माना जाता है कि रावण का राज्य संपूर्ण दण्डकारण्य में फैला था और उत्तर में उसका प्रसार अमरकण्टक तक था। रावण की लंका की भौगोलिक स्थिति को लेकर विद्वानों में मतभेद है। लंका को गुप्तकाल के पूर्व यदा-कदा सिंहल नाम से भी अभिहित किया गया है। कुछ विद्वानों का मत है कि लंका का राज्य नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकण्टक में था। वनवास समाप्त होने पर राम अयोध्या लौट आये तथा वहां के राजा बने। लोकमत का सम्मान करते हुए राम ने अपनी निर्दोष गर्भवती पत्नी सीता को अयोध्या से निर्वासित कर दिया। तब सीता ने ऋषि वाल्मीकि के आश्रम में शरण ली, जहां उन्होंने लव और कुश नामक दो पुत्रों को जन्म दिया। आदि कवि वाल्मीकि का आश्रम तमसा नदी के तट पर था। विद्वानों ने तमसा नदी की पहचान आधुनिक टोंस नदी के रूप में की है। राम को विष्णु का अवतार माना गया। राम के पश्चात कुश अयोध्या का राजा बना और दूसरे पुत्र लव को कौसल का राज्य मिला। कहा जाता है कि कुश ने कुशावती नामक एक नगर बसाया था, जिसकी अवस्थिति विंध्य पर्वतमाला के समीप आधुनिक मध्य प्रदेश में मानी जाती है। राम के छोटे भाई शत्रुघ्न का शासन विदिशा पर रहा था।
विशेष: चंद्र वंश- इसी युग में चंद्र वंशी शासकों में दुष्यन्त नामक राजा प्रसिद्ध हुआ। दुष्यन्त ने विश्वामित्र की पुत्री शकुन्तला से विवाह किया, जिससे उनका पुत्र भरत हुआ। भरत एक महान सम्राट थे, जिनके नाम पर देश का नाम भारत पड़ा। महर्षि वाल्मीकि और दाशरथि राम के पश्चात भारतीय पौराणिक परंपरा का त्रेता युग समाप्त हुआ और द्वापर युग आरंभ हुआ।
(a) विन्द और अर्जुन
(b) अनुविन्द और अर्जुन
(c) विन्द और अनुविन्द
(d) बृहद्बल और अर्जुन
व्याख्या: (c) पुराणों के अनुसार यदुवंशी की राजकुमारी के दो पुत्र हुए विन्द और अनुविन्द, जिन्हें महाभारत में उल्लिखित विन्द और अनुविन्द से अभिन्न माना जाता है। महाभारत के युद्ध के समय विन्द और अनुविन्द अवन्ति के शासक थे। स्कन्द पुराण में अवन्ति को श्रीकृष्ण की शिक्षा-स्थली कहा गया है। कृष्ण और बलराम ने बाल्यावस्था में गुरू सांदिपनी के आश्रम में रहकर कला तथा विज्ञान के समस्त विषयों पर अधिकार प्राप्त किया था। भागवत से ज्ञात होता है कि श्रीकृष्ण ने अनुविन्द को परास्त करके उसकी बहन मित्रविन्दा से विवाह किया था। विन्द और अनुविन्द माहिष्मति के राजा नील के साथ कौरवों की ओर से महाभारत के युद्ध में लड़े थे। अनुविन्द अर्जुन के हाथों युद्ध भूमि में मारा गया।
टिप्पणी: महाभारत काल के अंतर्गत चेदि महाजनपद में एक नवीन राजवंश की स्थापना हुई थी। कुरू के पुत्र सुधन्वा की चौथी पीढ़ी में हुए राजा बसु ने चेदि राज्य यादवों से छीनकर वहां एक नवीन राजवंश की स्थापना की। वसु को पुराणों में सम्राट और चक्रवर्ती कहा गया है। उसके पश्चात उसका पुत्र प्रत्यगर्भ चेदि नरेश बना। भारत युद्ध में चेदि राजा पांडवों के साथ थे जबकि कौसल के राजा बृहद्बल ने कौरवों का साथ दिया था। इस काल में चर्मण्वती (चंबल) के तट पर रहने वाले रन्तिदेव का भी उल्लेख मिलता है, जिसने बहुत से यज्ञों का सम्पादन किया था। अनुश्रुतियों के अनुसार महान धनुर्धर अर्जुन के एक पुत्र बभ्रुवाहन ने मणिपुर नामक स्थान पर एक वृहत्त यज्ञ किया था। कुछ विद्वानों ने इसे मणिपुर को मध्य प्रदेश के महिदपुर से समीकृत किया है। महिदपुर से एक टीला ज्ञात हुआ है, जिसकी मिट्टी सफेदी लिए हुए है इसलिए उसे स्थानीय जन भस्मा-टेकरी कहते है और इसी स्थान को बभ्रुवाहन की यज्ञ भूमि बताते हैं। इस टीले पर हुए उत्खनन से ताम्र पाषाणयुगीन संस्कृति के प्रमाण मिले हैं। भारत युद्ध में कारुष, दशार्ण और मत्स्य अर्थात वर्तमान बुंदेलखंड तथा बघेलखंड की सीमाओं के जनपदों के राजा भी अपनी-अपनी सेनाओं के साथ पांडवों की ओर से लड़े। भोज, विदर्भ और निषद के राजाओं ने कौरवों का साथ दिया।
(a) भिंड
(b) विदिशा
(c) सोहागपुर
(d) उज्जैन
व्याख्या: (a) अनुश्रुतियां और परंपरागत इतिहास के रूप में मध्य प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से रामायण एवं महाभारत के पात्रों से संबंधित नाम प्राप्त होते है, जिसमें कौरवों द्वारा पांडवों को मारने के लिए बनाये गए लाक्षागृह का संबंध भिंड जिले के लहार से है। विंध्य तथा सतपुड़ा की पर्वतमालाओं में स्थित बहुत से स्थल पांडवों से सम्बद्ध किए जाते हैं। भीमबेटका और पंचमढ़ी की गुफाओं को भी पांडवों की गतिविधियों से जोड़ने का प्रयास लोक-मतानुसार हुआ है। इन स्थलों से प्रागैतिहासिक गुहा चित्र एवं पाषाण उपकरण उपलब्ध हुए हैं। स्तंभसम बेसाल्ट की गुफाओं को कुंती से तथा जबलपुर जिले में छोटी महानदी के तट पर स्थित पड़रिया की गुफाओं को जनश्रुतियों में बूढ़ी डायन की गुफा कहकर राक्षसी हिडिम्बा से सम्बद्ध किया जाता है।
(a) उत्तरी अवन्ति
(b) दक्षिणी अवन्ति
(c) माहिष्मती
(d) दशार्ण
व्याख्या: (c) दीघनिकाय के महागोविंद-सुत्त के अनुसार बुद्ध पूर्व युग के राजा रेणु के ब्राह्मण मंत्री महागोविंद ने संपूर्ण जम्बुद्वीप को सात राज्यों में विभक्त किया था तथा मध्य प्रदेश के अंतर्गत अवस्थित अवन्ति को राज्य बनाकर माहिष्मती को राजधानी स्थापित किया था। बुद्ध काल में अवन्ति एक राज्य के रूप में विकसित हो गया था। भगवान बुद्ध के जीवन काल में शूरसेन जनपद का राजा माथुर आवन्ती पुत्र था, जो अवन्ति नरेश चण्डप्रद्योत का दोहित्र था। शूरसेन जनपद पर अवन्ति राज्य का इस समय कम या अधिक प्रभाव अवश्य था। दसण्ण (दशार्ण) जनपद का उल्लेख दो जातकों में हुआ है। वेदिस (विदिशा) नगर को दक्षिणापथ मार्ग पर गोनद्ध और वनसहवय कोशाम्बी के बीच बताता है। बावरी ब्राह्मण के सोलह शिष्य यहां ठहरे थे। सुत्तनिपात में उल्लेख है कि बावरी के सोलह शिष्य आलक प्रतिष्ठान, महिस्सात और तब क्रमश: उज्जैन, गोनर्द्ध, विदिशा, वनसवय, कोशाम्बी, सांकेत, श्रावस्ती, कपिलवस्तु, कुशीनगर, पावा, भोगनगर, वैशाली होते हुए मगध राजधानी के रमणीय, मनोरम्य पाषाण चौत्य में पहुंचे। दसण्ण जनपद पालि परंपरानुसार अवन्ती महाजनपद का ही एक अंग रहा है।
अवन्ति महाजनपद की सीमाएं: अवन्ति की चतुः सीमाएं समय-समय पर बदलती रही हैं। फिर भी साधारणतया वे निम्न प्रकार से दर्शायी जा सकती हैं: पूर्व में आकर देश (अपर पश्चिमी), उसके पूर्व में दर्शाण देश (विदिशा क्षेत्र), दक्षिण में अनूप (नर्मदा नदी की तलहटी, जो माहिष्मती के आस-पास है), पश्चिम में नर्मदानूप या लाट देश (गुजरात में नर्मदा नदी की तलहटी, जो अनूप व निमाड़ के पश्चिम), उत्तर में दशपुर या कुन्ति देश।
(a) चर्मावती
(b) केन
(c) नर्मदा
(d) सोमवती
व्याख्या: (b) भगवान बुद्ध के समय छठी शताब्दी ई.पू. चेदि महाजनपद की राजधानी सोत्थिवती (शुक्तिमती) थी, जो शुक्तिमती (केन) नदी के तट पर स्थित थी। सुत्तनिपात की अट्ठकथा (परमत्थजोतिका) में कहा गया है कि चेति जनपद में चेति या चेतिय नाम धारण करने वाले राजाओं ने शासन किया था, इसलिए उसका नाम चेति पड़ा। कालांतर में यह चेदि जनपद, चौद्य, डाहल (डभाला, डाहाल, डाहल, डहाला, डहला) और त्रिपुरी आदि पर्यायवाची नामों से विख्यात हुआ। साहित्यिक साक्ष्य में चेदि देश का प्रारंभिक इतिहास ऋग्वैदिक काल से प्राप्त होता है, जिसके एक दानस्तुति सूत्त में चौद्य (चेदि का राजा) कशु द्वारा ब्रह्मातिथि नामक ऋषि को सौ ऊंट और एक हजार गायें दान देने का उल्लेख मिलता है।
टिप्पणी: शिशुपाल चेदि का राजा था, जिसका वध श्रीकृष्ण द्वारा किया गया था। तत्पश्चात उसका पुत्र धृष्टकेतु चेदि देश का राजा बना था, जिसने महाभारत युद्ध में पांडवों का साथ दिया था। इस महाजनपद में राजा सुबाहु, राजा नल का समसामयिक था। इसके अतिरिक्त पांडव नकूल की पत्नि करेणुमती चेदि देश की राजकुमारी थी।
विशेष: जैन ग्रन्थ पण्णवणा भगवई में चेदि नगरी का नाम सोत्तियमई अथवा सोत्तियवई था। इसके अतिरिक्त यशस्तिलकचम्पू में सोमदेवी सूरी ने स्वस्तिमती नाम का उल्लेख किया है।
(a) चण्ड प्रद्योत
(b) सोमदेव
(c) केशवराव
(d) पुक्कुसाति
व्याख्या: (a) वीतिहोत्र वंश के शासक रिपुन्जय उज्जयिनी के शासक थे, उसके अमात्य पुणिक (पुलिक) ने उसकी हत्या कर अपने पुत्र चण्ड प्रद्योत को बाल्यावस्था में ही अवन्ति की राजगद्दी पर बैठाया था। कथासरित्सागर में उसे उज्जयिनी के राजा जयसेन का पुत्र और महेन्द्रवर्मा का नाती बतलाया गया है। उसका प्रथम नाम महासेन तथा दूसरा नाम प्रद्योत था। अंगुत्तरनिकाय पाली में चण्ड प्रद्योत की एक महिषी गोपालमाता एवं पुत्र गोपाल का भी उल्लेख प्राप्त होता है। जैन साहित्य से ज्ञात होता है कि लिच्छवी राजा चेतक की पांच पुत्रियों में से एक पुत्री शिवा का विवाह चण्ड प्रद्योत से हुआ था।
(a) महावीर स्वामी के अनन्य भक्त एवं सिंधु सौवीर के राजा उद्रायण से चंदननिर्मित तीर्थंकर की सुंदर प्रतिमा एवं सुवर्णागुलिका दोनों का रात में चुप-चाप अपहरण करने के कारण चण्ड प्रद्योत का उद्रायण से युद्ध हुआ था, जिसमें उद्रायण की जीत हुई।
(b) कौशाम्बी के राजा शतानीक से युद्ध हुआ था तथा रानी मृगावती को प्राप्त करने के उद्देश्य से कौशाम्बी पर चण्ड प्रद्योत ने आक्रमण किया था।
(c) सुंसुमारपुर के राजा अंगारक की रूपवती कन्या अमरवती से विवाह के लिए चण्ड प्रद्योत ने युद्ध किया था।
(d) राजा श्रेणिक (सेनिय, भंभसार, भिंभिसार, बिंबिसार) एक कुशल राजा था। उसका विवाह वैशाली के गणराजा चेटक की छोटी पुत्री चेल्लणा से हुआ था, जिससे पुत्र अजातशत्रु पैदा हुआ था। मज्झिम निकाय के गोपकमोग्गलान सुत्त में प्रद्योत और मगध नरेश बिम्बिसार के परस्पर मैत्री संबंधों की जानकारी मिलती है। किंतु अजातशत्रु के राजा बनने के पश्चात उसके मंत्री अभयकुमार को चण्ड प्रद्योत ने आक्रमण कर बंदी बनाने का प्रयास किया था।
व्याख्या: (c) महावीर स्वामी के अनन्य भक्त एवं सिंधु - सौवीर के राजा उद्रायण से चंदननिर्मित तीर्थंकर की सुंदर प्रतिमा एवं सुवर्णांगुलिका दोनों का रात में चुप-चाप अपहरण करने के कारण चण्ड प्रद्योत का उद्रायण से युद्ध हुआ था, जिसमें उद्रायण की जीत हुई। कौशाम्बी के राजा शतानीक से युद्ध हुआ तथा रानी मृगावती को प्राप्त करने के उद्देश्य से कौशाम्बी पर चण्ड प्रद्योत ने आक्रमण किया था। सुंसुमारपुर के राजा अंगारक की रूपवती कन्या अंगारवती से विवाह के लिए चण्ड प्रद्योत ने युद्ध किया था। राजा श्रेणिक (सेनिय, भंभसार, भिंबिसार, बिंबिसार) एक कुशल राजा था। उसका विवाह वैशाली के गणराजा चेटक की छोटी पुत्री चेल्लणा से हुआ था, जिससे पुत्र अजातशत्रु पैदा हुआ था। मज्झिम निकाय के गोपकमोग्गलान सुत्त में प्रद्योत और मगध नरेश बिम्बिसार के परस्पर मैत्री संबंधों की जानकारी मिलती है। किंतु अजातशत्रु के राजा बनने के पश्चात उसके मंत्री अभयकुमार को चण्ड प्रद्योत ने आक्रमण कर बंदी बनाने का प्रयास किया था।
(a) राजा बिंबिसार
(b) राजा पालक
(c) राजा नन्दिवर्धन
(d) राजा आर्यक
व्याख्या: (a) राजा चण्ड प्रद्योत ने अपने पांडुरोग के निवारण के लिए राजा बिंबिसार के पास दूत भेजकर राजवैद्य जीवक को उज्जयिनी बुलवाया था। उस समय राजा चण्ड प्रद्योत की सेवा में काक नामक दास रहता था तथा राजवैद्य जीवक के इलाज द्वारा असंतुष्ट होने एवं उनके वापस जाने पर राजा चण्ड प्रद्योत ने जीवक का पीछा करने के लिए उप्पनिका नामक रथ भेजकर कौशाम्बी में प्रातराश (कलेवा नाश्ता) करते समय रोक लिया था।
(a) थेर वल्लिय
(b) थेर कुमापुत्र
(c) थेर महाकात्यायन
(d) तेर इसिदत्त
व्याख्या: (c) राजा चण्ड प्रद्योत छठी शताब्दी ई.पू. बौद्ध धर्म की ख्याति से अत्यंत प्रभावित व अत्यधिक उत्सुक थे तथा उन्हें बौद्ध धर्म का उपासक बनाने का श्रेय बौद्ध आचार्य थेर महाकात्यायन को जाता है। बौद्धधर्म में महाकात्यायन का महत्वपूर्ण योगदान रहा। बौद्ध धर्म की थेरवाद शाखा के संस्थापक और उसका स्वरूप निश्चित करने में महाकात्यायन का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। बुद्ध के अन्य शिष्य कात्यायन को, बुद्ध के समान ही सम्मान देते थे। उन्होंने अवन्तिराज प्रद्योत, मथुरा राजा अवन्तिपुत्र, उपासक सोणकुटिकण्ण, उपासिका काली, उपासक हलिद्दकानी, उपासक अभयकुमार, उपासक इसिदत्त, उपासक धन्यपाल इत्यादि को बौद्ध धर्म की शिक्षा दी थी।
(a) राजा बिंबिसार की पत्नी
(b) सम्राट अशोक की पत्नी
(c) राजा चण्ड प्रद्योत की पत्नी
(d) राजा अजातशत्रु की पत्नी
व्याख्या: (b) भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण (483 ई.पू.) पश्चात अवन्ति प्रदेश को बंटवारे में तथागत का आसन्दी, बिछोने और चीवर प्राप्त हुए, जिस पर धर्मानुयायियों ने एक भौतिक स्तूप का निर्माण किया। कालांतर में सम्राट अशोक की पत्नि देवी (विदिशा के वैश्य वर्ग की पुत्री) ने इसका बहुविस्तार किया। वर्तमान में यह उज्जैन के कानीपुरा ग्राम में स्थित है, जिसे वैश्यटेकरी के नाम से जाना जाता है। महास्तूप के ऊपरी अण्डाकार भाग के ऊपर चौकोर हर्मिका और त्रिय छत्रावली थी। यह छत्रावली बुद्ध धम्म एवं संघ की प्रतीक रही है। मेधी, सोपान, प्रदक्षिणापथ, शीर्ष-यष्टि, सूची स्तंभकाएं निर्मित थीं। स्तूप के विशाल प्रांगण के चारों दिशाओं में तीस फीट चौड़े अनोतत्व सरोवर का निर्माण किया गया था, जिसमें उपासक उपासिकाएं स्नान कर उप सम्पदा ग्रहण करते थे। सांची, भरहुत के सदृश्य ही तोरणद्वार निर्मित था। इसकी पुष्टि उज्जैन के गढ़कालिका टीले से प्राप्त मिट्टी की मुहर पर तोरण द्वार निर्मित होने से होती है। स्तूप के घेरे का व्यास 350 फीट तथा इसकी ऊंचाई 100 फ़ीट है। इसके सामने दो छोटे मौर्यकालीन स्तूप हैं, जिन्हें उज्जयिनी के बौद्ध उपासकों ने भिक्षु महेंद्र और भिक्षुणी संघमित्रा की स्मृति स्वरूप बनाये थे। बौद्धस्तूप, कुम्हार टेकरी का उत्खनन एवं सर्वेक्षण वर्ष 1938 में एम.बी. गर्ने महोदय ने किया था, जिसमें अनेक बौद्ध पुरावशेष प्राप्त हुए। वर्तमान में ये उज्जैन एवं कलकत्ता के संग्रहालयों में संरक्षित हैं।
(a) कुणाल
(b) जालौक
(c) तीवर
(d) सम्राट अशोक
व्याख्या: (d) मौर्य साम्राज्य का संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य था तथा उसकी मृत्यु के पश्चात बिंदुसार उत्तराधिकारी बना, उसने अपने शासनकाल में प्रांतीय राजधानियों तक्षशिला और अवन्ति पर समीपस्थ प्रांतों के लोगों के विद्रोहों को दबाने के लिए सम्राट अशोक को उज्जयिनी का प्रांतपाल घोषित किया था। राजकुमार अशोक ने उज्जयिनी में 11 वर्ष तक राज किया था किंतु राजा बिंदुसार की मृत्यु 269 ई. पू. में हो गई तत्पश्चात उसने अपने भाई सुशीम और उनके साथियों का वध कर विजयश्री प्राप्त कर उत्तराधिकारी बना।
टिप्पणी: मध्य प्रदेश के अवन्ति एवं चेदि जनपद प्रशासनिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण केंद्र थे। अवन्ति जनपद में विदेशी आक्रमक जातियों के प्रायः आक्रमण होते रहते थे, जिसे मगध से संचालन करना कठिन होता था। इन विदेशी आक्रमणकारियों को खदेड़ने के लिए मगध सम्राट बिंदुसार ने स्वयं अपने योग्य पुत्र राजकुमार अशोक को अवन्ति जनपद का प्रांतपति नियुक्त करके भेजा। रास्ते में बेसनगर (विदिशा) पड़ा तथा यह नगर अपने व्यापारिक श्रेणियों के लिए प्रसिद्ध था। यहां के प्रधान श्रेष्ठी के यहां राजकुमार अशोक रुके। श्रेष्ठी पुत्री देवी से कुमार का परिचय हुआ। दोनों एक दूसरे की ओर आकर्षित हुए। यह देखकर नगर सेठ ने अपनी कन्या का विवाह कुमार अशोक के साथ सम्पन्न कर दिया। विदिशा में कुछ दिन ठहरकर अशोक अपनी रानी महादेवी के साथ अवन्ति (उज्जैन) पहुंचा। शासन की सुविधानुसार अवन्ति जनपद को दो भागों में विभक्त किया उत्तरी अवन्ति जिसकी राजधानी उज्जयिनी और दक्षिणी अवन्ति जिसकी राजधानी माहिष्मती बनी उज्जयिनी में राजकुमार अशोक ने प्रांतपति के रूप में ग्यारह वर्ष तक शासन किया। अशोक के अभिलेख जबलपुर के पास रूपनाथ, दतिया के गुजर्रा, सिहोर के पास पानगुड़ारिया से प्राप्त हुए हैं। इससे स्पष्ट है कि मध्य प्रदेश के चतुर्दिक प्रदेश पर मौर्य साम्राज्य का अधिकार था।
विशेष: बिंदुसार के शासनकाल में अशोक ने अवन्ति महाजनपद को जीतकर मौर्य साम्राज्य में मिला लिया था, इसकी जानकारी बुद्ध घोष की समन्त पासादिका से मिलती है।
(a) गुजर्रा
(b) अहरौरा
(c) ब्रह्मागिरी
(d) सारनाथ
व्याख्या: (a) राजा बिंदुसार की सुभद्रांगी नामक रानी से सम्राट अशोक और विगताशोक नामक दो पुत्र पैदा हुए थे। सम्राट अशोक को बौद्ध धर्म ग्रंथों में धम्मराजा, देवनामप्रिय, चण्डाशोक, कालाशोक नाम भी दिए गए हैं। अशोक द्वारा अपने भाईयों का वध, अशोक नरकागार में अपराधियों का वध आदि के कारण ही संभवतः उसे चण्ड अभिहित किया गया है। पुराणों में अशोकवर्द्धन, अभिलेखों में देवानामप्रिय प्रियदर्शी, दीपवंश में प्रियदर्शी एवं प्रियदर्शन कहा गया है लेकिन मास्की, मध्य प्रदेश के गुजर्रा अभिलेख एवं कर्नाटक के कंगनहल्ली से प्राप्त अशोक नामांकित उत्कीर्ण प्रतिमा में अशोक नाम का उल्लेख मिलता है। ऐसा प्रतीत होता है कि उसका प्राथमिक नाम अशोक था, प्रियदर्शी व प्रियदर्शन उसकी उपाधियां थीं। कलिंग युद्ध के पश्चात जब उसने बौद्ध धर्म अपना लिया तब उसे देवनामप्रिय तथा धम्मराजा संबोधन प्राप्त हुए। अशोक ने अपने शिलालेखों में भी स्वतः के लिए धम्मराजा और प्रिय उल्लिखित करवाया है।
टिप्पणी: अशोक का गुजर्रा शिलालेख गुजर्रा स्थित यह शिलालेख सम्राट अशोक (268-232 ई.पू.) के लघु शिलालेख-1 की ही एक प्रतिलिपि है। यह प्रतिलिपि भारत वर्ष में अब तक 16 स्थानों से प्राप्त हुई है। इस स्थल की खोज झांसी के वन विभाग के ठेकेदार श्री लालचंद्र शर्मा ने की थी, जो इस स्थान पर नवंबर, 1953 में आये तथा अपनी इस खोज की घोषणा वर्ष 1954 में की। इस अभिलेख में कुल पांच पंक्तियां हैं, जिनकी लिपि मौर्यकालीन ब्राह्मी तथा भाषा पाली/प्राकृत है। जिस पहाड़ी पर यह शिलालेख है उसे स्थानीय लोक सिद्धों की तोरिया कहते हैं, जिसका अर्थ है सिद्ध/अच्छे व्यक्ति का निवास स्थान।
अशोक का यह अभिलेख इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां अशोक ने अपने नाम का प्रयोग अशोक राजा के रूप में किया है, जबकि अन्य अभिलेखों में अशोक ने अपने नाम के स्थान पर देवनामप्रिय प्रियदर्शी का विरुद/उपनाम का प्रयोग किया है। इस शिलालेख में अपने विरुद के प्रयोग के साथ अशोक का नाम मिलने से यह स्पष्ट हो सका कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में जिस देवनामप्रिय प्रियदर्शी के अभिलेख मिल रहे हैं वह कोई और नहीं बल्कि मौर्य सम्राट अशोक है। अशोक के कई अभिलेख भारतीय उपमहाद्वीप से प्राप्त हो चुके हैं, जिसमें से केवल चार स्थानों यथा दतिया (मध्य प्रदेश), मास्की (कर्नाटक), नित्तुर (कर्नाटक) व उदयगोलम (कर्नाटक) से ही अशोक का नाम मिलता है। इस अभिलेख में भारतीय उपमहाद्वीप के लिए जम्बूद्वीप शब्द का प्रयोग किया गया है। यहां अशोक स्वयं को बौद्ध धर्म का अनुयायी बताता है तथा संघ के साथ ढाई वर्ष से भी अधिक जुड़े होने का उल्लेख करता है। इस अभिलेख का मूल उद्देश्य वही है जो कि इसके सभी लघु शिलालेख क्र. 1 अभिलेखों का है, जिसमें अशोक ने सबसे अच्छा आचरण तथा सभी के प्रति दया दिखाने को कहा है।
(a) कुणाल
(b) महेंद्र
(c) तीवर
(d) जालौक
व्याख्या: (a) सम्राट अशोक के 4 पुत्र क्रमशः महेंद्र, तीवर, कुणाल और जालौक थे। अशोक के राज्यकाल में कुणाल उज्जयिनी का प्रांतीय शासक था तथा उसने अपनी शिक्षा-दीक्षा उज्जयिनी में ही प्राप्त की थी। वायुपुराण के अनुसार उज्जैन में अशोक के पुत्र कुणाल ने 8 वर्ष तक राज किया था तथा उसके पश्चात उसका पुत्र सम्प्रति उज्जयिनी का प्रांतीय शासक नियुक्त हुआ था। सम्प्रत्ति ने जैनाचार्य सुहस्ति से जैन धर्म की दीक्षा ग्रहण की थी। महेंद्र बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर बौद्ध भिक्षु हो गया था। सम्राट अशोक ने जब तृतीय बौद्ध संगीत का आयोजन पाटलीपुत्र में किया था तो महेंद्र और संघमित्रा के साथ अवन्ति प्रदेश के अनेक भिक्षु भिक्षुणियां तथा उपासक इसमें सम्मिलित हुए थे।
टिप्पणी: मौर्य साम्राज्य का अंतिम शासक बृहद्रथ था, जो एक बौद्ध शासक था। उसका सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने षडयंत्रपूर्वक राजा बृहद्रथ की 187 ई.पू. में हत्या कर दी थी।
विशेष: सम्राट अशोक के पुत्र महेंद्र ने श्रीलंका में बौद्ध धर्म का संदेश दिया था तथा उनके महानिर्वाण से प्राप्त कुछ अस्थियों को स्मृति स्वरूप उज्जयिनी में स्तूप का निर्माण कानीपुरा के बौद्ध महास्तूप के समक्ष तुलावटी संघ ने निर्मित करवाया, जो आज तुलावटी टेकरी के नाम से जाना जाता है।
(a) विदिशा
(b) अनूप
(c) उज्जैन
(d) निमाड़
व्याख्या: (c) मौर्य वंश के पतन के पश्चात मध्य प्रदेश के विस्तृत भू-भाग पर शुंग वंश का अधिकार रहा था। कालिदास द्वारा रचित मालविकाग्निमित्रम् के अनुसार, युवराज अग्निमित्र अपने पिता पुष्यमित्र शुंग के प्रतिनिधि के रूप में विदिशा में शासन करता था। अग्निमित्र ने अपने पिता पुष्यमित्र शुंग से विचार विमर्श करके विदर्भ युद्ध के पश्चात माधवसेन तथा यज्ञसेन को अपना राज्य बांट दिया तथा वर्धा नदी को दोनों राज्यों के मध्य की सीमा मानकर स्वीकार किया था। विदिशा शुंगो की दूसरी राजधानी थी तथा वह उज्जैन से संबंधित थे।
(a) अग्निमित्र
(b) भागवत
(c) चष्टन
(d) रुद्रसेन
व्याख्या: (b) शुंग वंश के आठवें शासक भागवत् (काशीपुत्र भागभद्र) के शासनकाल में ग्रीक राजा एंटिआल्किडस के राजदूत हेलियोडोरस ने विदिशा से आकर यहां भगवान विष्णु को समर्पित प्रसिद्ध गरुड़ स्तम्भ का निर्माण करवाया था, जिसे वर्तमान में खामबाबा के नाम से जाना जाता है। विंध्य क्षेत्र के प्रमुख नगर सतना से 14 किमी. दूर स्थित उचेहरा के भरहुत बौद्ध स्तूप का पुनर्निर्माण भी शुंगकाल में करवाया गया था। अशोक द्वारा बनवाए गये सांची स्तूप में चहारदीवारी और प्रवेश द्वार शुंगकाल में बनवाये गये।
टिप्पणी: गरूढ़ स्तम्भ पर उत्कीर्ण लेख से ज्ञात होता है कि गौतमीपुत्र भागवत द्वारा वासुदेव के प्रासादोत्तम (श्रेष्ठ मंदिर) में महाराज भागवत के राज्यकाल के बारहवें वर्ष में गरुड़ध्वज स्थापित करवाया गया था। इसी स्तम्भ के समीप किए गए उत्खनन से काष्ठ निर्मित द्वितीय शती ई.पू. के एक वृत्तायत मंदिर के अवशेष प्राप्त हुए हैं। सम्भवतः इस मंदिर के महत्व को देखते हुए ही उसके निकट गरुड़ स्तम्भ स्थापित किया गया था। इससे शुंगकाल में मध्य प्रदेश के इस क्षेत्र के महत्व पर स्पष्ट संकेत मिलता है।
(a) सोमादेवी
(b) प्रियदर्शना
(c) विक्रमादेवी
(d) सौम्यदर्शना
व्याख्या: (d) सोमदेव भट्ट द्वारा रचित कथासरित्सागर के अनुसार विक्रमादित्य उज्जैन के राजा थे। उनके पिता का नाम महेंद्रादित्य और माता का नाम सौम्यदर्शना था। जैनाचार्य मेरूतुंग रचित थेरावलि नामक ग्रंथ के अनुसार गर्दभिल्ल वंश का राजा उज्जयिनी में 153 वर्ष पर्यंत रहा तथा गर्दभिल्ल ने 13 वर्ष शासन करने के बाद गर्दभिल्ल के पुत्र विक्रमादित्य ने शकों को पराभूत कर उज्जयिनी का राज्य पुनः प्राप्त कर लिया और आगे सुदर्श पुरुष की सिद्धि प्राप्त कर समस्त विश्व को ऋणमुक्त किया एवं विक्रम संवत प्रचलित किया। विक्रमादित्य ने 60 वर्ष तक शासन किया। उसके बाद विक्रम चरित्र उपनाम धर्मादित्य ने 40 वर्ष तक, भाइल्ल ने 11 वर्ष तक नाइल्ल ने 14 वर्ष तक तथा नाहद्र ने 10 वर्ष तक इस प्रकार इसके चार वंशजो ने कुल मिलाकर 75 वर्ष तक शासन किया। पुनः शकों ने उज्जयिनी पर अधिकार कर लिया और शक संवत प्रारंभ किया। विक्रमादित्य द्वारा शकों का उन्मूलन कर विक्रम संवत की स्थापना की पुष्टि प्रबंधकोष एवं धनेश्वर सूरि रचित शत्रुंजयमहात्मय से भी होती है।
टिप्पणी: मालवा से संबंधित होने के कारण इसे मालव संवत के नाम से जाना जाता है तथा इसका अन्य नाम कृत संवत भी है।
(a) वेतालभट्ट
(b) वररूचि
(c) कालिदास
(d) नानुक
व्याख्या: (d) राजा विक्रमादित्य की राज्यसभा में नवरत्न क्रमशः धनवंतरि, क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, वेतालभट्ट, घटखर्पर, कालिदास, वराहमिहिर व वररुचि थे।
सम्राट विक्रमादित्य के परिवार का संक्षिप्त परिचय:पिता: गर्द भिल्ल, गंधर्वसेन, गर्दभवेश महेंद्रादित्य आदि नाम।
माता: सौम्यदर्शना, वीरमती, मदनरेखा आदि नाम।
बहन: मैनावती।
भाई: शंख, भर्तृहरि।
पत्नियां: मलयावती, मदनलेखा, पद्मिनी, चेल्ल और चिल्लमहादेव।
पुत्रियां: प्रियंगुमंजरी या विद्योत्तमा, वसुंधरा।
पुत्र: विक्रमचरित्र या विक्रमसेन और विनयपाल।
भानजा: गोपीचंद।
मित्र: भट्टमात्र।
वंशनाम: गर्दभिल्ल अथवा प्रसर।
पुरोहित: त्रिविक्रम, वसुमित्र।
मन्त्री: भट्ट, बहिसिंधु।
सेनापति: विक्रमशक्ति, चंद्र।
(a) भानुगुप्त
(b) स्कंधगुप्त
(c) समुद्रगुप्त
(d) कुमारगुप्त
व्याख्या: (a) मध्य प्रदेश के सागर जिले (एरण) में प्राप्त बुधगुप्त स्तम्भ से सम्राट भानुगुप्त का उल्लेख प्राप्त होता है। 510-11 ई. में सम्राट भानुगुप्त गोपराज नामक किसी अधीनस्थ के साथ उक्त स्थान पर एक भयंकर युद्ध लड़ा। इस युद्ध में गोपराज की मृत्यु हुई तथा उसकी स्त्री पति की चिता पर सती हुई। सम्भवतः उक्त स्तम्भ उसी स्थल पर लगाया गया था ऐसा लेख वराह की बृहदाकार मूर्ति पर उत्कीर्ण है। उक्त मूर्ति एवं उक्त मंदिर दोनों ही एरण में आज भी स्थित हैं। वहां के इस समय के तीन लेखों से हमें निम्नलिखित तथ्य प्रकट होते हैं:
- मातृविष्णु और धन्यविष्णु नामक भाइयों ने विष्णु का ध्वजस्तम्भ बनवाया था। उसकी एक पीढ़ी बाद मालवा में हूणों की विजय हुई।
- उस बड़े युद्ध में गोपराज मारा गया और भानुगुप्त की हार हुई।
- उक्त हूण राजा तोरमाण था, जिसने भानुगुप्त को हराया।
(a) धार
(b) उज्जैन
(c) मंदसौर
(d) रतलाम
व्याख्या: (c) औलिकर नरेश नरवर्मा का मालवा संवत 461 का मंदसौर अभिलेख तथा विहार कोटरा अभिलेख उसके पितामह जयवर्मा एवं पिता सिंहवर्मा का उल्लेख करता है। नरवर्मा का उत्तराधिकारी था विश्वकर्मा। उसके 423 ई. गंगधार अभिलेख से ज्ञात होता है कि वह एक स्वतंत्र शासक था, किंतु वह यह स्वतंत्रता अधिक समय तक कायम नहीं रख सका। उसके उत्तराधिकारी बंधुवर्मा का दशपुर अभिलेख विश्ववर्मा को गुप्त सम्राट कुमारगुप्त प्रथम का एक गोप्ता कहता है। मालव संवत 493 (436 ई.) का यह अभिलेख वहां लाट प्रदेश से आमंत्रित किये गये रेशमी वस्त्रों के बुनकरों की श्रेणी द्वारा एक सूर्य मंदिर के निर्माण का उल्लेख भी करता है। प्राकृतिक कारणों या किसी आक्रमण के कारण वह मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया था, जिसका जीर्णोद्धार इन तन्तुवायों ने 36 वर्षों बाद 472 ई. में करवाया था। बंधुवर्मा के अंतिम समय में बहुत सम्भव है गुप्त राजकुमार गोविंदगुप्त ने दशपुर को अधिकृत कर प्रभाकर को वहां शासक नियुक्त किया था। मालव संवत 524 (467 ई.) के प्रभाकर के मंदसौर के एक अभिलेख में गोविंदगुप्त एवं उसके सेनापति वायुरक्षित के पुत्र छत्रभट्ट का उल्लेख आया है। मंदसौर अभिलेख की रचना वत्सभट्ट ने की थी तथा इस अभिलेख को विश्व का प्रथम विज्ञापन अभिलेख भी कहा जाता है।
(a) काशी
(b) अंग
(c) अवन्ति
(d) वज्जि
व्याख्या: (c) चण्ड प्रद्योत अवन्ति प्राचीन गणराज्य के राजा थे। राजा प्रद्योत अपने समकालीन राजाओं में श्रेष्ठ थे। अतः उन्हें चण्ड कहा जाता था। बौद्ध ग्रंथ विनय पिटक के अनुसार चण्ड प्रद्योत के मगध नरेश बिम्बिसार के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध थे। जब चण्ड प्रद्योत पीलिया रोग से ग्रसित थे, तब बिम्बसार ने अपने राजवैद्य जीवक को उज्जयिनी भेजा था।
(a) वशपुर शिलालेख
(b) प्रयाग प्रशस्ति
(c) एरण शिलालेख
(d) हाथीगुम्फा शिलालेख
व्याख्या: (a) रेशम बुनकरों की श्रेणी की जानकारी दशपुर शिलालेख से मिलती है। गुप्त सम्राट कुमारगुप्त द्वितीय के शासनकाल (475 ई.) में मंदसौर से एक अभिलेख प्राप्त हुआ, जिसमें लाट देश से रेशम के व्यापारियों का दशपुर (मंदसौर का पुराना नाम) में आकर बस जाने का वर्णन है।
(a) पद्मगुप्त का नवसाहसांक चरित
(b) मेरुतुंग की प्रबंध चिंतामणि
(c) उदयपुर प्रशस्ति
(d) उपर्युक्त सभी
व्याख्या: (d) पद्मगुप्त नवसाहसांकचरित नामक महाकाव्य के रचयिता थे। नवसाहसांकचरित ऐतिहासिक काव्य है। इसमें मालवा के राजा सिंधुराज नवसाहसांक के चरित का भी वर्णन श्लेष के द्वारा उपस्थित करता है। प्रबंध चिंतामणि के रचनाकार मेरुतुंगचार्य को कहा जाता है। यह ऐतिहासिक ग्रंथ पांच खंडों में विभाजित है। इन खंडों से क्रमशः विक्रमांक सातवाहन, मूलराज, मुंज, नृपति भोज, सिद्धराज जयसिंह, कुमार पाल, लक्ष्मण सेन, जयचंद्र आदि के विषय में जानकारी मिलती है। उदयपुर प्रशस्ति से हमें भोज की राजनैतिक उपलब्धियों के बारे में सूचना प्राप्त होती है। इस प्रशस्ति के अनुसार भोज ने चेदिश्वर, इन्द्ररथ, तोग्गल, राजा भीम, कर्नाट, लाट और गुर्जर के राजाओं तथा तुर्कों को पराजित किया।
(a) उपेंद्र (कृष्णराज)
(b) सीयक प्रथम
(c) वाक्पति प्रथम
(d) राजा भोज
व्याख्या: (a) 'परमार' शब्द 'पर+मार' से निर्मित है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है 'शत्रुओं को मारने वाला'। मालवा में परमारों की स्वतंत्र सत्ता की स्थापना 10वीं शताब्दी के पांचवें दशक में परमार वंशी नरेश कृष्णराज ने 945 ई. में की थी। कृष्णराज को परमार नरेश उपेंद्र के नाम से भी जाना जाता है। 1812 ई. के आस-पास राष्ट्रकूट शासक गोविंद तृतीय ने प्रतिहार नरेश नागभट्ट द्वितीय से मालवा में विजय प्राप्त कर अपने सामन्त उपेंद्र (कृष्णराज) को सिंहासन पर बैठाया था जो परमार राजवंश का संस्थापक था।
टिप्पणी: उपेंद्र एक शक्तिशाली एवं महत्वाकांक्षी व्यक्ति था। इसकी प्रशंसा उदयपुर-प्रशस्ति में की गई है। वह आठवीं सदी के उत्तरार्द्ध में राजनैतिक परिस्थितियों का लाभ उठाकर 'अवन्ति' का शासक बना। शीघ्र ही उसने राष्ट्रकूट नरेश गोविंद तृतीय से संधि कर कन्नौज के चक्रायुध और गौड़ नरेश धर्मपाल से समझौता किया। जब प्रतिहार नरेश नागभट्ट तृतीय, मालवा की ओर आया तब उसने सम्भवतः उपेंद्रराज को पराजित किया। गोविंद तृतीय की मृत्यु 818 ई. में हो गई, जिसका लाभ उठाकर उसने राज्य विस्तार करना प्रारंभ कर दिया और मालवा पर अधिकार कर लिया।
यद्यपि प्रतिहारों द्वारा पुनः जीते जाने के बाद मालवा पर इस वंश का अधिकार समाप्त हो गया और 946 ई. तक प्रतिहारों के आधिपत्य में बना रहा। इसके पश्चात परमार वंश के बैरीसिंह द्वितीय ने राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण तृतीय से सहायता प्राप्त कर मालवा क्षेत्र पुनः अपने अधिकार में कर लिया। उदयपुर प्रशस्ति के अनुसार " उसने अपनी तलवार के बल पर यह सिद्ध कर दिया कि धारा (धार) उसी की है। " बैरीसिंह द्वितीय के शासनकाल में परमारों की राजधानी मूल स्थान उज्जैन से हटाकर धार ले जाई गई थी।
(a) वाक्पति द्वितीय या मुंज
(b) सिंधुराज
(c) हर्ष या सीयक द्वितीय
(d) राजा भोज
व्याख्या: (c) हर्ष या सीयक द्वितीय परमार वंश का महान शासक था जिसे सिंहदत्त भट्ट के नाम से भी जाना जाता है। हर्ष या सीयक द्वितीय ने प्रथम बार मालवा की धार नगरी को अपनी राजधानी बनाई थी। सीयक द्वितीय ने महाराजाधिराजपति एवं महामाण्डलिक चूड़ामणि जैसी उपाधियां धारण की थी। हरसोला दानपत्र के अभिलेख से ज्ञात होता है कि उसने माही नदी के पश्चिम में तथा खेटकमंडल (गुजरात) पर चालुक्य नरेश योगराज को पराजित किया था।
सीयक द्वितीय ने 972 ई. में अपने अधिपति राष्ट्रकूट नरेश खोत्तिग को परास्त कर मालवा के स्वतंत्र राज्य की स्थापना की जिसकी सीमाएं उत्तर में झालाबाड़, दक्षिण ताप्ति, पूर्व में भेलसा तथा पश्चिम में साबरमती तक फैली हुई थीं। सीयक द्वितीय ने अपने राज्यकाल के अंतिम समय में राष्ट्रकूटों की राजधानी मान्यखेट पर अधिकार कर लिया था, जिसके कारण परमारों की शक्ति और गौरव में अत्याधिक समृद्धि हुई।
सीयक द्वितीय ने अपने सामरिक शक्ति के आधार पर उसने राज्य की सीमा उत्तर में बांसवाड़ा से दक्षिण में नर्मदा नदी का तट और खेटकमंडल (गुजरात) और पूर्व में विदिशा तक विस्तृत कर लिया। उसने अपनी राजधानी मालवा में स्थापित कर परमार वंश को साम्राज्य के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया।
(a) भोपाल
(b) उज्जैन
(c) विदिशा
(d) रायसेन
व्याख्या: (d) परमार शासक सिंधुराज के पश्चात उसका पुत्र भोज (लगभग 1000 से 1055 ई.) मालवा के सिंहासन पर बैठा था। राजा भोज एक महान योद्धा के साथ-साथ महान विद्वान भी था। भोपाल ( भोजपाल ) शहर का नाम राजा भोज के नाम पर पड़ा है। राजा भोज ने भोपाल के निकट भोजपुर नामक ग्राम की स्थापना की और एक शिव मंदिर का निर्माण करवाया था। राजाभोज द्वारा भोजपुर में एक विशाल (साइक्लोपियन) बांध का निर्माण करवाया गया था। इस विद्वान राजा ने विभिन्न विषयों पर 23 ग्रंथों की रचना की।
आइने-ए-अकबरी के अनुसार, राजाभोज की राजसभा में 500 विद्वान थे, जिनमें से धनपाल, उवत आदि प्रमुख थे। उसने धार में संस्कृत के पठन-पाठन के लिए एक विद्यालय की स्थापना की थी, जिसे भोजशाला कहा जाता है। राजा भोज ने धार में सरस्वती वाग्देवी मंदिर का निर्माण करवाया था और सरस्वती जन्मोत्सव की परंपरा प्रारंभ की थी।
राजा भोज ने 1020 ई. में शिलाहार काशीदेव को पराजित कर कोंकण पर विजय प्राप्त कर ली और कुछ समय तक इसे अपने अधीन रखा। उसने उड़ीसा में महानदी के तट पर स्थित आदिनगर के शासक इन्द्ररथ को परास्त किया था। राजा भोज ने दक्षिण गुजरात के शासक कीर्तिराज से युद्ध किया था।
राजा भोज ने 1008 ई. में हिंदशाही आनंदपाल को महमूद गजनवी के विरुद्ध सहायता प्रदान की थी और उसके पुत्र त्रिलोचनपाल को 1019 ई. में अपने राज्य में आश्रय दिया था। राजाभोज ने त्रिपुरी के कलचुरि नरेश गांगेयदेव को परास्त किया था। 1047 ई. के लगभग कल्याणी के चालुक्य सोमेश्वर प्रथम ने राजा भोज को परास्त कर धार नगरी को लूट लिया था। उसके जीवन के अंतिम दिनों में चालुक्य शासक भीम तथा त्रिपुरी के कलचुरि राजा लक्ष्मी कर्ण ने संयुक्त रूप से मालवा पर 1055 ई. में आक्रमण किया, जिसमें राजा भोज की मृत्यु हो गई।
(a) महमूदशाह खिलजी
(b) औरंगजेब
(c) अकबर
(d) बाबर
व्याख्या: (a) राजा भोज ने 1034-35 ई. में अपनी राजधानी धार नगरी में एक भोजशाला का निर्माण भी करवाया था। यहां हिंदू जीवन दर्शन संस्कृति एवं संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार हेतु मां सरस्वती वाग्देवी का मंदिर भी निर्मित करवाया था। भोजशाला मुख्यतः वाग्देवी सरस्वती का मंदिर था जिसे महाकवि मदन ने परिब्जरी में बरहीभवन व भारतीभवन कहा है। यह पूर्वाभिमुख तथा आयताकार था एवं पश्चिम की ओर विमानगृह तथा सभागृह था सभामंडप में अत्यंत सुंदर अप्सराओं से मंडित शिखर था और दोनों ओर दो स्तम्भों पर नागबन्ध बने थे, जो वर्णमाला व विभक्ति प्रत्ययों का परिचय देते थे।
संस्कृत प्राकृत का अभ्यास करने वाले विद्यार्थी इसका अभ्यास करते थे, मंदिर सभागृह के मध्य में पर्याप्त स्थान छूटा था। आज जो भग्नावशेष है, उससे ज्ञात होता है कि सभा भवन शतस्तम्भी होगा। विमान के नीचे अन्तर्गर्भगृह में सरस्वती की प्रतिमा अधिष्ठित रही होगी। प्रबन्धकारों ने उल्लेख किया है कि सरस्वतीकण्ठाभरण - प्रासाद में धनपाल के काव्य की पट्टिकाएं भित्ति पर लगाई गई थीं। यहां से प्राप्त वाग्देवी सरस्वती की प्रतिमा को जिला पुरातत्व संग्रहालय में संरक्षित किया गया है। 1514 ई. में महमूदशाह खिलजी द्वारा भोजशाला को खंडित कर उसे मस्जिद में परिवर्तित कर दिए जाने के प्रमाण प्राप्त होते हैं।
टिप्पणी: राजा भोज के कवि धनपाल ने जैन धर्म स्वीकार कर लिया था।
(a) राणा प्रताप ने
(b) राजा धंग ने
(c) परमार राजा भोज ने
(d) पृथ्वीराज चौहान ने
व्याख्या: (c) राजा भोज ने राजस्थान के चित्तौड़ के समीप एक तालाब खुदवाया था जिसे भोजसर के नाम से जाना जाता है। राजा भोज ने राजस्थान के चित्तौड़ में त्रिभुवन नारायण का मंदिर, समाधीश्वर मंदिर, कश्मीर में कपटेश्वर (कोटक) मंदिर और पापसूदन कुण्ड बनवाने के साथ-साथ केदार, रामेश्वर, सोमनाथ, मुंडीर, महाकाल के पंचायतन मंदिरों का भी निर्माण करवाया था।
(a) समराङ्गणसूत्रधार
(b) सरस्वतीकण्ठाभरण
(c) श्रृंगारमंजरीकथा
(d) व्यवहारमंजरी
व्याख्या: (a) अलंकारिक रचयिता के रूप में भोज की ख्याति पर्याप्त है। इसमें भोज का सरस्वतीकण्ठाभरण सर्वाधिक लोकप्रिय है। इसके पांच परिच्छेदों में दोष, गुण, शब्दालंकार, अर्थालंकार, उभयालंकार तथा रस विवेचन है। श्रृंगारप्रकाश, सरस्वतीकण्ठाभरण का वृहत्त संस्करण है। इनके अतिरिक्त संक्षेप में समराडगणसूत्रधार भोज का सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रंथ है। इस ग्रंथ के 83 अध्याय उपलब्ध हैं। इसमें नगर नियोजन, भवन निर्माण, मंदिर स्थापत्य, मूर्तिशिल्प, प्रतिमा लक्षण, प्रतिमा विज्ञान, प्रतिमा मापन, प्रतिमाओं, प्रतिमाओं की मुद्रायें, हस्तमुद्रायें, शरीर भंगिमा एवं पाद मुद्राओं की विस्तृत व्याख्यायें प्रस्तुत हैं।
टिप्पणी: शृंगारमंजरीकथा भी संस्कृत कथा है, जो आख्यायिका के रूप में रचित है। इसी प्रकार व्यवहारमंजरी भोज की कृति मानी जाती है, जिसका उल्लेख महाभारत के समीक्षक विमलबोध ने किया है। भोज कृत दो कवितायें धार के भोजशाला में उत्कीर्ण हैं। इसी प्रकार दूसरी दो प्राकृत कविताएं धारा के भोजशाला से सूचित हैं, जिनमें 109 पद विष्णु के कच्छपावतार को समर्पित हैं।
(a) यशोवर्मन
(b) उदयादित्य
(c) जयसिंह
(d) विंध्यवर्मन
व्याख्या: (b) मालवा पर कुछ समय के लिए चालुक्यों एवं गुजरात के शासकों का आधिपत्य हो गया। ऐसी दशा में राजा भोज के चचेरे भाई उदयादित्य ने शाकम्भरी के चौहान शासकों से सहयोग प्राप्त करते हुए इन आक्रांताओं को मालवा से पुनः खदेड़ दिया। उदयादित्य के अभिलेखों से ज्ञात होता है कि उसके राज्य की सीमाएं दक्षिण में निमाड़, उत्तर में झालावाड़ राज्य और पूर्व में विदिशा तक फैली थीं।
अभिलेखों से ज्ञात होता है कि उसके दो पुत्र थे लक्ष्मदेव और नरवर्मन, जो इसकी मृत्यु के बाद क्रमशः शासक बने। अपने महान पूर्वजों मुंज एवं भोज के समान उदयादित्य ने सांस्कृतिक गतिविधियों को प्रोत्साहित किया। उसने विदिशा जिले में उदयपुर नगर बसाकर उसे मंदिरों से सजाया था। विदिशा के उदयपुर में भूमिज शैली आधारित नीलकंठेश्वर मंदिर स्थापत्य का अद्भुत एवं उत्कृष्ट प्रमाण है। यहीं पर उदयसमुद्र नामक तालाब खुदवाया। ऊन के मंदिरों में कुछ मंदिरों का निर्माण भी उदयादित्य ने ही करवाया था।
उदयादित्य महान शिवभक्त था और उसके द्वारा शिव मंदिरों को दान भी दिया गया। आधुनिक शेरगढ़ में निर्मित सोमनाथ मंदिर को विलपद्रक (बिलपांक) ग्राम दान किया। उसकी रानी शालमाली ने भोपाल में एक मंदिर का निर्माण करवाया था, जो सभा मंडल के नाम से जाना जाता था और वर्तमान में उस स्थान पर कुदसिया बेगम की मस्जिद खड़ी है।
(a) विंध्यवर्मन
(b) जयवर्मन प्रथम
(c) यशोवर्मन
(d) महलदेव
व्याख्या: (d) देवपाल के पुत्र जैतुगीदेव (1239-55 ई.) ने परमार वंश की सत्ता संभाली तथा उसे 1250 ई. में बलवन के आक्रमण का सामना करना पड़ा था। उसी समय गुजरात के बघेल शासक विशालदेव ने धार को तहस-नहस कर दिया और यादव राजा कृष्ण ने भी मालवा पर भीषण आक्रमण किया था। इस समय से मालवा का विघटन तेजी से आरंभ हुआ और पड़ोसी शक्तियां बड़े-बड़े क्षेत्रों को छीनने लगीं। 1283 ई. के बाद रणथम्भौर के हमीर चाहमान और जलालुद्दीन खिलजी ने परमारों के क्षेत्रों में लूटमार आरंभ कर दी थी।
अन्ततः अंतिम परमार शासक महलदेव अलाउद्दीन खिलजी के साथ युद्ध में 1305 ई. में मांडू के किले में मारा गया, जहां इस युद्ध में उसके मंत्री कोकादेव के मारे जाने के उपरांत उसे शरण लेनी पड़ी थी। इस प्रकार परमार वंश के अंतिम शासक महलदेव को अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति आईन उल मुल्क ने पराजित कर उसके मालवा के राज्य को दिल्ली सल्तनत में शामिल कर लिया था।
(a) कृष्णराज
(b) शंकरगण
(c) वामराज
(d) बुद्धराज
व्याख्या: (a) माहिष्मती का कलचुरि वंश अत्यंत प्राचीन था, जिसमें अनेक प्रतापी राजा हुए थे। इन्होंने अपना कलचुरि संवत 248 ई. में स्थापित किया था। पुराणों में हैहय कलचुरियों का उल्लेख मिलता है, जो कार्तवीय अर्जुन के वंशज थे। इस वंश के केवल तीन शासकों के नाम ज्ञात हुए है कृष्ण राज (लगभग 550-575 ई.) उसका पुत्र शंकरगण (लगभग 575-600 ई.) तथा पौत्र बुद्धराज (600 ई.)। इस राजवंश का वास्तविक संस्थापक कृष्ण राज था। कृष्ण राज के चांदी के सिक्के नासिक, अमरावती, बैतूल और जबलपुर से प्राप्त हुए है। इन मुद्राओं पर एक ओर राजा की आकृति है और दूसरी ओर नंदी की आकृति तथा ब्राह्मी अक्षरों में परम्महेश्वर माता पितृ पादानुध्यात श्री कृष्ण राज लिखा हुआ है। शंकरगण (576-600 ई.) का अधिपत्र नासिक जिले के अमोना से प्राप्त हुआ है, जो उज्जैन के विजयी शिविर से जारी किया गया था। बुद्धराज (शंकरगण का पुत्र) के समय में बतनगर (नासिक जिले के चांदेर तालुक में बड़नेर) में भूमिदान के उद्देश्य से विदिशा से बड़नेर अनुदान जारी किया गया था।
(a) कोकल्ल प्रथम
(b) युवराज देव प्रथम
(c) वामराज
(d) बालहर्ष
व्याख्या: (a) वामराज (675-700 ई.) ने डाहाल में त्रिपुरी शाखा की स्थापना की, जिसका विस्तार गोमती नदी से नर्मदा नदी तक था इसकी राजधानी त्रिपुरी (जबलपुर) थी। कलचुरि वंश का सुयोग्य एवं वास्तविक संस्थापक कोकल्ल प्रथम (850-890 ई.) था। उसने कन्नौज के प्रतिहार राजा भोज प्रथम से युद्ध किया था। कोकल्ल प्रथम की पुत्री का विवाह राष्ट्रकूट वंश के राजा कृष्ण द्वितीय के साथ हुआ था। उसके पश्चात उसका बड़ा पुत्र मुग्धतुंग त्रिपुरी का शासक नियुक्त हुआ। वह एक महान योद्धा था। उसने पूर्वी समुद्र के किनारे तक विजय प्राप्त की और दक्षिण कोशल के सोमवंशियों से पाली (बिलासपुर जिला) छीन लिया।
टिप्पणी: युवराज देव प्रथम (915-945 ई.) साहित्य का महान आश्रयदाता था। बाल रामायण, बाल भारत, कर्पूरमंजरी तथा काव्य मीमांसा के रचयिता राज शेखर उसकी साहित्य मंडली के दैदीप्यमान नक्षत्र थे। युवराज देव ने अपनी पटरानी नोहला की इच्छानुसार मत्तमयूर कुल के अनेक आचार्यों को आमंत्रित कर उनके लिए गुरगी (रीवा जिला), चंद्रेही बिलहरी तथा अन्य स्थानों पर शिव उत्कृष्ट मंदिरों और मठों का निर्माण कराया था।
भेड़ाघाट में अपनी राजधानी के समीप ही उसने एक गोलाकार एवं खुले (छत रहित) चौंसठ योगिनी (गोलकी मंदिर) मंदिर का निर्माण करवाया। इनके समीप स्थित मठ गोलकी मठ कहलता है। उसकी रानी नोहला ने दमोह जिले के नोहटा में नोहलेश्वर शिव मंदिर का निर्माण कराया था। युवराज प्रथम का एक बहुत ही योग्य एवं बुद्धिमान मंत्री भाकमिश्र था, जो विद्दशाल भंजिका में वर्णित भागुरायण का ही दूसरा नाम है। युवराज देव प्रथम का एक अन्य मंत्री गोल्लक था, जिसका शिलालेख बांधवगढ़ में मिला है। उसने वहां चट्टानों पर विष्णु के अवतारों की प्रतिमाओं को उत्कीर्ण करवाया था।
(a) खजुराहो
(b) कलिंजर
(c) हटा
(d) नहोता
व्याख्या: (a) चंदेल शासक आरंभ में प्रतिहारों के सामंत थे। वे स्वयं को चंद्रदेवता एवं काशी के गहरवार नरेश के राजपुरोहित की पुत्री हेमवती की संतान मानते थे। लोक मान्यताओं के अनुसार इनका मूल निवास स्थान छतरपुर जिले में मनियागढ़ था। किंतु पुरालेखों के अनुसार इस राजवंश की प्राचीन राजधानी खरजुरवाहक (वर्तमान खजुराहो) थी। इसके पश्चात उसका पुत्र वाक्पति राजा बना। वाक्पति अपनी सैन्य क्षमताओं और बुद्धिमत्ता के लिए प्रसिद्ध था, जिसने अपना राज्य विंध्य पर्वत तक विस्तृत किया था। विंध्य पर्वत को उसका आनंद धाम कहा गया है। वाक्पति का पुत्र जयशक्ति या जेजाज या जेजा हुआ, जिसके नाम पर चंदेलों का प्रदेश जेजाकभुक्ति (वर्तमान बुंदेलखंड) कहलाया।
टिप्पणी: चंदेलों ने जेजाकभुक्ति (बुंदेलखंड) पर नवीं शती ई. के प्रारंभ से चौदहवीं शती ई. के प्रथम चरण तक शासन किया। इस राजवंश का पहला शासक नन्नुक था, जिसने 831 ई. के लगभग चंदेल राजवंश की आधारशिला रखी। जनश्रुतियों में चंदेल वंश का संस्थापक चंद्रवर्मा बताया गया है। प्रायः सभी विद्वान चंद्रवर्मा और नन्नुक को एक मानते हैं। खजुराहो लक्ष्मण मंदिर अभिलेख से विदित होता है कि नन्नुक के "आदेश को उसके शत्रु पुष्पोपहार की भाँति शिरोधार्य करते थे और उसका शौर्य देवताओं और अर्जुन का स्मरण दिलाता था। "निःसन्देह उपर्युक्त वर्णन सामान्य प्रशंसा है, जिससे नन्नुक की उपलब्धियों पर विशेष प्रकाश नहीं पड़ता तो भी उसके 'नृप', 'नृपति' और 'महीपति' विरूदों से उसके राजनीतिक प्रभाव का अनुमान लगाया जा सकता है।
(a) धंग
(b) राहिल
(c) यशोवर्मन
(d) महलदेव
व्याख्या: (c) खजुराहों के शिलालेखों में यशोवर्मन की हिमालय से लेकर मालवा तक और कश्मीर से बंगाल तक विस्तृत विजय अभियानों की प्रशंसा की गई है। इन पुरालेखों में उसके गोंड, कोशल, कश्मीर, मिथिला, चेदि और गुर्जर प्रदेशों एवं कालिंजर किले पर विजय का वर्णन किया गया है। देवपाल से यशोवर्मन को विष्णु की प्रतिमा प्राप्त हुई थी, जो देवपाल के पिता को कांगड़ा नरेश साही से प्राप्त हुई थी, साही ने यह मूर्ति भोज या तिब्बत के राजा से प्राप्त की थी। इस प्रतिमा की स्थापना के लिए यशोवर्मन ने खजुराहों में भव्य मंदिर का निर्माण कराया, जो आज चतुर्भुज मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।
(a) चतुर्भुज और पार्श्वनाथ मंदिर
(b) पाश्र्वनाथ और विश्वनाथ मंदिर
(c) विश्वनाथ और लक्ष्मण मंदिर
(d) लक्ष्मण और विश्वनाथ मंदिर
व्याख्या: (b) यशोवर्मन का पुत्र व उत्तराधिकारी धंग (956-1002 ई.) चंदेल वंश का सर्वाधिक प्रतापी राजा था। उसने अपने पिता से प्राप्त राज्य का और अधिक विस्तार किया। उसने प्रतिहार राजाओं की अधीनता से मुक्ति प्राप्त कर उनके पूर्वी राज्य पर अधिकार कर लिया था। उसने पाल शासकों के अधीन बनारस पर अधिकार कर लिया था तथा आंध्र, कुन्तल, कोशल के राजाओं से भी युद्ध किया था। 954 ई. के खजुराहों शिलालेख के अनुसार उसने कालिंजर से मालव नदी (बेतवा) तक, मालव नदी से कालिंदी नदी (यमुना), कालिंदी नदी से चेदि राज्य की सीमाओं और गोपाद्रि पर्वत तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया था। राजा धंग ने सुबुक्तगीन के विरुद्ध जयपाल को सहायता भेजी थी। धंग ने 100 वर्ष से अधिक आयु के पश्चात स्वेच्छा से गंगा-यमुना के संगम में समाधि लेकर प्राण त्याग दिए थे। धंग ने ललित कलाओं और विद्वानों को संरक्षण दिया तथा अपने शासनकाल में खजुराहो में अनेक मंदिरों का निर्माण कराया। धंग के शासनकाल में खजुराहो के दो श्रेष्ठतम मंदिरों पार्श्वनाथ और विश्वनाथ का निर्माण हुआ था।
(a) राजा धंग
(b) राजा गण्ड
(c) राजा विद्याधर
(d) राजा देववर्मन
व्याख्या: (b) 1002 ई. में राजा धंग की मृत्यु के पश्चात चंदेल वंश में राजा गण्ड का सिंहासनारोहण हुआ। उसने आनंदपाल शाही को महमूद गजनवी के विरुद्ध सहायता प्रदान की थी। राजा गण्ड ने अपने शासनकाल के समय खजुराहो में जगदम्बी नामक वैष्णव मंदिर तथा चित्रगुप्त नामक सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था।
(a) राजा यशोवर्मन
(b) राजा मदन बर्मन
(c) राजा गण्ड
(d) राजा विद्याधर
व्याख्या: (d) 1019 ई. में महमूद गजनवी ने कालिंजर एवं ग्वालियर पर आक्रमण किया था, उस समय चंदेल वंश का शासक राजा विद्याधर था। 1019 ई. में महमूद गजनवी ने कालिंजर एवं ग्वालियर पर आक्रमण किया था तथा 1195-96 ई. में मोहम्मद गोरी ने ग्वालियर के सल्लक्षण या लोहांग देव पर आक्रमण किया था। लगभग इसी समय गोरी ने ऐबक और तुगरिल के साथ त्रिभुवनगढ़ और ग्वालियर दुर्ग पर आक्रमण किया और सफलता प्राप्त की।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1202-03 ई. में बुंदेलखंड पर आक्रमण किया और चंदेल शासक परमार्दिदेव को पराजित कर कालिंजर, महोबा और खजुराहो पर अधिकार कर लिया।
टिप्पणी: मालवा क्षेत्र में कुतुबुद्दीन ऐबक ने प्रथम आक्रमण उज्जैन पर किया था। उसने 1196-97 ई. में उज्जैन में लूटपाट की किंतु उसकी यह विजय स्थायी नहीं रही।
(a) मंगलदेव
(b) देवपाल
(c) नरवर्मन
(d) दलकेश्वर
व्याख्या: (a) 1199 ई. में सिरोही की विजय के पश्चात कुतुबुद्दीन ऐबक ने मालवा अभियान प्रारंभ किया था तथा उसने 1231 ई. में ग्वालियर के शासक राजा मंगलदेव को परास्त किया था। ग्वालियर की विजय से इल्तुतमिश के लिए मालवा की विजय का मार्ग खुल गया। 1233-34 ई. में इल्तुतमिश ने मालवा पर पुनः आक्रमण किया। मालवा पर उस समय परमारवंशीय शासक देवपाल राज्य कर रहा था। उसने सर्वप्रथम भेलसा नगर पर अधिकार कर लिया। भेलसा से वह उज्जैन की ओर बढ़ा, वहां के प्रसिद्ध महाकाल के मंदिर को ध्वस्त किया। इस अभियान का वर्णन मिनहाज और फरिश्ता दोनों ने किया है।
टिप्पणी: इल्तुतमिश के मालवा अभियान से परमार शासकों को सचेत हो जाना चाहिए था, परंतु इसके बावजूद मालवा के परमार नरेश जयतुंगिदेव ने अपनी प्रतिरक्षा की कोई महत्वपूर्ण योजना नहीं बनाई। 1250 ई. में सुल्तान नासिरुद्दीन ने बलबन को भेजा। सर्वप्रथम बलबन ने नरवर पर आक्रमण किया तथा इसी समय 1251 ई. में बलबन ने चंदेरी और नरवर के राजा चहाड़देव या दहरदेव पर आक्रमण किया।
विशेष: खिलजी वंश के संस्थापक जलालुद्दीन खिलजी (1290-1296 ई.) ने मांडू (धार) को लूटा था। अलाउद्दीन खिलजी ने मानिकपुर के हाकिम के रूप में उज्जैन और विदिशा के मंदिरों को लूटा था। मालवा के शासक महलकदेव को उसके सेनापति ऐन-उल-मुल्क ने पराजित किया था। 1292 ई. में अलाउद्दीन ने चंदेरी पर अधिकार कर लिया और फिर विदिशा पर आक्रमण किया। 1294 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने देवगिरि का अभियान किया, जिसके लिए वह मालवा होकर गुजरा था। 1295 ई. में जलालुद्दीन खिलजी शिकार के एक अभियान पर ग्वालियर आया था और उसने यहां पर यात्रियों के ठहरने के लिए एक भवन निर्मित करवाया था। 1296 ई. में सुल्तान बनने के पश्चात अलाउद्दीन खिलजी ने मालवा पर आक्रमण किया, जिसका नेतृत्व उसके सेनापति ऐन-उल-मुल्क ने किया था। 1305 ई. में ऐन-उल-मुल्क के नेतृत्व में अलाउद्दीन खिलजी ने अपने सैनिकों का दल मालवा पर आक्रमण करने हेतु भेजा। इस आक्रमण में परमार शासक हरनंद की मृत्यु हो गई।
(a) दिलावर खां
(b) अलाउद्दीन खिलजी
(c) जलालुद्दीन खिलजी
(d) गयासुद्दीन खिलजी
व्याख्या: (a) नासिरुद्दीन द्वितीय के मालवा से प्रस्थान करने के पश्चात 1401 ई. में दिलावर खां ने मालवा में स्वतंत्र मुस्लिम राज्य की स्थापना की। उसका वास्तविक नाम हुसैन था और वह दमिश्क के सुल्तान शहाबुद्दीन का वंशज था। उसने अपने पुत्र अनप खां के आग्रह पर 'सुल्तान आदिमशाह' दाऊद दिलावर खां गोरी की पद्वी धारण की और धार को अपनी राजधानी बनाया। दिलावर खां गोरी का प्रारंभिक नाम मालिक उम्मेदशाह था। परंतु फरिस्ता इतिहासकार ने उसका नाम हुसैन बताया है। उसकी मां दमिश्क के सुल्तान शिहाबुद्दीन गोरी की वंशज थी। इसके पूर्वज अफगानिस्तान के गोर नगर के निवासी थे। इसका दूसरा नाम अमीनशाह भी था। सुल्तान बनने से पूर्व वह मालवा का चुंगी अधिकारी, अमीर व प्रांतपति बना दिया गया था। उसकी योग्यता एवं स्वामी भक्ति की प्रशंसा स्वयं सुल्तान फिरोजशाह तुगलक ने भी की थी। इसीलिए उसे अमीनशाह ने दिलावर खां की उपाधि दी थी।
टिप्पणी: 1406 ई. में दिलावर खां की मृत्यु के बाद उसका पुत्र होशंगशाह गोरी गद्दी पर बैठा। उसका मूल नाम अनप खां था, उसने धार से अपनी राजधानी शादियाबाद (मांडू) स्थानांतरित की थी।
विशेष: हुशंगशाह गोरी (1405-1435 ई.) ने काल्पी तथा गागरोन में विजय प्राप्त करते हुए नर्मदा नदी के किनारे होशंगाबाद शहर की स्थापना की थी।
(a) आसा अहीर
(b) शहजादा मुराद
(c) मलिक रजा
(d) आदिल खान द्वितीय
व्याख्या: (c) 15-16वीं शताब्दी में वर्तमान मध्य प्रदेश का पश्चिमी क्षेत्र खानदेश के फारूकी राजवंश के अधिकार क्षेत्र में रहा। यह क्षेत्र ताप्ती नदी के तट पर स्थित था, जिसका संस्थापक मलिक रजा था। उस समय असीरगढ़ पर आसा अहीर नामक राजा शासन करता था, जिसने मलिक रजा का स्वामित्व स्वीकार कर लिया था।
1398 ई. में मलिक रजा ने दिल्ली सल्तनत से स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया और अपने पुत्र नासिर का विवाह मालवा के प्रथम गोरी शासक दिलावर खां की पुत्री के साथ किया। उस समय असीरगढ़ किले को दक्कन के रास्ते का पहरुआ (पहरेदार) अर्थात दक्षिण का प्रवेश द्वार माना जाता था। मलिक रजा की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र मलिक नासिर गद्दी पर बैठा और असीरगढ़ को अपना मुख्यालय बनाया। अपने धर्म गुरू संत जैनुद्दीन की सलाह पर उसने ताप्ती नदी के दोनों तटों पर जैनाबाद और बुरहानपुर की स्थापना की।
(a) शुजाअत खां
(b) कादिर खां
(c) मल्लू खां
(d) मालदेव
व्याख्या: (a) मध्यकालीन भारतीय इतिहास के पृष्ठों में फरीद, शेरशाह व शेरखां का नाम एक विजेता एवं शासन प्रबंधक के रूप में लिया जाता है। वह एक महान सैनिक एवं सेनापति था, जो अपनी विजय और प्रशासन में अकबर का अग्रदूत अथवा पथ प्रदर्शक भी माना जाता था। उसका शासन काल 1540 से 45 ई. अर्थात 5 वर्ष तक रहा। इस बीच उसने अपना विशाल साम्राज्य भी स्थापित कर लिया था। 1542 ई. में मालवा का शासन गुजरात के अधीन मल्लू खां की सूबेदारी में था। परंतु बहादुरशाह की मृत्यु के बाद मल्लू खां ने स्वतंत्र शासक के रूप में मालवा पर अपना अधिकार जता लिया था। मल्लू खां ने अपने नाम के आगे कादिरशाह की उपाधि धारण कर ली थी। 1537 ई. से ही मांडू, सारंगपुर, उज्जैन और रणथम्भौर के कुल 67 जिलों पर उसका आधिपत्य था। उसने 1540 ई. में शेरशाह के पुत्र कुतुब खां को सहायता देने व शेरशाह की अधीनता मानने से मना कर दिया था, जिसके कारण काल्पी के युद्ध में हुमायूं के भाई अस्करी एवं हिन्दाल के द्वारा उसे मार दिया गया था और 1543 ई. में रायसेन पर पूरनमल के विरुद्ध आक्रमण कर विजय प्राप्त की तथा शुजायत खां को मालवा का सूबेदार नियुक्त कर वापस चला गया। मालवा में इसी सूबेदारी के दौरान शुजाअत खां ने शुजाअतपुर नामक नगर बसाया था, जो बाद में शुजाअतपुर तथा कालांतर में शुजालपुर हो गया।
(a) दाराशिकोह
(b) आसफ खां
(c) बहादुर शाह
(d) सुल्तान बहादुर
व्याख्या: (d) आम्हणदास 1513 ई. में गढ़ा मंडला में सत्तारूढ़ हुआ था तथा अबुलफजल के अनुसार 1531 ई. में गुजरात के सुल्तान बहादुर को उसने रायसेन विजय के समय सहायता प्रदान की थी, जिसके फलस्वरूप सुल्तान बहादुर शाह ने उसे संग्राम शाह की पद्वी देकर सम्मानित किया। संग्राम शाह के 2 बेटे दलपतशाह और चंद्रशाह थे तथा दलपतशाह का विवाह 1542 ई. में महोबा के चंदेल राजा सालवाहन की पुत्री दुर्गावती से हुआ था। संग्रामशाह ने चौरागढ़ (जिला नरसिंहपुर मध्य प्रदेश) का दुर्ग बनवाया और सिंगौरगढ़ किले के निकट उसने संग्रामपुर (जिला दमोह मध्य प्रदेश) नामक ग्राम बसाया। संग्रामशाह ने सम्भवतः गढ़ा के निकट मदनमहल नामक एक भवन का निर्माण कराया। गढ़ा के निकट संग्राम सागर नामक एक सरोवर और उसके तट पर बाजनामठ भी इसी शासक ने निर्मित कराए। संग्रामशाह मात्र एक विजेता नहीं था बल्कि उसने साहित्य को भी प्रश्रय दिया। उसने संस्कृत काव्य ग्रंथ रसरत्नमाला की रचना की। उसने हिंदू दर्शन विद्या और संस्कृति के तत्कालीन गढ़ मिथिला से भी विद्वान आमंत्रित किए, ऐसे एक विद्वान दामोदर ठाकुर थे, जो प्रसिद्ध महेश ठाकुर के अग्रज थे। दामोदर ठाकुर ने संग्रामसाहीयविवेकदीपिका और दिव्य निर्णय नामक दो निबंध लिखे।
(a) वीरनारायण
(b) दलपत शाह
(c) रानी दुर्गावती
(d) चंद्रशाह
व्याख्या: (b) 1543 ई. में संग्रामशाह की मृत्यु के पश्चात दलपत शाह गढ़ा मंडला का शासक नियुक्त हुआ तथा उसने राज्यारोहण के शीघ्र बाद अपनी राजधानी गढ़ा से सिंगौरगढ़ स्थानांतरित कर दी। दलपतिशाह के समय की अन्य किसी घटना का उल्लेख नहीं मिलता। गढ़ा राज्य के दुर्भाग्य से दलपतिशाह शासन सुख का उपभोग अधिक समय तक न कर सका। अबुल फजल के अनुसार शासन के सातवें वर्ष में दलपतिशाह की मृत्यु हो गई और उस समय उसके पुत्र वीरनारायण की आयु केवल 5 वर्ष की थी। अनुमान है कि दलपतिशाह की मृत्यु 1550 ई. में हुई।
(a) दमोह
(b) हटा
(c) गढ़ा
(d) नरवई
व्याख्या: (a) 1562 ई. में मालवा के शासक बाजबहादुर को परास्त करने के पश्चात अब्दुल मजीद अर्थात आसफ खां मानिकपुर का प्रशासक नियुक्त हुआ था, उसने रानी दुर्गावती के विरुद्ध युद्ध का शुभारंभ दमोह के सिंगौरगढ़ के किले से किया था। रानी दुर्गावती के साथ उनके पुत्र राजा बीरसा (वीरनारायण) और शम्सखान मियाना तथा मुबारक बिलूच ने शाही फौज के साथ युद्ध भूमि में सहयोग किया था। युद्ध में रानी दुर्गावती जख्मी या घायल हो गई थी और पराजय को नजदीक देखकर अपने महावत आधारसिंह वखिला से कटार मारने के लिए कहा था किंतु उसने ऐसा करने से मना कर दिया तब स्वयं अपने पर आघात करके वह वीरगति को प्राप्त हो गई। रानी दुर्गावती एवं आसफ खां के इस युद्ध को नर्रई के युद्ध (1564 ई.) के नाम से जाना जाता है।
(a) बड़ौनी
(b) ओरछा
(c) मऊ माहोनी
(d) दतिया
व्याख्या: (c) बुंदेला ठाकुरों का उद्भव अयोध्या के राजा रामचंद्र के ज्येष्ठ पुत्र लव के वंश से माना जाता है। आठवीं सदी में कर्तराज नाम का राजा काशी में हुआ था। उसने अशुभ ग्रहों के निवारण के लिए शांति पाठ करवाया था, जिसके कारण उसक वंशज ग्रहनिवार कहलाये, जो बाद में अपभ्रंश होकर गहिरबार/गहरवार नाम से प्रसिद्ध हुए थे। इसी गहिरबार वंश के पंचम बुंदेला के पुत्र वीर बुंदेला ने तेरहवीं सदी के मध्य में मऊ-महोनी में अपनी नवीन राजधानी कायम कर बुंदलखंड में अपना राज्य स्थापित किया था। यह मऊ-माहोनी पहूज नदी के किनारे उत्तर प्रदेश के जालौन जिले में मध्य प्रदेश की भिंड जिले की मिहोना तहसील की सीमा से लगा हुआ है। वीर बुंदेला के नाती अर्जुन पाल ने बुंदेलों की इस राजधानी मऊ-माहोनी के आसपास के भू-भागों पर कब्जा कर अपने राज्य को दृढ़ता प्रदान की थी। अधिकांश लेखक यही मानते हैं कि बुंदेला ठाकुर, विंध्यक्षेत्र या विध्यावटी पर्वत अंचल के भू-भाग में राज्य स्थापित करने के कारण विंध्येला और बाद में बुंदेला नाम से प्रसिद्ध हुए थे। उनके राज्य के भाग बाद में बुंदेलाओं के राज्य स्थान होने के कारण बुंदेलखंड प्रदेश के नाम से आगे के इतिहास में जाने पहचाने गए थे। माना जाता है कि चौदहवीं सदी के अंत से इस भू-भाग का नाम जेजाकभुक्ति के स्थान पर बुंदेलखंड पड़ा था।
(a) मलखान सिंह
(b) रुद्रप्रताप सिंह बुंदेला
(c) वीरसिंह
(d) देवीसिंह
व्याख्या: (b) मध्य प्रदेश के वर्तमान निवाड़ी जिले में बेतवा नदी के तट पर स्थित ओरछा को बुंदेलों की नवीन राजधानी के रूप में मलखान सिंह के उत्तराधिकारी रुद्रप्रताप सिंह बुंदेला ने 3 अप्रैल, 1531 को स्थापित किया था। बेतवा नदी के तट पर स्थित ओरछा नगर को बुंदेली भाषा में ओड़छा के नाम से जाना जाता है तथा इसका पुराना नाम गंगापुरी था।
टिप्पणी: रुद्रप्रताप सिंह बुंदेला के पश्चात भारतीचंद बुंदेला ओरछा के शासक नियुक्त हुए थे, जिन्होंने ओरछा का दुर्ग, राजमंदिर, रानी महल, शहरपनाह आदि बुंदेलखंड क्षेत्र में निर्मित करवाये थे। भारतीचंद बुंदेला जिस समय ओरछा के शासक नियुक्त हुए थे, उस समय हुमायूं और शेरशाह सूरी के मध्य संघर्ष चल रहा था तथा शेरशाह सूरी ने बुंदेलखंड के प्रसिद्ध दुर्ग कालिंजर पर रीवा के शासक वीरभान बघेला को पकड़ने के लिए आक्रमण किया था और वीरभान बघेला कीरतसिंह चंदेल के पास जाकर कालिंजर के दुर्ग में छिप गए थे। 22 मई, 1545 ई. को कालिंजर के दुर्ग में बारूद में विस्फोट होने के कारण शेरशाह सूरी की मृत्यु हो गई थी और भारतीचंद ने इस युद्ध में अपने भाई मधुकर शाह और कीरतसिंह को सैन्य टुकड़ी भेजकर मदद की थी।
(a) ग्वालियर
(b) ओरछा
(c) खजुराहो
(d) दतिया
व्याख्या: (d) मधुकरशाह के बाद उनके ज्येष्ठ पुत्र रामशाह बुंदेला (1592-1605 ई.) ओरछा के शासक हुए थे। मधुकरशाह के आठ पुत्रों में एक पुत्र वीरसिंहदेव को वर्तमान में दतिया जिले में स्थित छोटी बड़ोनी की जागीर मिली थी। वीरसिंहदेव ने 1592 ई. में बड़ोनी पहुंचते ही आस-पास के ग्वालियर नरवर, पवाया, करहरा आदि के मुगल क्षेत्रों में लूटमार कर अनेक मुगल थानों पर कब्जा कर लिया। उनकी इन विद्रोही गतिविधियों को दबाने के लिए अकबर ने लगातार वीरसिंहदेव पर मुगल सेनायें भेजीं। परंतु वह हर बार मुगल सेनाओं को चकमा देकर सघन वनों में भाग जाने में सफल हुआ। इस बीच वीरसिंहदेव ने अकबर के विद्रोही पुत्र शहजादा सलीम से सम्पर्क कर उन्हें अपने पक्ष में कर लिया। शहजादे के कहने पर वीरसिंहदेव ने दक्षिण से आगरा की ओर जाते समय अकबर के विशिष्ट मंत्री अबुल फजल का वध नरवर आंतरी के मध्य सराय बरार में 9 अगस्त, 1602 ई. को कर दिया। शहजादे का मानना था कि अबुल फजल बादशाह को उसके विरुद्ध बरगलाता रहता है। इस घटना के बाद सलीम जहांगीर बादशाह के नाम से अक्टूबर, 1605 ई. में गद्दी पर बैठा और उसने सार्वजनिक रूप से यह कहते हुए कि वीरसिंहदेव की वजह से उसे यह गद्दी प्राप्त हुई है, वीरसिंहदेव को ओरछा की गद्दी सौंप कर पूरे बुंदेलखंड का राज्य उसे दे दिया। वीरसिंहदेव के अग्रज रामशाह को जो इस समय ओरछा का शासक था, इस समय मुगल दबाव के कारण बार-चंदेरी की जागीर से संतोष करना पड़ा।
(a) राणा संग्राम सिंह
(b) बादशाह जहांगीर
(c) वीरसिंह बुंदेला
(d) देवीसिंह बुंदेला
व्याख्या: (a) बुंदेलखंड का चंदेरी राज्य ओरछा के दक्षिण-पश्चिम में स्थित था, वहां का शासक मेदनीराय, राणा संग्राम सिंह को अपना संरक्षक मानता था। चंदेरी वर्तमान में अशोकनगर जिले के अंतर्गत स्थित है तथा इसे मालवा प्रांत का प्रवेश द्वार माना जाता था। बाबर ने पानीपत के युद्ध में विजय के पश्चात चित्तौड़ के राणा सांगा पर आक्रमण करने की योजना बनाई थी। क्योंकि वह उस समय राजपूतों का सबसे बड़ा सहयोगी था। 1527 ई. में भरतपुर के समीप खानुवा नामक स्थान पर चंदेरी के मेदनीराय ने राणा सांगा की ओर से बाबर के विरुद्ध युद्ध लड़ा था, जिसमें राणा सांगा की पराजय हुई। अंतत: 1528 ई. में चंदेरी के मेदनीराय के पास बाबर ने अपने दूतों को भेजकर अपने सानिध्य में आने का प्रस्ताव रखा किंतु मेदनीराय ने युद्ध से पीछे नहीं हटने का निर्णय लिया और चंदेरी राजपरिवार की सैंकड़ों महिलाओं ने इस युद्ध में मेदनीराय की पराजय के पश्चात जौहर कर लिया था।
(a) वीरसिंह बुंदेला
(b) उदोत सिंह
(c) चंपतराय बुंदेला
(d) भगवान सिंह
व्याख्या: (c) महाराजा छत्रसाल बुंदेला के पिता का नाम चंपतराय बुंदेला था। वह ओरछा के संस्थापक रुद्रप्रताप बुंदेला के तीसरे पुत्र उदयाजीत का पौत्र था। उसे ओरछा राज्य की महेबा की छोटी सी महत्वहीन जागीर प्राप्त हुई थी, जिसे नुना महेबा या महेबाचक भी कहा जाता है, जो टीकमगढ़ जिले के अंतर्गत जतारा तहसील के समीप स्थित है। बुंदेलखंड के इतिहास में महाबली के नाम से प्रख्यात छत्रसाल बुंदेला का जन्म 4 मई, 1649 को हुआ था और 16 वर्ष की आयु में छत्रसाल ने दक्षिण भारत के मुगल अभियान की सेना नायक मिर्जाराजा जयसिंह की सेना में कार्य करना स्वीकार किया था। छत्रसाल ने 1675 ई. में अपने डंगाई राज्य की राजधानी के रूप में पन्ना का भी चयन किया था। छत्रसाल का डंगाई क्षेत्र उत्तर में काल्पी, दक्षिण में सागर - सिरौंज और पश्चिम में ओरछा - दतिया राज्य की सीमा तक स्थित था।
(a) पाली
(b) गहोरा
(c) बिरसिंहपुर
(d) सोहागपुर
व्याख्या: (b) बघेल मूलतः चालुक्य है। अन्हिलवाड़ा (गुजरात) के सोलंकी शासक कुमारपाल (1143-73 ई.) ने अपनी मौसी के पुत्र अणराज की सेवा से प्रसन्न होकर उसे व्याघ्रपल्ली (बघेलबारी) की सामंती प्रदान कर दी। साथ ही उसे अपना मंत्री भी बना लिया। इसी अर्णोराज के पुत्र लवण प्रसाद को गुजरात के लेखों में व्याघ्रपल्लीय उल्लिखित किया गया है, जो कालांतर में अपभ्रंश के रूप में बघेल हो गया। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि बघेलबारी गांव में रहने के कारण अणराज के वंशज बघेल कहलाये जाने लगे। 1236 ई. में बीसलदेव और भीमलदेव नामक दो बघेल भाईयों ने अपने पितामह व्याघ्रदेव के साथ मड़फा नामक दुर्ग पर विजय प्राप्त कर गहो को अपनी राजधानी बनाया था।
टिप्पणी: 1236 ई. में गहोरा में बघेल सत्ता की स्थापना हुई, जिसकी कमान बीसलदेव अपने छोटे भाई भीमलदेव को सौंपकर अन्हिलवाड़ा चला गया, जहां अपने पिता वीरधवल (वीर बघेल) की मृत्यु के पश्चात उसके स्थान पर 1238 ई. में अन्हिलवाड़ा के सोलंकी राजा भीमदेव द्वितीय (1178-1241 ई.) का प्रधानमंत्री बन गया। उसने भीमदेव की दुर्बल स्थिति का लाभ उठाकर संत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली और भीमदेव द्वितीय की मृत्यु के बाद 1245 ई. में राजगद्दी पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार अन्हिलवाड़ा के सोलंकी राज्य के स्थान पर बघेल सत्ता की स्थापना हुई, जो 1298 ई. तक कायम रही। यहां का अंतिम बघेल शासक कर्णदेव था।
विशेष: गहोरा में स्थापित बघेल सत्ता का संस्थापक भीमलदेव विद्वान, नीतिवान और पराक्रमी था। अपने इन्हीं गुणों के कारण वह अपनी सत्ता स्थापित करने में सफल रहा। उसके पुत्र अनीकदेव (रानिगदेव) ने राजधानी गहोरा को भवनों से सुसज्जित किया और गहोरा जागीर का विस्तार करके उसे एक छोटे राज्य का रूप प्रदान किया। वीरभानूदय काव्यम में रानिंगदेव को गोरा का प्रथम शासक बताया गया है।
(a) बांधवगढ़
(b) गहोरा
(c) नरो की गढ़ी
(d) गढ़ा मंडला
व्याख्या: (b) बघेलराज वंश की जब स्थापना हुई थी तब राजधानी गहोरा थी तथा व्याघ्रदेव के पुत्र करणदेव का विवाह रतनपुर की हैहय राजकुमारी से हुआ था, जिसमें दहेज के रूप में बांधवगढ़ मिला था। महाराज करणदेव ने बांधवगढ़ को अपनी राजधानी बनाया था। 1597 ई. तक यही दुर्ग महाराजाओं का निवास स्थल रहा। इस वंश के चौदहवें शासक वीरमदेव (1470-95 ई.) की कैमूर तक राज्य बढ़ाने का श्रेय है। यह दिल्ली में तुलगलकों का पतन का समय था। वीरमदेव जौनपुर के शर्की सुल्तानों का मित्र एवं एक शक्तिशाली राजा था। इस वंश का सोलहवां शासक भीरादेव था, वह बहलोल लोदी और उसके पुत्र सिकंदर का समकालीन था। भीरादेव का प्रपौत्र वीरसिंह देव (1500-1540 ई.) एक शक्तिशाली राजपूत शासक था। उसने सतना जिले में वीरसिंहपुर/ बिरसिंहपुर नामक नगर की स्थापना की थी तथा उसके सिकंदर लोदी से अच्छे संबंध थे। उसने गढ़ा मंडला के प्रसिद्ध शासक आम्हणदास (संग्रामशाह) को भी अपने यहां शरण दी थी। वीरसिंह देव ने मेवाड़ के राणा सांगा के साथ बाबर के विरुद्ध 1527 ई. में खानवा का युद्ध लड़ा था। यद्यपि युद्ध के बाद वह बाबर का मित्र बन गया था। वीरसिंह देव के समय बघेल राज्य का अधिकतम विस्तार हुआ। उसने नागौद के परिहार राजा को हराकर उसके नारोगढ़ किले पर अधिकार कर लिया था। कबीर पंथी परंपरा के अनुसार वह कबीर का भक्त था और इसी प्रभाव के कारण दरबार में साहिब सलाम कहकर अभिवादन किया जाता था।
(a) 25 फरवरी, 1723
(b) 15 मई, 1723
(c) 25 अप्रैल, 1725
(d) 15 जून, 1725
व्याख्या: (b) 25 फरवरी, 1723 को बांजीराव ने होशंगाबाद के मार्ग से पुनः मालवा में अभियान करके 15 मई, 1723 को भोपाल के नवाब दोस्त मोहम्मद खान को पराजित किया। हैदराबाद के निजाम ने, जो मुगल साम्राज्य का वजीर भी था, गिरधर बहादुर के स्थान पर अपने संबंधी अजिमुल्लाह को मालवा का नायब सूबेदार नियुक्त कर अपनी जागीर अवध की ओर 7 दिसम्बर, 1723 को लौट आया। अर्थात अभी तक मराठे नर्मदा के दक्षिण क्षेत्र व खानदेश में स्थापित हो चुके थे। निजाम ने 1724 ई. में मालवा में मराठों को निकाल बाहर करने की योजना की सूचना सम्राट को दी व इस हेतु वह उज्जैन पहुंच गया। दूसरी ओर पेशवा पुनः सतारा से चलकर खानदेश होता हुआ अकबरपुर घाट पार कर नर्मदा किनारे निमाड़ क्षेत्र के बड़वाह तक पहुंच गया। वास्तव में निजामुलमुल्क आसफजहां इस समय दक्षिण में स्वतंत्र राज्य की स्थापना का प्रयास कर रहा था।
(a) अंबाजीपंत
(b) छत्रसाल
(c) चुड़ामनजाट
(d) निजामुलमुल्क
व्याख्या: (d) पेशवा बाजीराव प्रथम तथा निजामुलमुल्क की सेनाओं के मध्य पालखेड़ नामक स्थल पर युद्ध हुआ था। इस युद्ध में बाजीराव प्रथम विजयी हुए थे तथा दोनों पक्षों के मध्य मुंगी शेगांव की संधि हुई थी। मालवा पर नियंत्रण के लिए 29 नवम्बर, 1728 को चिमणाजी अप्पा के सहयोगियों को मांडू के दर्रे से होकर बाजीराव प्रथम ने नालछा तक अपनी सेनाओं को भेजा था, जिसमें गिरधर बहादुर एवं दया बहादुर युद्ध में मारे गए थे। इस युद्ध को अंधेरा के युद्ध के नाम से भी जाना जाता है।
(a) 6 जनवरी, 1738
(b) 6 जनवरी, 1737
(c) 6 जनवरी, 1739
(d) 6 जनवरी, 1736
व्याख्या: (a) बाजीराव प्रथम एवं हैदराबाद के निजाम के मध्य 6 जनवरी, 1738 को दौराहा सराय में दोनों पक्षों के मध्य संधि हुई थी, जिसके अनुसार- 1. मालवा प्रदेश (पश्चिमी मध्य प्रदेश) पेशवा को दिया गया जिसकी सीमा नर्मदा व चंबल के मध्य का क्षेत्र माना गया। 2. निजाम संधि शर्तों को सम्राट से मंजूर करवाने में सहायता देगा। 3. युद्ध व्यय व अन्य खर्च हेतु बाजीराव को 50 लाख रूपये दिये जाएंगे। दतिया, ओरछा और कुरवाई होता हुआ पेशवा बाजीराव दक्षिण को लौट आया।
(a) हीरासिंह
(b) हिंदूपत
(c) राव विजय बहादुर
(d) जवाहर सिंह
व्याख्या: (b) पिंडारियों और ठगों के आतंक से मुक्ति मिलने पर 1842 ई. में जब सागर - नर्मदा विभाग फिर से उत्तर-पश्चिम सूबे के अंतर्गत चला गया, तब इस भू-भाग में वर्तमान सागर, दमोह, जबलपुर, मंडला, नरसिंहपुर और बैतूल आदि जिले के शामिल थे तब सदर रेवेन्यू बोर्ड ने टामसन के भूमि संबंधी सुधार प्रचलित किये गये। इन सुधारों के अनुसार पुरानी ग्राम व्यवस्था, जिसमें गांव का मुखिया अपने क्षेत्र में कानून का प्रतिनिधित्व करता था, अंत कर दिया गया। 1842 ई. में सागर-नर्मदा क्षेत्र में भस्मावृत चिंगार विद्रोह के रूप में धधक उठी। इसका केंद्र बिंदु सागर का उत्तरी भाग था, जहां मधुकर शाह तथा जवाहर सिंह बुंदेला नामक दो भू-स्वामियों ने सिविल न्यायालय द्वारा डिक्री जारी करने पर खुला विद्रोह कर दिया था।
टिप्पणी - मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में बुंदेला विद्रोह का नेता बेलखेड़ा का ठाकुर हिंदूपत था, जो विद्रोह के प्रारंभ होते ही सशस्त्र सहयोगियों को एकत्र करने में लगा था। इसके अतिरिक्त हीरापुर तालुके का लोधी जागीरदार राजा हिरवैशाह भी उनका विशेष सहयोगी था।
विशेष- 1842 ई. के बुंदेला विद्रोह में दो प्रमुख बुंदेला राजाओं क्रमश: बानपुर के राजा मर्दनसिंह और शाहगढ़ के राजा बखतबली ने अंग्रेजों को सहयोग प्रदान कर बुंदेला विद्रोह के दमन में सहायता की।
(a) चरखारी रियासत
(b) ओरछा रियासत
(c) दतिया रियासत
(d) झांसी रियासत
व्याख्या: (a) 1857 ई. के महान विप्लव की पृष्ठभूमि के संदर्भ में भारतीय स्वाधीनता का प्रथम प्रस्ताव 1836 ई. में बुंदेलखंड की चरखारी रियासत में आयोजित बुड़वा मंगल में पारित हुआ था। इस बुड़वा मंगल में बुंदेलखंड की 42 छोटी-बड़ी रियासतों के शासक जागीरदार एकत्रित हुए और इन सभी ने मां भगवती के शीश पर हाथ रखकर शपथ ली कि कलकत्ते कौ साब अर्थात् अंग्रेजों को भारत में रहने नहीं देंगे। इन सभी ने अपने इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु 28 वर्षीय जैतपुर नरेश पारीछत के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ शस्त्र उठाने का फैसला किया। इन सभी राजाओं की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की खातिर जैतपुर नरेश पारीछत ने नाराहट (सागर के पास) के मधुकर शाह एवं हीरापुर (नरसिंहपुर के पास) हिरवेशाह को विद्रोह हेतु प्रेरित किया।
टिप्पणी- 29 मार्च, 1857 में बैरकपुर के युवक सैनिक श्री मंगल पांडे ने ब्रिटिश अधिकारियों पर हमला कर बगावत का आरंभ कर दिया। उसे फांसी पर लटका दिया गया। भारतीय सिपाहियों में इसकी कड़ी प्रतिक्रिया हुई और अगले दिन मेरठ में तैनात सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। वह विद्रोह सारे उत्तर और पश्चिम भारत में फैल गया। इस विद्रोह की सबसे बड़ी विशेषता हिंदू-मुस्लिम एकता थी।
(a) 13 मई, 1857
(b) 23 मई, 1857
(c) 3 जून, 1857
(d) 13 जून, 1857
व्याख्या: (c) 1857 के विद्रोह में मध्य प्रदेश का महत्वपूर्ण स्थान है। प्रदेश में यह विद्रोह 3 जून, 1857 को नीमच छावनी से पैदल और घुड़सवार सैनिकों के द्वारा प्रारंभ हुआ, किंतु कर्नल सी.बी. सोबर्स ने उदयपुर के राजपूत सैनिकों की सहायता से नीमच के किले एवं निम्बाहेड़ा पर अधिकार कर इस विद्रोह को समाप्त कर दिया।
16 जून, 1857 को जब एडजुटेंट मिलर और सी. एल. जैनिज्म जबलपुर छावनी की कवायत का निरीक्षण कर रहे थे तब 52वीं पैदल सेना के सिपाही गदाधर तिवारी ने उनको बंदूक से मारने की चेष्टा की थी, जिसके कारण उन्हें 10 अक्टूबर, 1857 को तोप से उड़ा दिया गया था। 18 सितम्बर, 1857 को गढ़ा मंडला राजवंश के उत्तराधिकारी राजा शंकर शाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह पर गदर अभियोग लगाया गया और उन्हें तोप के मुंह से बांध कर उड़ा दिया गया था, जिसके विरोध में 52वीं बटालियन ने अपना झंडा खड़ा करके क्रांति का सहयोग किया।
टिप्पणी: 4 अप्रैल, 1858 को झांसी पर सर ह्यूरोज ने आक्रमण किया, जिसमें झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने तात्या टोपे के साथ मिलकर ग्वालियर पर अधिकार कर लिया। 17 जून, 1858 में रॉयल आयरिश के विरुद्ध युद्ध करते हुए रानी लक्ष्मीबाई अपनी अंग रक्षिका झलकारी बाई के साथ ग्वालियर के समीप (कोटा की सराय) में वीरगति को प्राप्त हो गयी। 1857 ई. के विद्रोह के महान योद्धा तात्या टोपे (मूल नाम रामचंद्र पांडुरंग) ने अपनी छापामार रणनीति से अंग्रेजों को क्षति पहुंचाई। तात्या टोपे को महाराष्ट्र का बाघ कहा जाता है। तात्या टोपे को सिंधिया के एक सामंत मानसिंह द्वारा षड्यंत्रपूर्वक अंग्रेजों को पकड़वा दिया गया और 18 अप्रैल, 1859 को उन्हें शिवपुरी में फांसी दे दी गई।
(a) 28 मार्च, 1859
(b) 18 मार्च, 1859
(c) 28 अप्रैल, 1858
(d) 18 अप्रैल, 1859
व्याख्या: (d) 1857 ई. की क्रांति के समय ग्वालियर रियासत के शासक जयाजीराव सिंधिया थे तथा 6 जून, 1857 को झांसी क्षेत्र में इस क्रांति की आग भड़क उठी थी और 12 जून, 1857 को झांसी पर महारानी लक्ष्मीबाई ने कब्जा कर लिया था, जिसकी सूचना 14 जून, 1857 को मुरार छावनी के सिपाहियों को लगी तब उन्होंने भी विद्रोह कर दिया था। 1858 ई. में सर हरगोज अपने आधार स्थल महू से कूच कर सागर पहुंचा जहां उसने अंग्रेज रक्षक सेना को मुक्त किया, बुंदेलखंड में विद्रोहियों के खिलाफ कामयाब मुहिम चलाई और झांसी को घेर लिया। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने बहादुरी से दुर्ग की रक्षा की। लेकिन ताकतवर अंग्रेजी फौज से दुर्ग के बचने का कोई उपाय न रहने पर उन्होंने 4 अप्रैल, 1858 की रात को झांसी छोड़ विद्रोहियों के साथ 5 अप्रैल, 1858 को काल्पी पहुंच गई और तात्या टोपे से जा मिली। इसके अतिरिक्त वहां बिठूर के नाना घोड़ोपन्त का भतीजा राव साहब भी था। 20 अप्रैल, 1858 को बांदा नवाब अली बहादुर अपनी सेना के साथ रानी की सहायता के लिए पहुंच गये। परंतु भीषण संघर्ष के पश्चात क्रांतिकारियों की सम्मिलित सेना 22 मई 1858 में कालपी में पराजित गई। परिणामस्वरूप रानी की सेना जालौन, गोपालपुर, मिहौना, अमायन होते हुए मुरार पहुंच गई।
उधर महाराज जयाजीराव क्रांतिकारियों की सम्मिलित सेना से युद्ध करना नहीं चाहते थे किंतु दीवान दिनकार राव के कहने पर जून, 1858 को अनिश्चय की स्थिति में 7000 पैदल सिपाही, 4000 घुड़सवार, 800 अंगरक्षक और 12 तोपों के साथ मुरार पहुंच गये। 1 जून, 1858 को युद्ध प्रारंभ हुआ किंतु युद्ध प्रारंभ होते ही महाराज जयाजीराव की आधी सेना क्रांतिकारियों के साथ मिल गई। परिणामस्वरूप जयाजीराव पराजित हुआ और आगरा चले गये। 2 जून, 1858 को क्रांतिकारियों का संपूर्ण ग्वालियर पर अधिकार जम गया। नाना साहब को पेशवा घोषित किया गया तथा राव साहब को वॉयसराय बनाया गया। तात्या टोपे को समस्त सेना का कमांडर बनाया गया।
ग्वालियर के पतन से अंग्रेज आश्चर्य चकित रह गए। समय की गंभीरता को देखते हुए अंग्रेजों ने ग्वालियर से क्रांतिकारियों को खदेड़ने और उस पर अधिकार करने के लिए रणनीति बनाई। इसी कड़ी में सर ह्यूरोज ने अपनी सेना को चार भागों में विभक्त कर ग्वालियर पर चारों ओर से आक्रमण किया। उधर ह्यूरोज की सेना आगमन की खबर सुनकर राव साहब के हाथ पैर फूल गये। वह सेना की कमान तात्या टोपे को सौंप दिया। 16 एवं 17 जून, 1858 को दोनों सेनाओं के मध्य भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध में रानी घायल हो गई और अंत में 17 जून, 1858 को उसे वीर गति मिली। रानी की मृत्यु के बाद 18 जून, 1858 को अंग्रेजों और विद्रोहियों के मध्य छुट-पुट युद्ध हुए। अंत में राव साहब, तात्या टोपे और नवाब अली बहादुर ग्वालियर से कूच कर गये।
महाराजा तात्या टोपे कुछ बचीखुची क्रांतिकारी सेना के साथ अंग्रेजों को छकाता रहा। अंतत: 18 अप्रैल, 1859 को नरबर के राजा मानसिंह ने उसे छल से गिरफ्तार करवा दिया। अंग्रेजों द्वारा तात्या टोपे को 18 अप्रैल, 1859 को शिवपुरी में फांसी पर लटका दिया गया।
(a) जबलपुर
(b) नागपुर
(c) वर्धा
(d) इंदौर
व्याख्या: (b) मध्य प्रान्त के अंतर्गत वर्ष 1920 में कांग्रेस का 35वां साधारण अधिवेशन नागपुर में सम्पन्न हुआ था, जिसके अध्यक्ष चक्रवर्ती विजयराघवाचार्य और स्वागताध्यक्ष सेठ जमनालाल बजाज थे। इस अधिवेशन में जबलपुर से पं. विष्णुदत्त शुक्ल, सुंदरलाल तपस्वी, माखनलाल चतुर्वेदी, ब्यौहार रगुवीर सिंह ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान, श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान, सेठ गोविंद दास, पं. द्वारका प्रसाद मिश्र, चौधरी दालचंद राय, काशी प्रसाद पांडे, सूरज प्रसाद शर्मा, बाबू वेंकटरमन सेठ जयदयाल, कल्लूलाल कंदेले आदि अनेक कार्यकर्ता थे।
(a) 15 मार्च, 1921
(b) 5 अप्रैल, 1921
(c) 15 अप्रैल, 1921
(d) 5 मार्च, 1921
व्याख्या: (d) असहयोग आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी का जबलपुर में प्रथम आगमन 5 मार्च, 1921 को हुआ था तथा 6 अप्रैल, 1921 को छिंदवाड़ा में अपनी पत्नी कस्तूरबा गांधी और शौकत अली व मोहम्मद अली के साथ महात्मा गांधी ने विशाल सभा का आयोजन किया था। महाकौशल क्षेत्र में असहयोग आंदोलन का सर्वाधिक प्रभाव जबलपुर क्षेत्र में था। महात्मा गांधी की शिक्षा संस्थाओं को बहिष्कार के आवाह्न के आधार पर जबलपुर में सर्वप्रथम राष्ट्रीय स्कूल हितकारणी तथा गैर सरकारी शिक्षण संस्थाओं में महाकौशल की स्थापना हुई थी。
टिप्पणी: महात्मा गांधी के जबलपुर आगमन पर उन्हें जबलपुर के श्री श्याम सुन्दर भार्गव की कोठी (खजांची भवन) में ठहराया गया था। इसके अतिरिक्त इंदौर में असहयोग आंदोलन के संदर्भ में यहां के स्थानीय युवकों द्वारा ज्ञान प्रसारक मंडल नामक संस्था की स्थापना की गई थी।
(a) सुभद्रा कुमारी चौहान
(b) माखनलाल चतुर्वेदी
(c) पं. रविशंकर शुक्ल
(d) महात्मा गांधी
व्याख्या: (a) महाकौशल क्षेत्र में 18 मार्च, 1923 को जबलपुर नगरपालिका भवन पर राष्ट्रीय झंडा फहराने को लेकर हुए जबलपुर के झंडा सत्याग्रह की अगुवाई सुभद्रा कुमारी चौहान ने की थी। इस झंडा सत्याग्रह में ब्रिटिश कमिश्नर क्रुद्ध होकर झण्डे को नीचे उतरवाकर उसे पैरों तले रौंद देने का प्रयास किया था। फलत: पं. सुंदर लाल, श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान और श्री नाथुराम मोदी ने जुलूस निकालकर नगरपालिका भवन में झंडा फहराया था।
(a) 6 मार्च, 1930
(b) 16 मार्च, 1930
(c) 6 अप्रैल, 1930
(d) 16 अप्रैल, 1930
व्याख्या: (c) 12 मार्च, 1930 को महात्मा गांधी द्वारा साबरमती आश्रम से सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ किया गया था तथा उसके परिपेक्ष्य में 6 अप्रैल, 1930 को मध्य प्रदेश के जबलपुर में नमक कानून तोड़ा गया था। अर्थात महात्मा गांधी ने जिस दिन नमक कानून तोड़ा था, उसी दिन महाकौशल के जबलपुर में सेठ गोविंद दास तथा पं. द्वारिका प्रसाद मिश्र के नेतृत्व में 23 किमी. दूरी पर स्थित वीरांगना महारानी दुर्गावती की समाधी बरेला पर शपथ लेने एक विशाल जुलूस ले जाया गया। मीलों लंबा हजारों की संख्या में लोग, जिनमें जोश की पराकाष्ठा, जन्मभूमि पर प्राणों का उत्सर्ग करने की शुद्धतम भावना ने इस आंदोलन को सहयोग प्रदान किया।
(a) सर सीमन
(b) दुर्गा शंकर मेहता
(c) श्री वी.डी. सालवेकर
(d) खुल्लू गोड़
व्याख्या: (b) सिवनी में जंगल सत्याग्रह की शुरुआत दुर्गाशंकर मेहता ने की थी। उस समय सर सीमन सिवनी के कलेक्टर और सर पैरी पुलिस कप्तान थे। उस समय कांग्रेस कार्यालय में एक शिविर स्थापित किया गया, जिसमें जिले के सैंकड़ों स्वयं सेवक आकर रहते और जंगल सत्याग्रह में भाग लेते थे। शिविर का संचालन ईश्वरी प्रसाद तिवारी इसूल खां मास्टर और अन्य कार्यकर्ता मिलकर करते थे। सिवनी के सत्याग्रही सिवनी से लगभग 10 किमी. दूर पर स्थित शासकीय जंगल चंदन बगीचा में जाकर घास काटते थे। लोग पहले सरकार को नोटिस देते थे, फिर पांच-पांच के जत्थे में जंगल में जाते थे और जंगल काटते थे। इन सत्याग्रहियों पर दफा 379/114 ताहिन्द एवं 26 जंगल एक्ट के अन्तर्गत मुकदमा चलाकर सजा एवं जुर्माना किया जाता था। जुर्माने की वसूली सम्पत्ति तथा जानवर, जमीन, बर्तन आदि को कुड़की में नीलाम करके किया जाता था।
सिवनी जिले में जंगल सत्याग्रह के इतिहास में कुरई क्षेत्र का महत्वपूर्ण स्थान है। यहां तुरिया का सत्याग्रह विशेष उल्लेखनीय है। इस सत्याग्रह के दौरान अंग्रेजी साम्राज्यवाद का बर्बरतम रूप तुरिया नामक ग्राम में देखने को मिला। यह ग्राम सिवनी से लगभग 42 किमी. पर खवासा से लगभग 7 किमी. की दूरी पर बसा है। मुख्य सड़क से लगभग 7 किमी. की दूरी पर स्थित नाले के समीप तुरिया का जंगल सत्याग्रह हुआ। इस सत्याग्रह का नेता तुरिया ग्राम का ही निवासी श्री मूका था। श्री मूका और यहां के निवासियों ने अंग्रेजी शासन को नोटिस देकर सूचित किया कि वे 9 अक्टूबर, 1930 को तुरिया के निकट जंगल में घास काट कर सत्याग्रह करेंगे। इससे वहां पुलिस दल पहुंचकर ग्रामवासियों को सत्याग्रह करने से रोकना चाहा, किंतु श्री मूका के नेतृत्व में ग्रामवासियों ने अपने निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार तुरिया नाले के पास 9 अक्टूबर, 1930 को नियत समय पर सरकारी जंगल की घास काट कर सत्याग्रह करने पहुंचे। इसकी खबर पूरे क्षेत्र में फैल चुकी थी, फलतः आस-पास के हजारों लोग जिनमें स्त्री, पुरुष, बच्चे आदि सभी सम्मिलित थे, तुरिया ग्राम में एकत्रित हो चुके थे। लोगों में अपार उत्साह था। इस अवसर पर वहां सिवनी के पुलिस सब-इंस्पेक्टर सदरउद्दीन एवं रेंजर मेहता अपने हथियार बंद सैनिकों के साथ उपस्थित थे। जब श्री मूका और उनके साथियों ने घास काट कर सत्याग्रह प्रारंभ किया तब पुलिस ने उपस्थित जन समुदाय के साथ अभद्रता का व्यवहार किया और जन समूह उत्तेजित हो उठा और पुलिस ने गोली चलाना प्रारंभ कर दिया, जिसमें श्रीमती गुड्डे बाई, श्रीमती रेनी बाई, श्रीमती देभो बाई और बिरझू भाई शहीद हो गये।
टिप्पणी: छिंदवाड़ा जिले के रामकोना और खुराबा नामक स्थान जंगल सत्याग्रह के लिए विशेष उल्लेखनीय रहा है। छिंदवाड़ा जिले के प्रमुख सत्याग्रहियों में श्री वी.डी. सालवेकर, श्री भगवान प्रसाद शुक्ल, श्री हरफेर कागसे, श्री अब्दुल मजीर खां, श्री आत्मानंद, श्री कृष्ण रेखड़े, श्री गणपत बेलदार, श्री गोविंद माधव, श्री गंगाराम कण्टे, श्री चंदू जी अप्पा, श्री तुलसीराम तेली, श्री नील कण्डराव गुण्डे, श्री बलिराम गाडगिल आदि प्रमुख थे। डिंडोरी तहसील (वर्तमान जिला) के क्रांतिकारियों का नारा था "जंगल काटो फसल उगाओ", इसीसे प्रभावित होकर श्री खुल्लू गोड़ ने देवरा ग्राम के निकट आस-पास के गांवों के नव युवकों को एकत्रित कर कुरेली मट्टा नामक जंगल को कटवाये और एक वर्ष की कारावास की सजा के भागीदार बने।
(a) बेतवा नदी
(b) धसान नदी
(c) केन नदी
(d) उर्मिल नदी
व्याख्या: (d) 14 जनवरी, 1931 को मकर संक्रांति के दिन छतरपुर जिले में उर्मिल नदी के तट पर स्थित सिंहपुर चरणपादुका मैदान में चल रही आमसभा को ब्रिटिश सैन्य बल ने चारो ओर से घेर कर आमसभा में उपस्थित लोगों पर गोलियां चलाई। इस नृशंश हत्याकाण्ड में 21 लोगों की मृत्यु हो गई और 26 लोग घायल हुए। शहीद होने वालों में पिपट के सेठ सुंदरलाल वरोहा, छीरू कुर्मी, बंधैया के हलकई अहीर, खिरवा के धर्मदास और गुना (बुवा) के रामलाल शामिल थे। इसके पश्चात 21 व्यक्ति गिरफ्तार किए गए, जिनमें से सरजू दउआ को 4 वर्ष और शेष 20 व्यक्तियों को 3 वर्ष के कठोर कारावास की सजा दी गई। चरणपादुका नरसंहार को मध्य प्रदेश के जलियांवाला बाग हत्याकांड की संज्ञा प्रदान की जाती है।
(a) 19 जनवरी, 1939
(b) 29 जनवरी, 1939
(c) 9 जनवरी, 1939
(d) 19 फरवरी, 1939
व्याख्या: (b) परतंत्रता को स्वाधीन बनाने का प्रण करने वाली अखिल भारतीय कांग्रेस का 52वां त्रिपुरी अधिवेशन जबलपुर में 29 जनवरी, 1939 को संपन्न हुआ था। इस अधिवेशन के अध्यक्ष सुभाष चंद्र बोस तथा स्वागत समिति के अध्यक्ष सेठ गोविंद दास थे। परंतु स्वास्थ्य खराब होने के कारण अध्यक्ष जुलुस में सम्मिलित नहीं हो सके थे तथा उनकी उपस्थिति में मौलाना आजाद को अध्यक्षी भाषण देना पड़ा था। कांग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन में महात्मा गांधी नहीं आ सके थे क्योंकि इस समय वे राजकोट में अनशन कर रहे थे। अतः कांग्रेस अधिवेशन के लिए उन्होंने मौलाना आजाद का नाम प्रस्तावित किया किंतु उन्होंने मुस्लिमों में एकता स्थापित न होने के कारण अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की ओर से महात्मा गांधी ने डॉ. पट्टाभि सीतारमैया का नाम प्रस्तावित किया। दूसरी ओर बंगाल के प्रतिनिधियों ने सुभाष चंद्र बोस का नाम प्रस्तावित किया। फलतः कांग्रेस के इतिहास में पहली बार अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुए, जिसमें गांधी समर्थक पट्टाभि सीतारमैया के विरुद्ध नेता जी सुभाष चंद्र बोस विजय रहे। इस अधिवेशन में सुभाष चंद्र बोस ने 203 मतों से पट्टाभि सीतारमैया को पराजित किया और कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। इस विजय में प्रदेश के ही नहीं बल्कि संपूर्ण देश की युवा वर्ग में एक नयी चेतना का संचार हुआ। इससे युवा वर्ग स्पष्ट रूप से स्वराज्य प्राप्त के लिए आधीर हो उठे। पंडित भवानी प्रसाद तिवारी, श्री सवाईमल जैन, श्री गणेश प्रसाद नायक, श्री गुलाब चंद्र गुप्त आदि महाकौशल में आजादी के लिए उत्तेजित हो उठे।
(a) दोस्त मोहम्मद खां
(b) नवाब हमीदुल्ला खां
(c) नर मोहम्मद खां
(d) यासीन मोहम्मद खां
व्याख्या: (a) भोपाल रियासत की स्थापना मुगल सेना के एक अफगान सिपाही दोस्त मोहम्मद खान द्वारा 1723-1724 ई. में की गई थी। उसे रानी कमलापति की सहायता करने पर भोपाल राज्य उपहार में मिला था। दोस्त मोहम्मद खान ने भोपाल से 10 किमी. दूर स्थित जगदीशपुर को जीत कर उसे अपनी राजधानी बनाया और इसका नाम इस्लाम नगर रखा। मोहम्मद खान ने सीहोर, अष्टा, खिलजीपुर, गुन्नौरगढ़, देवीपुरा आदि स्थानों को जीतकर नवाब की उपाधि धारण की। 1728 ई. में दोस्त मोहम्मद खान की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र यार मोहम्मद खान भोपाल राज्य का प्रथम नवाब बना। 8 मार्च, 1818 में मोहम्मद खान के शासनकाल में एंग्लो-भोपाल संधि हुई थी तथा 1 जून, 1949 को भोपाल का भारत संघ में विलय हुआ था।
(a) कुदसिया बेगम/गौहर बेगम
(b) सिकंदर जहां बेगम
(c) शाहजहां बेगम
(d) के. खुसरो जहां बेगम
व्याख्या: (a) 11 नवम्बर, 1819 को नजर मोहम्मद खान की मृत्यु के पश्चात भोपाल रियासत का शासक कुदसिया बेगम / गौहर बेगम को नियुक्त किया गया था। कुदसिया बेगम ने फतेहगढ़ के दक्षिण में अपने निवास के लिए गौहर महल, भोपाल की जामा मस्जिद तथा 1830 ई. में शौकत महल का निर्माण करवाया था।
टिप्पणी: 16 जून 1901 को शाहजहां बेगम के निधन के पश्चात 4 जुलाई, 1901 को सुल्तान जहां बेगम भोपाल रियासत की शासिका नियुक्त हुई थी। उन्होंने हयात-ए-कुदसी, हयात-ए-शाहजहानी, हयाते-ए-बाकी नामक 3 प्रसिद्ध पुस्तकें भी लिखी हैं।
(a) महादजी सिंधिया
(b) दौलतराव सिंधिया
(c) राणोजी शिंदे
(d) जानकोजीराव सिंधिया
व्याख्या: (c) सिंधिया वंश का संस्थापक राणोजी शिंदे था, जो कान्हेरखेड़ा के पाटिल परिवार से संबंधित था। 1729 ई. में अमझेरा के युद्ध में राणोजी ने वीरता का प्रदर्शन किया था तथा पुणे दरबार से राणोजी को होल्कर वंश के समान भागीदारी दी गई, जिसमें उन्हें उज्जैन, शाजापुर और शुजावलपुर (शुजालपुर) आदि क्षेत्र प्राप्त हुए। 1732 ई. मालवांचल के विभाजन संबंधी दस्तावेज के अनुसार राणोजी के नियंत्रण में शुजालपुर तथा सुंदरसी था। 1753 ई. में सिंधिया ने अपने अधिकार क्षेत्र में ढोबरी, बोराड़ तथा हाटोली को मिला लिया। 1766 ई. में उत्तर भारत की आय के बंटवारे से पेशवा सरकार को 46 प्रतिशत तथा होल्कर एवं सिंधिया को 21 प्रतिशत भाग प्राप्त होता था।
वर्ष 1745 में राणोजी की मृत्यु के पश्चात सिंधिया वंश का सबसे प्रतापी राजा महादजी सिंधिया सत्तासीन हुआ, जिसने प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध में भाग लिया। इन्होंने 1765 ई. में गोहद के जाट लोकेंद्र सिंह से ग्वालियर का किला छीन लिया था।
(a) पूरनसिंह
(b) मंगलसिंह
(c) तात्याटोपे
(d) राघवसिंह
व्याख्या: (a) झलकारी बाई महारानी लक्ष्मीबाई की सहयोगी थी। उनका जन्म 20 नवम्बर, 1830 को झांसी के निकट भोजला नामक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम सदोवा सिंह एवं माता का नाम जमुना देवी था। उनका विवाह महारानी लक्ष्मीबाई के तोपची पूरनसिंह के साथ हुआ था तथा अपनी योग्यता, साहस और बुद्धिमता के कारण वह महारानी लक्ष्मीबाई की सहयोगी के रूप में सम्मिलित हो गई थी।
(a) टांटिया
(b) गणपत
(c) बिजनिया
(d) टण्ड्रा
व्याख्या: (a) टंट्या भील को मध्य प्रदेश के आदिवासियों का जननायक, निमाड़ का गौरव, निमाड़ का रोबिन हुड आदि नाम से भी जाना जाता है। टंट्या भील का जन्म 1842 ई. में पश्चिमी निमाड़ के ग्राम गिरी में हुआ था तथा उसका वास्तविक नाम टांटिया/टटैया था। टंट्या भील मकड़ई के गोंड राजा को अपना संरक्षक मानता था। वर्ष 1888-89 में टंट्या भील को अंग्रेजों द्वारा इंदौर में गिरफ्तार कर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया था, जिसके तहत 4 दिसम्बर, 1889 को उन्हें जबलपुर में फांसी दे दी गई थी।
(a) शाहगढ़ के राजा बखतवली का
(b) बानपुर के राजा मर्दन सिंह का
(c) हीरापुर के राजा हिरदेशाह का
(d) झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का
व्याख्या: (a) बोधन दौआ शाहगढ़ वर्तमान सागर जिला की शाहगढ़ रियासत के विरोधी राजा बखतवली का प्रमुख सलाहकार, उच्चाधिकारी तथा सेनापति था। जब सागर की 52वीं सेना के सिपाहियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत की थी तो उसने उनका सहयोग किया था। राजा बखतवली ने बोधन दौआ के नेतृत्व में गढ़ाकोटा पर कब्जा करने के उद्देश्य से 14 जुलाई, 1857 को हमला किया था तथा गढ़ाकोटा पर कब्जा करने के पश्चात उसने रहेली के किले पर भी कब्जा करके उसका प्रमुख चतुर दौआ को नियुक्त किया था।
(a) रीवा
(b) ग्वालियर
(c) नरसिंहपुर
(d) इंदौर
व्याख्या: (c) 1857 की क्रांति के समय राजा हिरदेशाह के पुत्र मेहरबान सिंह लोधी ने मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था। 1857 के विद्रोह के प्रारंभ में नरसिंहपुर में ब्रिटिश फोर्स की 28वीं मद्रास पलटन की 4 कंपनियां तैनात थी, जिनकी कमांड कैप्टन वूली के हाथ में थी। अगस्त, 1857 में मेहरबान सिंह ने जबलपुर व नरसिंहपुर क्षेत्र में अंग्रेजों के विरुद्ध कई संघर्ष किए थे। उसके साथ गढ़ा अम्बपानी का प्रमुख विद्रोही नवाब आदिल मोहम्मद खां, ढिलवार का नरवरसिंह राजगौंड, सहजपुर का बलभद्रसिंह आदि थे।
(a) मंगल पांडे
(b) उमराव सिंह सूबेदार
(c) तात्या टोपे
(d) झलकारी बाई
व्याख्या: (b) 1857 की क्रांति के समय महारानी लक्ष्मीबाई को भांडेर परगना में उमराव सिंह सूबेदार ने सहयोग प्रदान किया था। 8 फरवरी, 1858 को उमराव सिंह ने अंग्रेजों के विरुद्ध अपने 500 बागी सैनिकों के साथ भांडेर पर गोलीबारी भी की थी। किंतु उसे पीछे हटना पड़ गया था। अंततः 13 फरवरी, 1858 को उमराव सिंह सूबेदार ने भांडेर पर पुनः अंग्रेजों के विरुद्ध हमला किया था।
(a) शेख रमजान
(b) हबीबुल्ला खान
(c) फाजिल मोहम्मद खान
(d) मोहम्मद अली खां
व्याख्या: (d) 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भोपाल रियासत का प्रमुख सेनानी मोहम्मद अली खां था, जो बानपुर के राजा मर्दनसिंह का सहयोगी था। 17 अगस्त, 1857 को मोहम्मद अली खां ने अपने विद्रोही साथियों गाजी खां हवलदार, मदार खां सवार हासिम अली खां निसानची, आलम खां दफादार, मूसा खां, सीताराम, रछवाल, हवलदार नूर मोहम्मद खां, रिसालदार कासिम अली खां, जबीताखां सिपाही, इकबालउद्दीन खां सवार आदि ने भोपाल आर्मी से त्यागपत्र देकर भोपाल रियासत व अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का शंखनाद कर दिया था।
(a) फाजिल मोहम्मद खां और वारिस मोहम्मद खां
(b) दोस्त मोहम्मद खां और हबीबुल्ला खां
(c) शेख रमजान और वारिस मोहम्मद खां
(d) हबीबुल्ला खां और फाजिल मोहम्मद खां
व्याख्या: (a) भोपाल की नवाब सिकंदर बेगम के वंशज नवाब फाजिल मोहम्मद खां, नवाब आदिल मोहम्मद खां तथा तिरदरा (सीहोर) के नवाब वारिस मोहम्मद खां थे। वारिस मोहम्मद खां ने 1842 के बुंदेला विद्रोह के समय नर्मदा नदी के तट में स्थित हीरापुर के हिरदेशाह का साथ दिया था। इस प्रकार शुरू से ही वह अंग्रेजी शासन के खिलाफ था। 1844 ई. में भोपाल रियासत के नवाब जहांगीर मोहम्मद खां की मृत्यु के बाद इस वंश के नवाब फाजिल मोहम्मद खां तथा वारिस मोहम्मद खां चाहते थे कि इसी वंश के किसी पुरुष को भोपाल रियासत की गद्दी मिले, किंतु नवाब जहांगीर मोहम्मद खां की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी सिकंदर बेगम को गद्दी पर आसीन करा दिया गया। अतः इनमें मनमुटाव बढ़ना स्वाभाविक था। मनमुटाव इतना बढ़ गया की फाजिल मोहम्मद खां अपने भाई आदिल मोहम्मद के साथ, नवाब सिकंदर बेगम का विरोध करने लगा। उधर वारिस मोहम्मद खां भी बेगम का विरोधी था। 1850 ई. में एक बार आपसी चर्चा के दौरान वारिस मोहम्मद के कटु और उद्दण्ड व्यवहार के कारण बेगम उससे बहुत नाराज हो गयी और उसने वारिस मोहम्मद खां को रियासत बदर कर दिया तथा बाद में उसकी जागीर भी 3 नवम्बर, 1857 को जब्त कर ली।
(a) वीरसिंह बघेल
(b) रणमत सिंह बघेल
(c) धीरसिंह बघेल
(d) लक्ष्मण सिंह बघेल
व्याख्या: (c) रीवा राज्य के युवराज रघुराज सिंह के युवा साथियों का प्रमुख नेता धीरसिंह बघेल था। 1819 ई. में धीरसिंह बघेल का जन्म रीवा राज्य के ग्राम कछिया टोला (कृपालपुर, सतना) में हुआ था। धीरसिंह बघेल 17 वर्ष की आयु में रीवा छोड़कर लाहौर (पाकिस्तान) चले गए थे तथा वहां उन्होंने पंजाब नरेश रणजीत सिंह के यहां नौकरी कर ली थी। रीवा राज्य के प्रमुख अंग्रेज विरोधी नेता धीरसिंह के निर्देश में जुड़े हुए थे तथा धीरसिंह का सीधा संपर्क रीवा राज्य के दिमान लक्ष्मण सिंह, लाल छतर सिंह आदि से था।
(a) 16 अप्रैल, 1858
(b) 6 मार्च, 1858
(c) 6 अप्रैल, 1858
(d) 16 मार्च, 1858
व्याख्या: (b) नाना साहेब पेशवा के सहयोगी एवं ग्वालियर निवासी महादेव शास्त्री को फांसी की सजा 6 मार्च, 1858 को सुनाई गई थी। उनके पिता का नाम सदाशिव शास्त्री था तथा वह दीवानी अदालत के न्यायाधीश कूपा शास्त्री की अदालत में मुसिफ थे। महादेव शास्त्री, बैजाबाई सिंधिया की प्रेरणा से ब्रिटिश हुकुमत की विरोधी गतिविधियों में संलग्न हो गए थे।
(a) सीताराम कंवर
(b) खज्जुनायक
(c) जुझार सिंह
(d) वेस्ता कनेश
व्याख्या: (a) 1857 के विद्रोह में भिलाला समुदाय के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सीताराम कंवर ने बड़वानी रियासत में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया था। उसके साथ उसका सहयोगी रघुनाथ सिंह मंडलोई भी शामिल था। 6 अक्टूबर, 1858 को रिसालदार फरजंद अली के नेतृत्व में मेजर कीटिंग ने मंडलेश्वर से अकबरपुर सीताराम कंवर और रघुनाथ सिंह मंडलोई को पकड़ने के लिए भेजा था।
(a) धीरजसिंह
(b) फिरोजशाह
(c) बोधन दौआ
(d) खलकसिंह दौआ
व्याख्या: (d) 1857 में दतिया के राजा विजय बहादुर की मृत्यु के पश्चात सेंवढ़ा का खलकसिंह दौआ ब्रिटिश सरकार का विरोधी बन गया था। सेंवढ़ा दतिया रियासत के अंतर्गत सिंध नदी के तट पर स्थित है तथा खलकसिंह दौआ 1847 से सेंवढ़ा के किले का किलेदार था। राजा विजय बहादुर की मृत्यु के पश्चात उनके दत्तक पुत्र भवानी सिंह को मान्यता प्रदान की गई थी तथा शासन चलाने के लिए रानी को रीजेन्ट बनाया गया था। राजगद्दी के दावेदारों में झगड़ा होते देखकर ब्रिटिश सरकार ने अर्जुन सिंह को दतिया से निष्कासित कर दिया और उसे नृपतिसिंह की अभिरक्षा में रख दिया। इस पर नृपतिसिंह अर्जुन सिंह को लेकर सेंवढ़ा चला गया। कुछ समय बाद ब्रिटिश सरकार ने दतिया की रानी से रीजेन्ट का काम भी छीन लिया और राज्य के शासन प्रबंध के लिए ब्रिटिश सरकार ने कैप्टन थॉमसन को दतिया राज्य का राजनीतिक सुपरिटेंडेंट बना दिया। इस नियुक्ति से तथा रीजेंसी का काम छुड़ाने से दतिया की रानी ब्रिटिश सरकार से रुष्ट हो गयी। दतिया राज्य के शासन प्रबंधक (राजनीतिक सुपरिटेंडेंट) की नियुक्ति से खलकसिंह दौआ भी संतुष्ट नहीं था। अतः खलकसिंह दौआ ब्रिटिश सरकार के विरोध में मैदान में आ गया। पड़ोसी इलाके के बरजोर सिंह तथा दौलत सिंह तो पहले से ही ब्रिटिश सरकार के विरोधी थे ही खलकसिंह ने इनसे संपर्क स्थापित किया और वह विरोधात्मक गतिविधियों में शामिल हो गया।
(a) फाजिल मोहम्मद खान
(b) शेख रमजान
(c) दोस्त मोहम्मद खान
(d) हबीबुल्ला खान
व्याख्या: (a) भोपाल रियासत के संस्थापक दोस्त मोहम्मद खां (1708-1726 ई.) ने अपनी बेटी का विवाह गढ़ी अम्बापानी के नवाब खिजर मोहम्मद खां से कर दिया था। खिजर मोहम्मद खां के वंशज भोपाल रियासत से पहले से ही असंतुष्ट थे। 1842 के बुंदेला विद्रोह के समय इनके वंशज फाजिल मोहम्मद खां और आदिल मोहम्मद खां थे। इन दोनों भाईयों ने भोपाल के सरदारों को भोपाल की बेगम के खिलाफ उकसाया था। उनके इस रवैये के कारण भोपाल की बेगम ने उनकी जागीर जब्त कर ली थी। 1857 ई. में विद्रोह की आग पुनः भड़की तो ये पुनः सक्रिय हो गए और इन्होंने राहतगढ़ को अपना प्रथम लक्ष्य बनाया था। 29 जनवरी, 1858 को राहतगढ़ किले के द्वार पर नवाब फाजिल मोहम्मद खां को फांसी दी गई थी।
(a) नरसिंहपुर
(b) शहडोल
(c) सिंगरौली
(d) पन्ना
व्याख्या: (b) 1857 के क्रांतिकारी गरुलसिंह अर्थात गुरुरसिंह का संबंध मध्य प्रदेश के शहडोल जिले के सोहागपुर से है। 29 जुलाई, 1857 को सोहागपुर के तहसीलदार से लार्ड वाडिंगटन को जानकारी प्राप्त हुई थी कि सोहागपुर की राजकुमारी सुलोचन कुंवर के रिश्तेदार और सरवराहकार गरूलसिंह, कोठी निगवानी के तालुकेदार बलभद्रसिंह, जैतपुर के तालुकेदार जगमोहनसिंह ब्रिटिश सरकार के प्रति दुर्भावना प्रकट कर रहे हैं तथा 9 सितंबर, 1857 को सरगुजा के कई विरोधी गौंड आदिवासियों को साथ लेकर गरूलसिंह ने ब्रिटिश हुकुमत के प्रति विद्रोह कर दिया था।
विशेष- स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का संबंध मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले से है तथा वह राष्ट्रवादी कवि माखनलाल चतुर्वेदी के सानिध्य में असहयोग आंदोलन में जुड़े थे।
(a) खाज्या नायक
(b) महादेव नायक
(c) औचित्य नायक
(d) देवलिया नायक
व्याख्या: (a) खाज्या नायक सांगवी निवासी गुमान नायक का पुत्र था, जो सेंघवा घाट का वार्डन था। 1833 ई. में गुमान नायक की मृत्यु के बाद खाज्या नायक को सेंघवा घाट का नायक बनाया गया। उस इलाके में कैप्टन मॉरिस ने विद्रोही भीलों के विरुद्ध जो अभियान छेड़ रखा था, उसमें खाज्या नायक ने काफी सहयोग दिया, जिसके उपलक्ष्य में खाज्या नायक को एक सौ रूपये का इनाम मिला। कुछ समय बाद खाज्या नायक को निलंबित कर दिया गया क्योंकि उसने सेंधवा घाट की चौकीदारी में लापरवाही की थी। 7 अक्टूबर, 1857 को ख्वाजा नायक ने महादेव नायक, औचित्य नायक तथा देवलिया नायक के अतिरिक्त 200 साथियों के साथ मिलकर ब्रिटिश हुकूमत के प्रति विद्रोह की बगावत शुरू कर दी थी और 20 जनवरी, 1858 को जामनेर के समीप लूटपाट की थी। 1 जुलाई, 1860 को हसिलवुड और स्काट की मुठभेड़ ख्वाजा नायक के दल से हुई थी, जिसमें भी ख्वाजा नायक पकड़ा नहीं जा सका। ब्रिटिश अधिकारियों ने रोहिदीन नामक एक मकरानी जमादार को ख्वाजा नायक की निगरानी के लिए रखा था तथा उसने गोली मारकर ख्वाजा नायक की हत्या कर दी थी।
विशेष: बड़वानी रियासत में पंचपावली के जंगल में पंचमहोली नामक भीलों की एक छोटी सी बस्ती थी, जहां भीमा नायक और उसका चाचा मावासिया नायक रहते थे। 2 अप्रैल, 1867 को भीमा नायक ब्रिटिश हुकुमत के प्रति विद्रोहात्मक गतिविधियां जारी रखने के अपराध में पकड़ा गया था।
(a) चांवरपाठा
(b) देवरी
(c) सुआतला
(d) हीरापुर
व्याख्या: (d) हीरापुर के राजा हिरदेशाह बुंदेला विद्रोह 1842 के प्रमुख नायक थे। यह विद्रोह ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध था। हिरदेशाह महाराजा छत्रसाल का उत्तराधिकारी था तथा उसके मृत्यु के बाद उसका बड़ा पुत्र सभासिंह पन्ना रियासत की गद्दी पर बैठा था। सागर जिले में 1857 के विद्रोह के समय शाहगढ़ के राजा बखतबली की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। राजा बखतबली का निधन 29 सितंबर, 1873 को वृंदावन में हुआ था।
(a) अग्नि
(b) कुंडाला
(c) लोनार
(d) उपरोक्त सभी
व्याख्या: (d) मध्य प्रदेश में अग्नि, कुंडाला, बाघ, विला, धसान एवं चंबल, वेनगंगा, सोन, नर्मदा, बेतवा आदि नदी घाटियों से पाषाण काल के अवशेष पाए गए हैं। मध्य प्रदेश के सीधी, शहडोल, सागर, निमाड़, जबलपुर, राजगढ़, रीवा, रायसेन आदि जिलों का संबंध भी पुरापाषाण काल से रहा है।
टिप्पणी: भारत व मध्य प्रदेश में सर्वाधिक पुरापाषाण काल सभ्यता व अवशेष नर्मदा- सोन घाटी से प्राप्त हुए हैं। पुरापाषाण काल में मध्यप्रदेश दक्षिण व उत्तर भारत के तत्कालीन हथियारों, औजारों, उद्योगों व सभ्यताओं का संगन स्थल रहा है。
सर्वेक्षण स्थल | सर्वेक्षण कर्ता |
---|---|
नर्मदा घाटी | एच.डी. साकलिया, मैकक्राउन, आर. बी. जोशी |
चंबल घाटी | वाकणकर |
सोन घाटी | निसार अहमद |
ग्वालियर | बी. बी. लाल |
रीवा सतना | जी शर्मा |
मंडला | सूपेकर |
(a) बी. बी. मिश्रा
(b) बी. बी. लाल
(c) आर. बी. जोशी
(d) एच.डी. साकलिया
व्याख्या: (c) होशंगाबाद जिले में स्थित आदमगढ़ शैलाश्रय की खोज आर. बी. जोशी ने की। आदमगढ़ शैलाश्रय से ही मानव के पशुपालक होने का प्रथम साक्ष्य एवं मानव शव के साथ कुत्ते के दफनाए जाने का प्रमाण मिलता है। सी.एल. कार्लाइल द्वारा 1867 ई. में विंध्य क्षेत्र में लघु पाषाण उपकरणों की खोज की गई, जबकि एच.डी. साकलिया ने मालवा की ताम्रपाषाण संस्कृति हेतु कार्य किया। बी. वी. मिश्रा ने भीमबेटिका से मध्यपाषाण कालीन ब्लेड अवयव खोजे।
(a) मध्य पाषाण काल
(b) महा पाषाण काल
(c) नवपाषाण काल
(d) पुरापाषाण काल
व्याख्या: (c) मध्य प्रदेश के सागर जिले में अवस्थित एरण से नवपाषाण कालीन संस्कृति के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। एरण से एक अभिलेख प्राप्त हुआ है, जो 510 ई. का है। इसे 'भानुगुप्त का अभिलेख' कहते हैं, जो भानुगुप्त राजवंश से संबंधित था। यह लेख महाराज भानुगुप्त के अमात्य गोपराज के विषय में है, जो उस स्थान पर भानुगुप्त के साथ सम्भवतः किसी युद्ध में आया और वीरगति को प्राप्त हुआ था। गोपराज की पत्नी यहां सती हो गई थी। इस अभिलेख को एरण का सती अभिलेख भी कहा जाता है। जबलपुर में नर्मदा नदी के भेड़ाघाट, तिलवारा घाट तथा लमेटाघाट एवं रीवा संभाग के अंतर्गत सोन नदी एवं बनास एवं मोहन नदी से भी नवपाषाण कालीन उपकरणों की प्राप्ति हुई है। दमोह जिले के सिंग्रामपुर घाटी से वर्ष 1866 में नवपाषाण कालीन अवशेषों की प्राप्ति हुई है।
(a) सिंगरौली
(b) मुरैना
(c) कटनी
(d) होशंगाबाद
व्याख्या: (d) मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के समीप पचमढ़ी के ग्राम पनारपानी में मामा-भांजा शैलाश्रय स्थित है। भारत में जितने भी शैलाश्रय प्राप्त हुए हैं उनमें मध्य प्रदेश में पाए जाने वाले शैलाश्रयों की संख्या अधिक है। इन शैलाश्रयों में पशु-पक्षियों का शिकार, जानवरों की लड़ाई, मानव का पारस्परिक युद्ध आदि दृश्य दर्शाए गए हैं।
शैलाश्रय | स्थान |
---|---|
रानी माची शैलाश्रय | चितरंगी (सिंगरौली) |
लिखी छाज शैलाश्रय | करसा (मुरैना) |
झिंझरी शैलाश्रय | कटनी |
(a) सतना
(b) रीवा
(c) शहडोल
(d) मंडला
व्याख्या: (b) महाभारत में वर्णित कारूष देश के कारूष वंश का संस्थापक राजा मनु के पुत्र कारूष को माना जाता है। यह क्षेत्र वर्तमान मध्य प्रदेश के बघेलखंड क्षेत्र में स्थित रीवा जिले के अंतर्गत आता है।
(a) बी. बी. लाल
(b) आर. बी. जोशी
(c) वी.एस. वाकणकर
(d) अरुण सोनकिया
व्याख्या: (c) उज्जैन के समीप काली सिंध नदी के दाएं तट पर स्थित कायथा ताम्र पाषाण संस्कृति का प्रमुख स्थल है। कायथा की खोज वर्ष 1964 में वी.एस. वाकणकर ने की। मध्य प्रदेश में ताम्र पाषाण संस्कृति के अन्य स्थल नवदाटोली (मालवा), महेश्वर (नागदा), एरण (सागर), मनौती, इनामगांव आदि हैं, जिनके उत्खनन का श्रेय एच.डी. सांकलिया को जाता है।
(a) मौर्योत्तर काल
(b) गुप्त काल
(c) वैदिक काल
(d) उत्तर वैदिक काल
व्याख्या: (d) उत्तर वैदिक काल में मध्य प्रदेश से संबंधित कुछ अनार्य जातियों का उल्लेख ऐतरेय ब्राह्मण में मिलता है, जिसमें मध्य प्रदेश के जंगलों में निवास करने वाली निषाद जाति का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इसके अतिरिक्त अन्य वैदिकोत्तर साहित्य जैसे कौषीतकी उपनिषद में विंध्य पर्वत का उल्लेख एवं शतपथ ब्राह्मण में रेवोत्तरम नदी का उल्लेख मिलता है। प्रसिद्ध इतिहासकार वेबर द्वारा रेवोत्तरम नदी को रेवा नदी माना गया है, जिसे कालांतर में नर्मदा के नाम से जाना जाने लगा। हालांकि वैदिक कालीन समाज का प्रसार मध्य प्रदेश तक नहीं हो सका था।
(a) तुंडिकर
(b) मांधाता
(c) अनूप
(d) त्रिपुरी
व्याख्या: (b) पौराणिक कथाओं के अनुसार इक्ष्वाकु वंश के राजा मुचकुंद ने विंध्य तथा सतपुड़ा पर्वत श्रेणी के बीच में मान्धाता नगरी की स्थापना की जिसे कालांतर में खंडवा नाम दिया गया। मध्य प्रदेश में इसी समय अन्य जनपदों की भी स्थापना की गई जिनका भाषाई विकास के साथ नाम परिवर्तित हो गया।
प्राचीन नाम | समकालिक नाम |
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तुंडीकर | दमोह |
दर्शाण | विदिशा |
अनूप | निमाड़ (पूर्वी निमाड़) |
अवंती | उज्जैन |
त्रिपुरी | तेवर |
गोपालगिरी | ग्वालियर |
जाबालीपुरम | जबलपुर |
(a) भीमबेटका
(b) एरण
(c) हथनौरा
(d) आवरा
व्याख्या: (c) 5 दिसंबर, 1982 को मध्य प्रदेश के वर्तमान सीहोर जिले के समीप हथनौरा से नर्मदा मानव एवं विलुप्त हाथी (स्टेगाडॉन) के जीवाश्म प्राप्त हुए हैं। भीमबेटका (रायसेन) से प्रागैतिहासिक मानव के प्रथम साक्ष्य, निवास स्थल एवं चित्रित शैलाश्रय प्राप्त हुए हैं। एरण (सागर) से ताम्रपाषाणिक संबंधी सामग्री तथा सती प्रथा के प्रथम साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। आवरा (मंदसौर) से ताम्रपाषाणिक सामग्री तथा रोमन सभ्यता से संपर्क के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
(a) बिंदुसार
(b) अशोक
(c) चंद्रगुप्त मौर्य
(d) ब्रहदथ
व्याख्या: (b) सांची का प्रसिद्ध स्तूप ( रायसेन) का निर्माण सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में कराया था जो मूलतः ईंटों से निर्मित था। सांची के स्तूप की खोज 1818 ई. में पुरातत्वज्ञ जनरल टेलर द्वारा की गई। चीनी यात्री फाह्यान के अनुसार सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचारार्थ 84000 स्तूपों का निर्माण कराया था, जिसमें विदिशा सुनारी, सतधारा, भोजपुर और अधेर के स्तूप उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त सम्राट अशोक ने अपनी पत्नी कुमार देवी के लिए उज्जैन में भी एक विशाल स्तूप का निर्माण कराया गया था, जिसके अवशेष वर्तमान उज्जैन में वैश्य टेकरी नामक टीले के रूप में विद्यमान हैं।
अन्य मौर्यकालीन स्तूप | अवस्थिति |
---|---|
पनगुड़ारिया स्तूप | सीहोर |
देउरकुठार स्तूप | रीवा |
कसरावद स्तूप | खरगोन |
तूमैन स्तूप | गुना |
(a) कनिष्क
(b) बिंदुसार
(c) पुष्यमित्र शुंग
(d) अशोक
व्याख्या: (d) मौर्य युगीन सम्राट अशोक के द्वारा वर्तमान कटनी जिले (वर्ष 1998 के पूर्व जबलपुर) के बहोरीबंद तहसील के ग्राम पड़रिया में रूपनाथ लघु शिलालेख उत्कीर्ण है। दतिया जिले के समीप गुर्जरा नामक स्थान में अशोक के काल के बलुआ पत्थर में लघु शिलालेख की स्थापना की गई है। ये शिलालेख ब्राम्हीलिपि पाली भाषा सारो-मारो में लिखे गये हैं। सारो मारो (सीहोर), पानगुडरिया (सीहोर) तथा साँची (रायसेन) के लघु शिलालेखों का निर्माण भी सम्राट अशोक द्वारा कराया गया था।
(a) भागभद्र
(b) पुष्यमित्र शुंग
(c) देवभूति
(d) देवदत्त
व्याख्या: (a) ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार शुंग वंश के आठवें शासक भागभद्र के शासनकाल के 14वें वर्ष में ग्रीक राजा एंटीयालकीड्स का राजदूत हेलियोडोरस विदिशा आया था, जिसने भागवत धर्म ग्रहण किया। हेलियोडोरस ने विदिशा के समीप बेसनगर में प्रसिद्ध गरुड़ स्तंभ का निर्माण कराया था, जिसे वर्तमान में खामबाबा के नाम से जाना जाता है।
टिप्पणी: शुंगवंश के वंशज उज्जैन से संबंधित थे। कालिदास के द्वारा रचित मालविकाग्निमित्रम् में पुष्यमित्र शुंग के पुत्र अग्निमित्र के शासन का उल्लेख प्राप्त होता है।
(a) भरहुत स्तूप
(b) सांची स्तूप
(c) गरुड़ स्तंभ
(d) उपर्युक्त सभी
व्याख्या: (d) मध्य प्रदेश के सतना जिले में उचेहरा के समीप भरहुत बौद्ध स्तूप का पुनर्निर्माण शुंगकाल में कराया गया था, जिसकी खोज 1875 ई. में अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा की गई थी। अशोक द्वारा बनवाए गए सांची के स्तूप में वेदिका निर्माण और प्रवेश द्वार शुंगकाल में बनवाए गए। सम्राट अशोक का संघभेद रोकने की आज्ञा वाला अभिलेख भी सांची से प्राप्त हुआ है। प्रसिद्ध गरुड़ स्तंभ का निर्माण शुंग काल में ग्रीक राजदूत हेलियोडोरस द्वारा विदिशा में कराया गया।
(a) शातकर्णी प्रथम
(b) गौतमीपुत्र शातकर्णी
(c) सिमुक
(d) यज्ञ श्री शातकर्णी
व्याख्या: (c) सातवाहन वंश के संस्थापक सिमुक ने विदिशा के शासक कण्व को पराजित कर अपना आधिपत्य स्थापित किया। सातवाहन काल से संबंधित पूना तथा नासिक अभिलेखों के अनुसार गौतमी पुत्र शातकर्णी की माता गौतमी बलश्री ने अनूप (निमाड़), पूर्वी मालवा, पश्चिम मालवा पर विजय प्राप्ति की।
(a) विदिशा
(b) जबलपुर
(c) शहडोल
(d) हरदा
व्याख्या: (a) कुषाण वंश के संस्थापक विम कडफिसेस का सिक्का विदिशा से प्राप्त हुआ है, इसके अतिरिक्त कुषाण वंश के महान शासक कनिष्क के सिक्के शहडोल तथा हरदा से एवं वासुदेव प्रथम का तांबे का एक सिक्का जबलपुर के समीप तेवर से प्राप्त हुआ है।
(a) विदिशा
(b) होशंगाबाद
(c) उज्जैन
(d) अनूप (निमाड़)
व्याख्या: (a) सातवाहन वंश के अंतिम शासक यज्ञश्री शातकर्णी (165 ई. 193 ई.) के सिक्के विदिशा (बेसनगर) तेवर (जबलपुर) और देवास से प्राप्त हुए हैं। वशिष्ठ पुलुमावि (130-154 ई.) के सिक्के भिलसा एवं देवास से एवं इस वंश के अन्य शासकों द्वारा जारी किए गए सीसे के सिक्के त्रिपुरी (जबलपुर) से प्राप्त हुए हैं।
(a) जबलपुर
(b) बालाघाट
(c) छिंदवाड़ा
(d) सागर
व्याख्या: (b) मध्य प्रदेश में हिंद-यूनानी शासकों में प्रसिद्ध मिनांडर के सिक्के बालाघाट जिले से प्राप्त हुए हैं। प्रथम शताब्दी ईसापूर्व के बीच पर भारत पर यूनानी आक्रमण हुआ। परंतु मध्य प्रदेश के किसी भाग पर हिंद यूनानी अधिकार के संबंध में यह इकलौता प्रमाण है। अतः अपर्याप्त प्रमाणों के आधार पर मध्य प्रदेश के किसी क्षेत्र पर हिंद-यूनानी नरेशों का अधिकार मान लेना उपयुक्त नहीं है।
(a) भीमनाग
(b) स्कंदनाग
(c) बृहस्पतिनाग
(d) वृषनाथ
व्याख्या: (d) नाग वंश का संस्थापक वृषनाथ था, जिसने दूसरी शताब्दी ई. के अंत में विदिशा में इस वंश की स्थापना की। वर्ष 1913-14 ई. में बेसनगर (विदिशा) उत्खनन में नागों के सिक्के प्राप्त हुए हैं। नागवंश का अगला शासक भीमनाग हुआ, जिसने अपनी राजधानी विदिशा से पद्मावती स्थानांतरित की। भीमनाग के उत्तराधिकारी क्रमश: स्कंदनाग, बृहस्पतिनाग, विभुनाग, रविनाग, भावनाग, प्रभाकरनाग, देवनाग, गणपतिनाग हुए, इन सभी के सिक्के पवाया (ग्वालियर) से प्राप्त हुए हैं।
टिप्पणी- प्राचीन समय में पवाया को पद्मावती नाम से जाना जाता था। इसके बारे में प्रसिद्ध संस्कृत कवि भवभूति ने मालती माधव में इस क्षेत्र का उल्लेख किया है।
(a) बुरहानपुर
(b) बैतूल
(c) झाबुआ
(d) मंदसौर
व्याख्या: (a) आभीर वंश की स्थापना मध्य प्रदेश के खानदेश (बुरहानपुर) में सातवाहनों के सत्ता के अधीन हुई एवं अभीरों ने निमाड़ एवं मालवा को अपने अधिकार में ले लिया। नासिक शिलालेख के अनुसार आभीर साम्राज्य का संस्थापक ईवरसेन था।
(a) बघेलखंड
(b) बुंदेलखंड
(c) मालवा
(d) निमाड़
व्याख्या: (a) मध्य प्रदेश के बघेलखंड क्षेत्र पर मघ वंश के शासकों का अधिपत्य था। इस वंश का प्रथम शासक भीमसेन था। इस वंश के राजा भद्रमघ, शिवमघ आदि के सिक्के तथा मुहर, भीटा एवं बांधवगढ़ एवं कौशाम्बी से प्राप्त हुए हैं।
(a) मंडला
(b) जबलपुर
(c) बालाघाट
(d) सीहोर
व्याख्या: (b) ईसा की दूसरी तीसरी शताब्दी में त्रिपुरी (आधुनिक तेवर जबलपुर) क्षेत्र पर बोधि वंश के राजाओं की जानकारी मिलती है। त्रिपुरी उत्खनन में इस राजवंश के चार शासक श्रीबोधि, वसु बोधि, चंद्र बोधि तथा शिव बोधि के नाम प्राप्त हुए हैं। इस वंश के सिक्के जबलपुर के डॉ. महेशचंद्र चौबे के निजी संग्रह में सुरक्षित है।
(a) विंध्य प्रदेश
(b) बुंदेलखंड
(c) बघेलखंड
(d) पश्चिमी निमाड़
व्याख्या: (b) वाकाटकों का मूल निवास स्थान बुंदेलखंड था। पुराणों के अनुसार वाकाटक राजवंश के संस्थापक विंध्यशक्ति (255-275 ई.) का विदिशा क्षेत्र के आस-पास शासन था। इस वंश का शासक प्रवरसेन प्रथम था, जो कि विंध्य शक्ति का पुत्र था, इसने अश्वमेघ यज्ञ कराने के उपरांत अपने राज्य का विस्तार बुंदेलखंड से लेकर दक्षिण में हैदराबाद तक किया।
(a) समुद्रगुप्त
(b) चंद्रगुप्त
(c) श्रीगुप्त
(d) घटोत्कच
व्याख्या: (a) गुप्त वंश के पराक्रमी शासक समुद्रगुप्त (335-380 ई.) ने विदिशा के शक राजा श्रीधरवर्मन पर आक्रमण करके उसे पराजित किया और इस विजय की स्मृति में उसने सागर जिले के एरण के समीप एक स्मारक का निर्माण कराया। समुद्रगुप्त गुप्त राजवंश के चौथे राजा और चंद्रगुप्त प्रथम के उत्तराधिकारी थे। पाटलिपुत्र उनके साम्राज्य की राजधानी थी। इनका शासनकाल प्राचीन भारत के लिए स्वर्णयुग की शुरुआत कहलाता है। समुद्रगुप्त एक उदार शासक, वीर योद्धा, संगीतज्ञ और कला का संरक्षक था। उसका नाम जावा पाठ में 'तनत्रीकमन्दका' के नाम से प्रकट है। प्रसिद्ध इतिहासकार बी. ए. स्मिथ ने समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा है।
(a) मौर्य वंश
(b) गुप्त वंश
(c) औलीकर वंश
(d) परिव्राजक वंश
व्याख्या: (b) मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित बाघ गुफाओं की खोज 1818 ई. में डेंजर फील्ड ने की थी। बाघ गुफा में गुप्तकालीन चित्रकला के साक्ष्य प्राप्त होते हैं। बाघ गुफाओं के चित्रों की तुलना अजंता और एलोरा की गुफाओं से की जाती है। इन गुफाओं का संबंध बौद्ध धर्म से है।
(a) सागर
(b) दमोह
(c) जबलपुर
(d) विदिशा
व्याख्या: (b) ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार मध्य प्रदेश के दमोह जिले की हटा तहसील के ग्राम सकोर में उत्खनन से 24 स्वर्ण मुद्राओं की प्राप्ति हुई है। इन स्वर्ण मुद्राओं में समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त तथा स्कंद गुप्त के नाम अंकित हैं। इनमें सर्वाधिक 15 सिक्के चंद्रगुप्त एवं 8 सिक्के समुद्रगुप्त तथा एक सिक्का स्कंदगुप्त का है।
(a) चंद्रगुप्त द्वितीय
(b) कुमारगुप्त द्वितीय
(c) नरसिंह गुप्त
(d) कनिष्क
व्याख्या: (b) गुप्त सम्राट कुमारगुप्त द्वितीय के मंदसौर अभिलेख से जानकारी लगती है कि कुमारगुप्त द्वितीय ने मंदसौर के समीप दशपुर में एक सूर्य मंदिर का निर्माण कराया था। मंदसौर अभिलेख संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण अभिलेख है, जिससे तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक जानकारी प्राप्त होती है।
(a) पांडू वंश
(b) कलचुरी वंश
(c) शुंग वंश
(d) गुप्त वंश
व्याख्या: (d) गुप्तकालीन शासकों द्वारा अनेक मंदिरों का निर्माण कराया, जिसमें मध्य प्रदेश के पन्ना जिले के पवई तहसील के समीप ग्राम नचना कुठार में स्थित पार्वती मंदिर प्रसिद्ध है, जो पूर्व गुप्त कालीन वास्तुकला का प्रतिनिधित्व करता है। जनरल कनिंघम के अनुसार पांचवीं सदी ई. में निर्मित यह मंदिर पूर्व के सपाट छतों वाले मंदिरों की निर्माण शैली से भिन्न है, क्योंकि यहां वर्गाकार गर्भगृह के ऊपर शिखर का क्रमिक विकास है।
मध्य प्रदेश में निर्मित | गुप्तकालीन मंदिर |
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तिगवां का कंकाली एवं विष्णु मंदिर | जबलपुर (वर्तमान कटनी) |
भूमरा का शिव मंदिर | नागौद (सतना) |
सांची का बौद्ध मंदिर | रायसेन |
खोह शिव मंदिर | नागौद (सतना) |
(a) राजगढ़
(b) मंदसौर
(c) भोपाल
(d) उपर्युक्त सभी
व्याख्या: (d) चौथी शताब्दी ई. के उत्तरार्ध में मालवा के औलीकरों की एक शाखा के रूप में औलीकरों द्वारा दशपुर (मंदसौर) को अपनी राजधानी बनाकर राज्य स्थापित किया गया। मध्य प्रदेश में औलिकर वंश से संबंधित अभिलेख भोपाल, नरसिंहपुर, राजगढ़, चित्तौड़गढ़, भानपुरा आदि स्थानों से प्राप्त हुए हैं। ज्ञात हो कि मालवा को 'मालवा' नाम भी औलीकरों द्वारा दिया गया।
(a) तोरमाण
(b) यशोधर्मन
(c) विष्णुधर्मन
(d) मिहिरकुल
व्याख्या: (b) मंदसौर शिलालेख में यशोधर्मन (493-515 ई.) को जनेंद्र, नराधिपति, राजाधिराज, परमेश्वर आदि उपाधियों से अलंकृत किया गया है। यशोधर्मन का दूसरा नाम विष्णुवर्धन था। यशोधर्मन से संबंधित दो अभिलेख मंदसौर से प्राप्त हुए हैं। इन अभिलेखों के अनुसार उसका प्रभुत्व लौहित्य (ब्रह्मपुत्र) से महेंद्र पर्वत (गंजाम जिला) तक और हिमालय से पश्चिमी सागर तक फैला था।
(a) महाराजाधिराज
(b) राजाधिराज
(c) महाराज
(d) परमेश्वर
व्याख्या: (a) तोरमाण भारत वर्ष पर आक्रमण करने वाले हूणों का प्रतिनिधित्वकर्त्ता था, जिसने 500 ई. के लगभग मालवा पर अधिकार किया था। मिहिरकुल तोरमाण का ही पुत्र था, जिसने हूण साम्राज्य का विस्तार अफगानिस्तान तक किया। तोरमाण ने कई विजय अभियान किये थे, एक बड़े विस्तृत भू-भाग पर अपना साम्राज्य स्थापित किया था। अपनी विजयों के बाद उसने 'महाराजाधिराज' की उपाधि धारण की थी।
(a) शरभपुरिय वंश
(b) राजर्षीतुल्य वंश
(c) परिव्राजक वंश
(d) वाकाटक वंश
व्याख्या: (c) मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र पर परिव्राजक राजवंश का अधिपत्य था। पन्ना जिले में खोह से प्राप्त अभिलेख में इस वंश के राजाओं की वंशावली दी गई है, जिसके अनुसार इसका प्रथम राजा देवादय एवं उसका पुत्र प्रभंजन एवं उसका पुत्र हस्तिन (हस्ती) हुआ जो इस वंश का सर्वाधिक प्रतापी राजा था। हस्ती (415-517 ई.) के तीन ताम्रपत्र खोह, डाभाल (जबलपुर) तथा मझगवा से प्राप्त हुए।
(a) रानी लक्ष्मीबाई
(b) रानी अवंतीबाई लोधी
(c) झलकारी बाई
(d) बेगम हजरत महल
व्याख्या: (b) रानी अवंतीबाई लोधी को भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम महिला शहीद वीरांगना माना जाता है। 1857 ई. की क्रांति में अवंतीबाई रेवांचल में मुक्ति आंदोलन की सूत्रधार थी। मंडला जिले में रामगढ़ रियासत की रानी अवंतीबाई के पति विक्रमादित्य सिंह की मृत्यु के बाद इनके पुत्र के नाबालिग होने की स्थिति में अंग्रेजों ने हड़प नीति के अंतर्गत यहां एक ब्रिटिश तहसीलदार की नियुक्ति की जिसका रानी अवंतीबाई ने विरोध किया। 23 नवंबर, 1857 को मंडला के समीप खेरी गांव में रानी अवंतीबाई एवं अंग्रेज सेनापति वार्डन का युद्ध हुआ जिसमें अंग्रेज सेनापति पराजित हुआ। किंतु दिसंबर, 1857 में अंग्रेज सेनापति वार्डन ने रीवा राज्य की सेना की सहायता से पुन: गढ़मंडला पर आक्रमण कर रामगढ़ को घेर लिया और 20 मार्च, 1858 को युद्ध में पराजय की आशंका से अवंतीबाई ने देवहारगढ़ के जंगलों के समीप अपनी अंगरक्षिका गिरधारीबाई के साथ कटार घोप कर आत्महत्या कर ली।
(a) ग्वालियर
(b) झाँसी
(c) शिवपुरी
(d) आगरा
व्याख्या: (c) ब्रिटिश हुकूमत के बीच 'भारतीय चीते' के नाम से प्रसिद्ध रहे तात्या टोपे को सरदार मानसिंह के विश्वासघात के कारण षडयंत्रपूर्वक शिवपुरी के जंगल में 7 अप्रैल, 1859 को मेजर मीड द्वारा पकड़ा गया और फौजी अदालत में मुकदमा चलाया जिसमें अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध बगावत के आरोप में शिवपुरी में ही बड़े जनसमुदाय के सामने 18 अप्रैल, 1859 को फाँसी दी गई।
विशेष: तात्या टोपे का जन्म महाराष्ट्र के नासिक जिले के निकट येवला नामक गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था, तात्या टोपे का वास्तविक नाम रामचंद्र पांडुरंग राव था।
(a) शहादत खान
(b) भीमा नायक
(c) सूरज सेन
(d) गंजन सिंह
व्याख्या: (b) बड़वानी रियासत के भीमा नायक को निमाड़ का रॉबिनहुड कहा गया है। तात्या टोपे जब निमाड़ आए थे तो भीमा नायक ने उन्हें नर्मदा पार करने में सहयोग किया था। 1857 ई. में हुए अंबापानी के युद्ध में निर्णायक भूमिका निभाने वाले भीमा नायक ने निमाड़ क्षेत्र के ब्रिटिश मुख्यालय मंडलेश्वर को लूट लिया किन्तु अंग्रेजों ने षडयंत्रपूर्वक भीमा को पकड़ कर दोष सिद्ध होने पर उन्हें पोर्ट ब्लेयर व निकोबार में रखा गया।
विशेष: हालांकि उनके मृत्यु स्थल एवं तिथि को लेकर दीर्घकाल से संशय था। भीमा नायक के मृत्यु स्थल से संबंधित यूजीसी की स्वीकृत शोध परियोजना पर काम कर रहे बड़वानी के दो प्राध्यापक पुष्पलता खरे और मधुसूदन चौबे के शोध के बाद यह स्पष्ट हुआ की भीमानायक की मृत्यु 29 दिसंबर, 1876 को पोर्ट ब्लेयर में ही हुई।
(a) रविशंकर शुक्ल
(b) डॉ. राघवेंद्र
(c) शंभूनाथ शुक्ला
(d) डॉ. हरिसिंह गौर
व्याख्या: (d) मध्य प्रदेश के सागर जिले में बांदा के समीप ग्राम चिलपहाड़ी में जन्म लेने वाले डॉ. हरिसिंह गौर ने वर्ष 1904 में अंग्रेजी शिक्षा पद्धति का कड़े शब्दों में विरोध किया। डॉ. हरिसिंह गौर ने हिंदी भाषा में ही बेहतर शिक्षा व्यवस्था के उद्देश्य से 18 जुलाई, 1946 को अपनी समस्त आय एवं पैतृक संपत्ति की सहायता से अपनी जन्मभूमि सागर में सागर विश्वविद्यालय की स्थापना की, जो मध्य प्रदेश का पहला विश्वविद्यालय है। वर्ष 1929 के लाहौर अधिवेशन में मध्य प्रदेश के डॉ. हरिसिंह गौर ने नए विभाग तथा प्रशासन को पृथक-पृथक करने की मांग उठाई। डॉ. गौर ने बौद्ध धर्म पर आधारित "दी स्पिरिट ऑफ बुद्धिज्म" नामक पुस्तक लिखी जिसमें उन्होंने हिंदी माध्यम में शिक्षा व्यवस्था का समर्थन किया। डॉ. गौर के शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान के लिए 9 जुलाई, 1925 को 'सर' की उपाधि से विभूषित किया गया।
(a) मास्टर लाल सिंह
(b) बंजारे सिंह कोरकू
(c) लक्ष्मीनारायण संथाल
(d) लाखन सिंह कोरकू
व्याख्या: (b) मध्य प्रदेश के आदिवासियों द्वारा बैतूल जिले के घोड़ाडोंगरी में वर्ष 1930 में 'चिखलार' से जंगल सत्याग्रह शुरू हुआ। जिसका नेतृत्व गंजन सिंह कोरकू एवं उनके सहयोगी विष्णु सिंह ने किया और जिले के प्रसिद्ध स्थल बंजारीढाल में हजारों आवासियों के साथ जंगल कानून तोड़ा। घोड़ाडोंगरी सत्याग्रह में पहले शहीद बंजारीढाल के कौंवा कोरकू हुए। राज्य के इस प्रसिद्ध जंगल सत्याग्रह में कौवा के अतिरिक्त रामू कोरकू, मकडू कोरकू और बूंचा कोरकू जैसे देशभक्त वीरगति को प्राप्त हुए।
विशेष- विभिन्न पाठ्य सामग्री में घोड़ाडोंगरी सत्याग्रह के नेतृत्वकर्ता बंजारे कोरकू को बताया गया है किंतु ब्रिटिशकालीन आधिकारिक प्रतिवेदन के अनुसार इस सत्याग्रह के नेतृत्वकर्ता गंजन सिंह कोरकू थे।
(a) 1938
(b) 1930
(c) 1933
(d) 1940
व्याख्या: (a) भोपाल राज्य प्रजामंडल की स्थापना वर्ष 1938 में सामंतशाही के विरूद्ध तथा लोकतंत्रीय शासन की स्थापना के लिये रियासतों में जन आंदोलन छेड़ने के उद्देश्य से की गई थी। भोपाल में हुये इसके खुले अधिवेशन में नागरिक स्वतंत्रता की मांग का प्रस्ताव पेश किया गया था। भोपाल राज्य प्रजामंडल में मौलाना तर्जी मशरिकी सदर और चतुर नारायण मालवीय मंत्री चुने गये। राष्ट्रीय स्तर में पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद की स्थापना के अनुरूप ही यह संगठन स्थापित किया गया था।
(a) सविनय अवज्ञा
(b) असहयोग आंदोलन
(c) भारत छोड़ो आंदोलन
(d) इनमें से कोई नहीं
व्याख्या: (b) श्री प्रेमचंद उस्ताद का जन्म मध्य प्रदेश के खंडवा में हुआ था, जिन्होंने राज्य में असहयोग आंदोलन का कुशलता से प्रचार-प्रसार किया। असहयोग आंदोलन का संचालन स्वराज की मांग को लेकर किया गया। इसका उद्देश्य सरकार के साथ सहयोग न करके कार्यवाही में बाधा उत्पन्न करना था। असहयोग आंदोलन गांधी जी ने 1 अगस्त, 1920 को आरंभ किया।
(a) माखनलाल चतुर्वेदी
(b) सुभद्रा कुमारी चौहान
(c) दादा किन खेड़े
(d) जमुनालाल बजाज
व्याख्या: (a) कर्मवीर एक हिंदी पत्रिका थी। पत्रकारिता के पितृ पुरुष माधवराव सप्रे की प्रेरणा से इसका प्रथम प्रकाशन 17 जनवरी 1920 को जबलपुर से हुआ। इसके प्रथम सम्पादक माखनलाल चतुर्वेदी थे। नवम्बर, 1922 तक यह पत्रिका जबलपुर से निकलती थी, किंतु बाद में इसका प्रकाशन खंडवा से होने लगा।
(a) 1920
(b) 1915
(c) 1918
(d) 1922
व्याख्या: (b) मध्य प्रदेश के जबलपुर में वर्ष 1915 में होमरूल लीग की स्थापना की गई जिसका मुख्य उद्देश्य भारत में स्वशासन के लिए राष्ट्रीय मांग का नेतृत्व करना था। भारत को ब्रिटिश राज में एक डोमिनियन का दर्जा प्राप्त करने के लिए ऐसा किया गया था।
(a) 1891
(b) 1898
(c) 1907
(d) 1888
व्याख्या: (a) मध्य भारत में कांग्रेस का प्रथम सम्मेलन वर्तमान महाराष्ट्र राज्य के नागपुर में वर्ष 1891 में संपन्न हुआ। मध्य भारत के लोगों में राष्ट्रीय चेतना के प्रति जागरूकता लाने वाले इस सम्मेलन के अध्यक्ष पी. आनंद चार्लू थे। कांग्रेस के इस अधिवेशन में ही कांग्रेस का दूसरा नाम राष्ट्रीयता रखा गया था।
(a) सिवनी
(b) छिंदवाड़ा
(c) खंडवा
(d) बैतूल
व्याख्या: (c) पंजाब मेल हत्याकांड का संबंध मध्य प्रदेश के खंडवा जिले से है। 23-24 जुलाई, 1931 की मध्यरात्रि को दमोह के तीन क्रांतिकारियों यशवंत सिंह, देव नारायण तिवारी और दलपत राव द्वारा दिल्ली से मुंबई जा रही पंजाब मेल में खंडवा रेलवे स्टेशन पर सवार होकर अंग्रेज अफसर हैक्सल, मेजर शाइन एवं उनके पालतू कुत्तों की हत्या कर दी थी। इसके उपरांत 10 अगस्त, 1931 को खंडवा अदालत में इन क्रांतिकारियों के विरुद्ध मुकदमा चलाया गया था। जिसके आधार में 11 दिसम्बर, 1931 को मध्य प्रदेश के जबलपुर में यशवंत सिंह एवं देवनारायण तिवारी को फांसी की सजा एवं दलपत राव को काला पानी की सजा दी गई।
विशेष- पंजाब मेल रेलगाड़ी का 1 जून, 1931 को शुरू हुई थी तब यह बल्लार्ड पियर से पेशावर तक जाती थी। वर्ष 1914 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान इसका शुरुआती स्टेशन बदलकर विक्टोरिया टर्मिनल कर दिया गया। आज़ादी के बाद इसका गंतव्य भारत-पाक सीमा पर स्थित फिरोज़पुर स्टेशन कर दिया गया है।
(a) सेठ गोविंद दास
(b) पं. द्वारका प्रसाद मिश्र
(c) (a) एवं (b) दोनों
(d) इनमे से कोई नहीं
व्याख्या: (c) गांधी जी द्वारा 12 मार्च, 1930 को शुरू किये गये 'दांडी मार्च' को 'नमक मार्च' अथवा नमक सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है, जिसमें गांधी जी ने अहमदाबाद स्थित साबरमती आश्रम से समुद्रतट जाकर नमक बनाकर सरकार को चुनौती दी। मध्य प्रदेश के जबलपुर में 6 अप्रैल, 1930 को सेठ गोविंद दास एवं पं. द्वारका प्रसाद मिश्र के नेतृत्व में नमक सत्याग्रह की शुरुआत हुई। नमक सत्याग्रह के दौरान सिवनी जिले के श्री दुर्गा शंकर मेहता ने गांधी चौक में नमक बनाकर सत्याग्रह किया था। मध्य प्रदेश में जबलपुर, सिवनी, खंडवा, सीहोर आदि नगरों में नमक कानून तोड़ा गया।
(a) मध्य प्रदेश एवं बिहार
(b) मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र
(c) बिहार एवं बंगाल
(d) बंगाल एवं महाराष्ट्र
व्याख्या: (b) मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी जनजाति भील प्रदेश के दक्षिण पश्चिम क्षेत्र विशेषकर झाबुआ, अलीराजपुर जिलों में निवास करती है। साथ ही भील जनजाति की बड़ी संख्या महाराष्ट्र राज्य में भी है। अतः मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र में भील जनजाति द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति प्रारंभ की गई थी।
(a) ग्वालियर के सिंधिया
(b) इंदौर के होल्कर
(c) नागपुर के भोसले
(d) रामगढ़ के लोधी
व्याख्या: (a) 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में मध्य प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया और संपूर्ण क्षेत्र में विद्रोह की आग फैल गई। किंतु इस विद्रोह में ग्वालियर के सिंधिया राजवंश के महाराजा जीवाजी राव ने अनेक अंग्रेज अधिकारियों को विद्रोहियों से बचाकर आगरा भागने में मदद की थी। ब्रिटिश सरकार ने जीवाजी राव सिंधिया से प्रसन्न होकर 'जॉर्ज' की उपाधि दी थी वस्तुत: जॉर्ज इंग्लैंड के राजा का नाम था।
(a) भोसले
(b) तोमर
(c) बुंदेला
(d) चंदेल
व्याख्या: (c) मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले (वर्तमान-निवाड़ी जिले) के अंतर्गत बेतवा नदी के किनारे, मानिकपुर झांसी रेल मार्ग में अवस्थित ओरछा की स्थापना 1531 ई. में राजा रुद्र प्रताप ने की थी। वर्ष 1539 में भारतीचंद के समय में गढ़कुंडार के स्थान पर ओरछा को बुंदेलखंड की राजधानी बनाया गया था। मध्यकाल में ओरछा परिहार राजाओं की राजधानी थी। ध्यातव्य हो की बुंदेलों का आगमन 13वीं शताब्दी के आरंभ में हुआ था और सोहनपाल बुंदेला ने इस वंश का शासन स्थापित किया था।
(a) बुंदेलखंड
(b) शिवपुरी
(c) छत्तीसगढ़
(d) महाकौशल
व्याख्या: (a) राजा चंपत राय के पुत्र एवं बुंदेलखंड केशरी के नाम से प्रसिद्ध महाराजा छत्रसाल ने मुगल शासक औरंगजेब से युद्ध करके बुंदेलखंड में अपना राज्य स्थापित किया और 'महाराजा' की पदवी प्राप्त की। वसिया के युद्ध के बाद मुगलों ने छत्रसाल को 'राजा' की मान्यता प्रदान की थी। छत्रसाल ने 'कालिंजर का किला' भी जीता और मांधाता चौबे को किलेदार घोषित किया। राजा छत्रसाल का जन्म 17 जून 1648 वर्तमान टीकमगढ़ जिले के लिघोरा विकासखंड के अंतर्गत ककरकचनाय ग्राम के पास स्थित विंध्य के जंगलों की मोर पहाड़ियों में हुआ था एवं उनकी मृत्यु 20 दिसम्बर, 1731 छतरपुर, नौगांव के निकट मऊ सहानिया में हुई। 1665 में बीजापुर युद्ध में राजा छत्रसाल ने अपने घोड़े 'भलेभाई' की सहायता से देवगढ़ (छिंदवाड़ा) के गोंडा राजा को पराजित किया।
विशेष: महाराजा छत्रसाल का जन्म 17 जून, 1648 में वर्तमान टीकमगढ़ जिले के लिघोरा विकासखंड के अंतर्गत ककरकचनाय ग्राम के पास स्थित विंध्य के जंगलों की मोर पहाड़ियों में हुआ था। छत्रसाल ने युद्ध कौशल की शिक्षा 'देलवार' जाकर अपने मामा साहेबसिंह धंधेर के पास जाकर ली। छत्रसाल स्वयं कवि थे और छतरपुर इन्हीं ने बसाया था। इनकी प्रसिद्धि कला प्रेमी और भक्त के रूप में थी।
(a) राजेंद्र प्रसाद
(b) सुभाष चंद्र बोस
(c) पट्टाभि सीतारमैया
(d) जवाहरलाल नेहरू
व्याख्या: (b) 29 जनवरी, 1939 को जबलपुर के समीप त्रिपुरी में कांग्रेस का 52वां अधिवेशन आयोजित हुआ था, जिसमें सुभाषचंद्र बोस, गांधी समर्थक उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैया को 203 मतों से पराजित कर अध्यक्ष के पद में निर्वाचित हुए थे। हालांकि बाद में गांधीजी से वैचारिक मतभेद हो जाने के कारण सुभाष चंद्र बोस ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया एवं मई, 1939 में कांग्रेस के भीतर फॉरवर्ड ब्लाक के निर्माण की घोषणा की। अतः उनके स्थान पर डॉ. राजेंद्र प्रसाद को अध्यक्ष बनाया गया।
(a) फिरोजशाह तुगलक
(b) कुतुबुद्दीन ऐबक
(c) इल्तुतमिश
(d) अलाउद्दीन खिलजी
व्याख्या: (b) गुलाम अथवा मामूलक वंश के संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1202 ई. में बुंदेलखंड पर आक्रमण किया और चंदेल शासक परमार्दिदेव को पराजित कर कालिंजर, खजुराहो एवं महोबा पर अधिकार कर लिया। मालवा क्षेत्र में कुतुबुद्दीन ने प्रथम आक्रमण (1196-97 ई.) उज्जैन में किया था।
विशेष: कुतुबुद्दीन ऐबक को भारत में तुर्क सल्तनत का संस्थापक माना जाता है, क्योंकि ऐबक ने ही भारत में इस्लामिक सांप्रदायिक राज्य की स्थापना की थी।
(a) कुतुबुद्दीन ऐबक
(b) इल्तुतमिश
(c) अलाउद्दीन खिलजी
(d) फिरोजशाह तुगलक
व्याख्या: (b) शमसुद्दीन इल्तुतमिश (1210-1236 ई.) ने 1234 ई. में उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर में लूटपाट की थी। इसके अतिरिक्त इल्तुतमिश ने 1231 ईसवी में ग्वालियर दुर्ग पर आक्रमण कर प्रतिहारों को पराजित किया था। अपने विजय अभियान के दौरान इसने मांडू, ग्वालियर आदि क्षेत्रों में भी विजय प्राप्त की।
(a) कुतुबुद्दीन ऐबक
(b) महमूद गजनवी
(c) मोहम्मद गोरी
(d) मोहम्मद तुगरिल
व्याख्या: (c) शहाब-उद-दीन मोहम्मद गोरी एक अफगान सेनापति था जिसने 1195 ई. में ग्वालियर के शासक लोहंगदेव पर आक्रमण किया था। 1195-96 में ही मोहम्मद गोरी ने अपने गुलामों कुतुबुद्दीन ऐबक एवं तुगरिल के साथ ग्वालियर के दुर्ग एवं त्रिभुवनगढ़ (करोली, राजस्थान) के किले में आक्रमण किया।
(a) हम्मीरवर्मन
(b) नरवर्मन
(c) छहदेव
(d) जैतुगुदेव
व्याख्या: (b) नरवर्मन ने तुर्क शासकों के साथ मिलकर ग्वालियर पर आक्रमण किया था, जिसके परिणामस्वरूप ग्वालियर पर तुर्कों का अधिकार हो गया। इस युद्ध में नरवर्मन को सहायता देने के उपहारस्वरूप इल्तुतमिश ने शिवपुरी पर अधिकार प्रदान किया था।
(a) 1237 ई.
(b) 1239 ई.
(c) 1241 ई.
(d) 1247 ई.
व्याख्या: (d) कालिंजर दुर्ग जिस पर्वत पर निर्मित है वह दक्षिण पूर्वी विंध्याचल पर्वत श्रेणी का भाग है नासिरुद्दीन महमूद के शासनकाल में जब बलबन नायाब-ए-मुमालिकत था तब नासिरुद्दीन ने 1247 ई. में कालिंजर पर आक्रमण किया। हालांकि बघेल शासक बल्केश्वर एवं दलकेश्वर ने इस आक्रमण का वीरतापूर्वक सामना किया, किंतु अंत में नासिरुद्दीन महमूद ने विजय प्राप्त की।
(a) बेगम शाजिदा सुल्तान
(b) बेगम आबिदा सुल्तान
(c) शाहजहां बेगम
(d) सिकंदर जहां बेगम
व्याख्या: (c) मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 12 में स्थित ताज-उल-मस्जिद एशिया की दूसरी सबसे बड़ी मस्जिद मानी जाती है, एवं क्षेत्रफल के हिसाब से देखा जाए तो ये दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद है। ताज-उल का अर्थ है 'मस्जिदों का ताज'। इस मस्जिद का निर्माण भोपाल राज्य की शासिका शाहजहां बेगम (बांकी मोहम्मद की पत्नी) ने वर्ष 1866 ई. में (सम्राट बहादुर शाह के समय) प्रारंभ करवाया किंतु पैसों की तंगी के कारण निर्माण कार्य रोकना पड़ा था। आजादी के बाद वर्ष 1971 में भोपाल के अलामा इमरान मोहम्मद खान और मौलाना शहीद हाशमत अली के प्रयासों से निर्माण एक बार फिर शुरू हुआ, जो वर्ष 1985 तक चला। बलुआ - पत्थर से निर्मित गुलाबी रंग की इस मस्जिद में सफेद गुंबदों के साथ विशाल मीनारें हैं।
विशेष- शाहजहां बेगम ने मस्जिद को आकर्षक रूप देने के लिए विदेश से खासतौर से लाख का पत्थर भी मंगवाया था, ये पत्थर ऐसा था जिसमें अक्स नजर आता था, इसलिए मौलवियों ने इस पत्थर को मस्जिद में लगवाने पर रोक लगा दी। ताज-उल-मस्जिद में हर साल तीन दिन का इज्तिमा उर्स होता है, जिसमें दुनियाभर की जमातें शिरकत करती हैं।
(a) शाहजहां बेगम
(b) यार मोहम्मद खान
(c) दोस्त मोहम्मद खान
(d) गौहर बेगम
व्याख्या: (d) भोपाल के चौक क्षेत्र में स्थित जामा मस्जिद दिल्ली की जामा मस्जिद के समान ही चार बाग पद्धति पर आधारित है। यह मस्जिद लाल रंग के पत्थरों से निर्मित है जिसका निर्माण भोपाल राज्य की 8वीं तथा प्रथम महिला शासिका नवाब गौहर बेगम (कुदसिया बेगम) ने 1832 ई. में शुरू करवाया था, जो 1857 ई. में बनकर पूर्ण हुई। इस मस्जिद के चारों कोनों पर 'हुजरे' बने हुए हैं। इसमें तीन दिशाओं से प्रवेश द्वार है। पूर्वी एवं उत्तरी द्वार के मध्य हौज है। यहां का प्रार्थना स्थल अर्द्ध-स्तम्भों एवं स्वतंत्र स्तम्भों पर आधारित है। स्तम्भों की संरचना इस प्रकार है कि भवन स्वतः दो समानांतर भागों में विभाजित हो जाता है। मस्जिद की प्रथम मंजिल पर छज्जेदार प्रलिंद हैं, जिसको आधार प्रदान करने के लिए कोष्ठकों का प्रयोग किया गया है।
विशेष- जामा मस्जिद को जामी मस्जिद या शुक्रवार मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है। जहां शुक्रवार की नमाज पढ़ी जाती है। भोपाल के अलावा जामा मस्जिद - दिल्ली, फतेहपुर, श्रीनगर, आगरा, कल्बादेवी (मुंबई) आदि स्थानों पर स्थित है।
(a) मोहम्मद बिन तुगलक
(b) फिरोजशाह तुगलक
(c) गयासुद्दीन तुगलक
(d) (a) एवं (c) दोनों
व्याख्या: (d) बटियागढ़ (दमोह) - मध्य प्रदेश का एक ऐतिहासिक स्थान है, जहां 1324 ई. में फारसी भाषा में उत्कीर्ण 2 अभिलेख प्राप्त हुए हैं। इन अभिलेखों में गयासुद्दीन एवं मोहम्मद बिन तुगलक के दमोह क्षेत्र में आधिपत्य की पुष्टि होती है। अभिलेखों से स्पष्ट होता है कि मोहम्मद बिन तुगलक ने बटियागढ़ दमोह में प्राणियों के लिए एक बावली और एक बगीचा बनवाया था। प्राप्त अभिलेख में दिल्ली का एक नाम 'जोगिनीपुर' भी दिया हुआ है।
विशेष- तुगलक वंश के ही सुल्तान फिरोजशाह तुगलक (1351-1388 ई.) का विवरण दुलचीपुर, सागर अभिलेख में मिलता है।
(a) सुल्तान मोहम्मद खान
(b) दोस्त मोहम्मद खान
(c) निजाम शाह
(d) यार मोहम्मद खान
व्याख्या: (b) मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक स्मारक चमन महल और रानी महल राजधानी भोपाल के समीप इस्लाम नगर में स्थित हैं। इन महलों का निर्माण वर्ष 1715 में अफगान कमांडर और आधुनिक भोपाल के संस्थापक दोस्त मोहम्मद खान ने करवाया था। 1715 ई. में दोस्त मोहम्मद खान ने जगदीशपुर दुर्ग जीत कर इसका नाम इस्लामनगर रखा।
विशेष- आधुनिक भोपाल के संस्थापक दोस्त मोहम्मद खान अफगानी कमांडर थे जिनका जन्म 1657 ई. में वर्तमान पाकिस्तान की तिराह में हुआ था और उनकी मृत्यु 1728 ई. में भोपाल में हुई थी। दोस्त मोहम्मद की मृत्यु के बाद उसका मकबरा उसके पुत्र यार मोहम्मद खान द्वारा 1742 ई. में फतेहगढ़, भोपाल में बनाया गया। यहीं दोस्त मोहम्मद की पत्नी फतेह बीबी भी दफन की गई।
टिप्पणी- दोस्त मोहम्मद खान द्वारा भोपाल के गांधी चिकित्सा महाविद्यालय परिसर में निर्मित ढाई सीढ़ी मस्जिद को एशिया की सबसे छोटी मस्जिद माना जाता है।
(a) शाहजहां बेगम
(b) सिकंदरजहां बेगम
(c) कुदसिया बेगम
(d) बेगम आबिदा सुल्तान
व्याख्या: (c) गौहर महल भोपाल रियासत का पहला महल है। भोपाल शहर के बड़े तालाब के किनारे वी. आई. पी. रोड पर शौक्त महल के पास बड़ी झील के किनारे यह महल स्थित है। वास्तुकला का यह खूबसूरत नमूना भोपाल की प्रथम महिला शासिका कुदसिया बेगम के काल का है। इस तिमंजिले भवन का निर्माण भोपाल राज्य की तत्कालीन शासिका नवाब कुदसिया बेगम (सन् 181937) ने 1820 ई. में कराया था।
विशेष: गौहर महल 4.65 एकड़ क्षेत्र में फैला है। कुदसिया बेगम का अन्य नाम गौहर भी था, इसलिए इस महल को गौहर महल के नाम से जाना जाता है। यह महल हिन्दू और मुग़ल कला का अद्भुत संगम है। इस महल में दीवान-ए-आम और दीवान-ए-खास विशिष्ट हैं। गौहर महल के आंतरिक भाग में नयनाभिराम फव्वारे थे जो कालांतर में नष्ट हो गये हैं, हालांकि फव्वारों की हौज़ अब भी विद्यमान है। भवन की दूसरी मंजिल पर एक प्रसूतिगृह था, जिसकी दीवारों पर रंगीन चित्र बने थे।
(a) दोस्त मोहम्मद खान
(b) सिकंदर जहां बेगम
(c) इफ्तिखार अली खान
(d) कुदसिया बेगम
व्याख्या: (d) भोपाल के मध्य इकबाल मैदान के पश्चिमी छोर में स्थित दो मंजिला महल मोती महल के नाम से जाना जाता है। इसका निर्माण भोपाल की पहली महिला शासिका कुदसिया बेगम (1819-1837 ई.) ने करवाया था। यह भोपाल रियासत का पहला दरबार हॉल था। इसी महल के पास एक विशाल दरवाजा है, जो शौकत महल को मोती महल से जोड़ता है।
(a) कुदसिया बेगम
(b) शाहजहां बेगम
(c) सिकंदर जहां बेगम
(d) शाजीदा सुल्तान
व्याख्या: (c) मध्य प्रदेश के भोपाल शहर में सुल्तानिया रोड स्थित मोती मस्जिद का निर्माण सिकंदर जहां बेगम ने 1860 ई. में कराया था। सिकंदर जहां का घरेलू नाम मोती बीबी था, इसलिए इस मस्जिद का नाम मोती मस्जिद रखा गया। सफेद रंग की इस मस्जिद को सफेद संगमरमर और लाल पत्थर के इस्तेमाल से बनाया गया है। इस मस्जिद के पूर्वी छोर पर स्थित लॉन को मोतिया पार्क के नाम से जाना जाता है। मस्जिद में गहरे लाल रंग की दो मीनारें हैं, जो ऊपर नुकीली हैं और सोने के समान लगती हैं।
विशेष: वर्तमान में मोती मस्जिद का प्रबंधन औकाफे शाही द्वारा किया जाता है।
(a) होशंगाबाद
(b) मंदसौर
(c) खरगोन
(d) झाबुआ
व्याख्या: (c) पेशवा बाजीराव प्रथम (1720-1740 ई.) महान सेनानायक थे। इतिहासकारों के अनुसार बाजीराव पेशवा की हडिया तथा खरगोन प्राधिकार हेतु प्रस्थान के समय बीमारी से मृत्यु हो गई। हालांकि विद्वान सर रिचर्ड टेपिल के अनुसार बुंदेलखंड की मस्तानी नामक मुस्लिम स्त्री से उनके संबंध के प्रति विरोध प्रदर्शन के कारण श्रीमंत साहेब के अंतिम दिन क्लेशमय बीते और वह अस्वस्थ हो गए और 28 अप्रैल, 1740 में खरगोन के समीप रावडखेड़ी में ज्वर से पीड़ित होने के कारण इनकी मृत्यु हो गई। पेशवा बाजीराव की समाधि मृत्यु स्थल के समीप ही नर्मदा नदी घाटी, रावरखेड़ी (खरगोन) में स्थित है।
टिप्पणी: इनको 'बाजीराव बल्लाल' तथा 'थोरले बाजीराव' के नाम से भी जाना जाता है। साथ ही, इनकी वीरता एवं पराक्रम के कारण कुछ लोग इन्हें अपराजित हिंदू सेनानी सम्राट भी कहते थे।
(a) औरंगजेब
(b) शाहजहां
(c) हर्षवर्धन
(d) जहांगीर
व्याख्या: (a) मध्य प्रदेश के उज्जैन के दोहद नामक स्थान पर 3 नवंबर, 1618 ई. को औरंगजेब का जन्म हुआ था और औरंगजेब की मृत्यु 1707 ई. में हुई। औरंगजेब की मृत्यु ने मुगल साम्राज्य के पतन की नींव डाली, क्योंकि उसकी मृत्यु के पश्चात उसके तीनों पुत्रों के मध्य लंबे समय तक चलने वाले उत्तराधिकार के युद्ध ने शक्तिशाली मुगल साम्राज्य को कमजोर कर दिया। वर्ष 1722-23 में पेशवा बाजीराव ने सर्वप्रथम मालवा में सूबेदार राजा गिरधर बहादुर नागर के समय हमला किया था। इसी क्रम में वर्ष 1737 ई. के भोपाल युद्ध में पेशवा बाजीराव ने हैदराबाद के निजाम को परास्त करते हुए दौरासराय की संधि के तहत नर्मदा, चंबल क्षेत्र के बीच के सारे क्षेत्रों पर मराठों का प्रभाव स्थापित कर लिया।
(a) पेशवा बाजीराव प्रथम
(b) पेशवा बाजीराव द्वितीय
(c) मल्हार राव होल्कर
(d) खंडेराव होल्कर
व्याख्या: (b) 1 जनवरी 1818 ई. में कोरेगांव युद्ध (वर्तमान पुणे क्षेत्र) ब्रिटिश सेना में शामिल दलितों (महार) और बाजीराव द्वितीय की सेना के मध्य हुआ था। इस युद्ध में पेशवा ने आत्मसमर्पण कर दिया। इसके बाद पेशवा एवं अंग्रेजों में एक संधि हुई जिसके तहत पेशवा बाजीराव द्वितीय ने जबलपुर-सागर क्षेत्र, रघुजी भोसले से लेकर ब्रिटिशों को सौंप दिया था।
विशेष: दलित इसी युद्ध की वर्षगांठ को 'विजय दिवस' के रूप में मनाते हैं और प्रत्येक वर्ष 1 जनवरी को हजारों दलित लोग श्रद्धांजलि देने यहां आते हैं।
(a) मल्हारराव होलकर
(b) भौजीराज राव होलकर
(c) खंडेराव होलकर
(d) मालेराव होलकर
व्याख्या: (a) मालवा के प्रथम मराठा सूबेदार मल्हारराव होलकर थे। मल्हारराव इस राजवंश के प्रथम राजकुमार थे, जिन्होंने इंदौर पर शासन किया। मराठा साम्राज्य को उत्तर की तरफ प्रसारित करने वालों में मल्हारराव होलकर का नाम अग्रणी है। मल्हार राव होलकर की छतरी भिंड जिले के आलमपुर में स्थित है।
(a) 15 मई, 1948
(b) 12 अक्टूबर, 1948
(c) 28 मई, 1948
(d) 31 अक्टूबर, 1948
व्याख्या: (c) भारत की आजादी के बाद अप्रैल, 1948 में दिल्ली में मध्य भारत के राजाओं के सम्मेलन में 25 रियासतों का संयुक्त संघ बनाया गया जिसे मध्य भारत नाम दिया गया। 28 मई, 1948 को पं. जवाहरलाल नेहरू ने मध्य भारत राज्य के प्रथम राज्य प्रमुख के रूप में जीवाजी राव सिंधिया को शपथ दिलाई। जीवाजी राव सिंधिया, माधोराव सिंधिया के पुत्र थे जिनकी मृत्यु 5 जून, 1925 को हो गई।
(a) महादजी सिंधिया
(b) जयाजीराव सिंधिया
(c) दौलतराव सिंधिया
(d) जानकोजीराव सिंधिया
व्याख्या: (c) महादजी सिंधिया के दत्तक पुत्र दौलतराव सिंधिया ने 1810 ई. में राजधानी उज्जैन से ग्वालियर स्थानांतरित कर दी। दौलतराव सिंधिया के पिता का नाम आनंदराव सिंधिया था। 1794 ई. में महादजी सिंधिया की मृत्यु के बाद वह ग्वालियर का अधिपति बना और 21 मार्च, 1827 ई. में अपनी मृत्यु होने तक शासन किया। सिंधिया राजवंश के दूसरे शासक दौलतराव सिंधिया ने उज्जैन के गोपाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।
(a) रानोजी सिंधिया
(b) महादजी सिंधिया
(c) जयाजीराव सिंधिया
(d) तुकोजीराव सिंधिया
व्याख्या: (b) तीन आंग्ल-मराठा युद्धों में से पहला आंग्ल-मराठा युद्ध (1775-1782) ई. में अंग्रेजों और मराठा साम्राज्य के बीच लड़ा गया। इस युद्ध के प्रमुख घटनाक्रम के रूप में 4 अगस्त, 1780 को ग्वालियर पर कब्जा करने के उद्देश्य से जनरल गोदार्ड और महादजी के मध्य युद्ध हुआ। दोनों पक्षों की स्थिति बराबर होते देख हेस्टिंग्स ने महादजी सिंधिया पर आक्रमण के लिए मेजर कैमैक के नेतृत्व में एक और सैन्य दल भेजा जिससे महादजी ने कैमैक को चुनौती देने के लिए मालवा क्षेत्र में स्वयं मोर्चा संभाला और अपनी स्थिति मजबूत कर ली। कैमैक की सहायता के लिए अप्रैल, 1781 में कर्नल मुरें एवं कर्नल कनेक को भेजा गया और 16 फरवरी, 1781 में सिरोंज के समीप सिपरी (सिप्री) के युद्ध में कर्नल कनक से महादजी की हार हुई। किंतु आगे के घटनाक्रम में सिंधिया ने 1 जुलाई, 1781 को अंग्रेज सेनाओं को निर्णायक रूप से कुचल दिया और मराठा दल ने विजयश्री को प्राप्त किया। अंततः 17 मई, 1782 को महादजी और एंडरसन के बीच सालबाई की संधि हुई।
टिप्पणी- सालबाई वर्तमान ग्वालियर से 32 किमी. दक्षिण में स्थित है।
(a) ग्वालियर
(b) सागर
(c) खरगोन
(d) भोपाल
व्याख्या: (b) विजया राजे सिंधिया का मूल नाम देवी था जो ग्वालियर की राजमाता के रूप में जानी जाती है। राजमाता का जन्म 12 अक्टूबर, 1919 को सागर के नेपाल हाउस में राजपूत परिवार में ठाकुर महेंद्र सिंह राणा (जालौन के डिप्टी कलेक्टर) के राजपूत परिवार में हुआ था। जीवाजीराव से विवाह के उपरांत इनका नाम विजयाराजे सिंधिया हो गया। जीवाजीराव की मृत्यु के बाद ये जनसंघ दल से वर्ष 1957 से वर्ष 1991 तक आठ बार ग्वालियर और गुना संसदीय क्षेत्र से सांसद रहीं। राजमाता ने शिक्षा के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कार्य किए और अपने दिवंगत पति जीवाजीराव सिंधिया के नाम पर वर्ष 1964 में ग्वालियर में विश्वविद्यालय खुलवाया। इसके अतिरिक्त विजयाराजे ने सरस्वती शिशु मंदिर, गोरखी शिशु मंदिर, सिंधिया कन्या विद्यालय, ए. एम.आई. शिशु मंदिर और एम.आई. टी. एस. खुलवाए। आज भी ये स्कूल और इंजीनियरिंग कॉलेज संचालित हैं।
विशेष- राजमाता विजयाराजे सिंधिया के बारे में प्रामाणिक जानकारी उनकी आत्मकथा 'लास्ट महारानी ऑफ ग्वालियर' से प्राप्त होती है, साथ ही हिंदी लेखिका मृदुला सिन्हा ने उनकी जीवनी 'एक रानी ऐसी भी' की रचना की है।
(a) अंग्रेज एवं मुगल
(b) अंग्रेज एवं मराठा
(c) मराठा एवं सिख
(d) मुगल एवं सिख
व्याख्या: (b) प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध में मराठों की विजय के बाद युद्ध विराम हेतु 17 मई, 1782 को मराठों की तरफ से महादजी सिंधिया एवं अंग्रेजों की तरफ से एंडरसन ने ग्वालियर से 32 किमी. दक्षिण में स्थित सालबाई स्थान में संधि पर हस्ताक्षर किए जिसे सालबाई की संधि कहा जाता है। फरवरी, 1783 ई. में पेशवा की सरकार ने इस संधि को मान्यता दी। इस संधि के तहत अंग्रेजों ने राघोवा का पक्ष लेना छोड़ दिया और मराठा सरकार ने इसे पेंशन देना स्वीकार कर लिया साथ ही यमुना नदी के पश्चिम का समस्त भू-भाग महादजी सिंधिया को लौटा दिया गया। हालांकि साष्टी टापू अंग्रेजों के अधिकार में ही रहा। अंग्रेजों और मराठों में यह संधि 20 वर्षों तक शांतिपूर्वक चलती रही।
(a) यशवंतराव
(b) काशीराव
(c) राधेराव होलकर
(d) तुकोजी होल्कर
व्याख्या: (d) मल्हारराव होलकर की मृत्यु के बाद उसके पौत्र मालेराव होल्कर के नाम पर मल्हारराव की पुत्रवधू अहिल्याबाई ने कार्यभार संभाला और अपनी सेना का सेनापति तुकोजी होल्कर को नियुक्त किया।
(a) 1697 ई.
(b) 1719 ई.
(c) 1732 ई.
(d) 1796 ई.
व्याख्या: (c) 29 जुलाई, 1732 को, पेशवा बाजीराव ने होलकर वंश के संस्थापक मल्हारराव होलकर को सौंप कर होलकर रियासत को मान्यता दे दी। मध्य प्रदेश के होलकर राज्य की स्थापना वर्ष 1732 में सूबेदार मल्हाराव होल्कर ने मालवा के पठारी क्षेत्र में की थी। होलकर मूलरूप से एक चरवाहा जाति या कृषक वंश के रूप में जाना जाता था, जो मथुरा जिले से आकर दक्कन के गांव 'होल' या 'हल' में बस गये थे। इसी गांव के निवासी होने के कारण इनका पारिवारिक नाम 'होलकर' हो गया।
(a) मुरैना
(b) श्योपुर
(c) गुना
(d) भिंड
व्याख्या: (d) 16 मार्च, 1693 को पुणे जिले के होल गांव में चरवाहों के परिवार में जन्मे मराठा शासक मल्हारराव होलकर की मृत्यु 20 मई, 1766 ई. में मध्य प्रदेश के भिंड जिले के लहार तहसील के समीप ग्राम आलमपुर में हुई और इसी स्थल में इनकी समाधि बनवाई गई, जिसका निर्माण देवी अहिल्याबाई होलकर द्वारा 1766 ई. में कराया गया था।
विशेष: उत्तरी और मध्य भारत का 'किंग मेकर' कहे जाने वाले मल्हारराव को सैन्य विद्या सरदार कदम बांदे से प्राप्त हुई और जल्द ही वह पेशवा बाजीराव की सेना में शामिल हो गया। मल्हार राव होलकर की विजय गाथा को 'अटकेपार झेंडा रोवला' कह के सम्मानित किया जाता है।
(a) प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध
(b) द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध
(c) तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध
(d) पानीपत की तृतीय लड़ाई
व्याख्या: (c) 1817 से 1819 ई. के मध्य अंग्रेजों और मराठा साम्राज्य के बीच सम्पन्न तीसरा युद्ध निर्णायक और अंतिम युद्ध था। यह युद्ध अंतिम रूप से लॉर्ड हेस्टिंग्स के भारत के गवर्नर-जनरल बनने के बाद लड़ा गया। इस युद्ध में 'किक' में पेशवा, 'सीताबर्डी' में भोंसले एवं 'महीदपुर' में होल्कर की सेनाओं को अंग्रेजों की सेना ने बुरी तरह पराजित किया और इस प्रकार इंदौर, नागपुर, रीवा ब्रिटिश राज्य में सम्मिलित हो गए।
(a) वीर कुंवर सिंह
(b) यशवंत राव होलकर
(c) ठाकुर कुंदन सिंह
(d) राजा मानसिंह तोमर
व्याख्या: (b) तुकोजीराव होलकर के परिवार में जन्मे यशवंतराव होलकर की तुलना प्रसिद्ध इतिहासकार एन. एस. इनामदार ने 'नेपोलियन' से की है। यह एकमात्र ऐसा शासक था जिसके साथ अंग्रेज हर हाल में बिना शर्त समझौता करने को तैयार थे। यशवंतराव होलकर तुकोजी होलकर का पुत्र था। वह उद्दंड होते हुए भी बड़ा साहसी तथा दक्ष सेनानायक था।
विशेष: तुकोजी की मृत्यु पर (1797 ई.) उत्तराधिकार के प्रश्न पर दौलतराव शिंदे के हस्तक्षेप तथा तज्जनित युद्ध में यशवंतराव के ज्येष्ठ भ्राता मल्हरराव के बध (1797 ई.) के कारण, प्रतिशोध की भावना से प्रेरित हो यशवंतराव ने शिंदे के राज्य में निरंतर लूट-मार आरंभ कर दी।
(a) मंदसौर की संधि
(b) ग्वालियर की संधि
(c) राजपुरघाट की संधि
(d) उपर्युक्त सभी
व्याख्या: (d) ग्वालियर की संधि दौलतराम सिंधिया एवं अंग्रेज गवन जनरल लॉर्ड हेस्टिंग्स के बीच 5 नवंबर, 1817 ई. को संपन्न हुई थी। मंदसौर की संधि वर्ष 1818 में इंदौर के मल्हारराव होलकर और अंग्रेजों के मध्य हुई थी जिसके अनुसार होलकरों को सतपुड़ा पहाड़ियों के दक्षिणी क्षेत्र अंग्रेजों को देना पड़ा था। 24 दिसंबर, 1805 को व्यास नदी के किनारे राजपुर घाट नामक एक स्थान पर 'ब्रिटिश सरकार और यशवंतराव होलकर के बीच शांति संधि सम्पन्न हुई थी।
(a) पंजाब मेल हत्याकांड
(b) सोहावल का संहार
(c) चरण पादुका नरसंहार
(d) इनमें से कोई नहीं
व्याख्या: (c) चरण पादुका नरसंहार को मध्य प्रदेश के जलियांवाला बाग हत्याकांड की संज्ञा दी जाती है। 14 जनवरी, 1931 को मकर संक्रांति के दिन छतरपुर जिले में उर्मिल नदी के तट पर स्थित चरण पादुका मैदान के मेले में चल रही आम सभा को नौगांव के अंग्रेज एजेंट कर्नल फिशर के आदेश पर ब्रिटिश सैन्य बलों ने लोगों पर गोलियां चलाई, जिसमे 21 लोगों की मौत, और 26 लोग घायल हो गए। इस नरसंहार में सेठ सुंदर लाल गुप्ता गिलोंहा, धरम दास मातों खिरवा, राम लाल गोमा, चिंतामणि पिपट, रघुराज सिंह कटिया, करण सिंह, हलकाई अहीर, हल्के कुर्मी, रामकुंवर, गणेशा चमार, धर्मदास और रामलाल आदि देशभक्तों की मृत्यु हो गई। इसके प्रतिशोध के फलस्वरूप वर्ष 1939 में बुंदेलखंड में अंग्रेज शासन का विरोध करने के लिए बुंदेलखंड कांग्रेस समिति की स्थापना की गई जिसका अध्यक्ष रामसहाय तिवारी को चुना गया।
विशेष- स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद चरण पादुका बलिदान स्थल पर एक स्मारक बनाया गया, जहां पर लगे हुये एक बोर्ड में उपरोक्त वर्णित बलिदानी देशभक्तों के नाम अंकित हैं। स्मारक का शिलान्यास तत्कालीन केंद्रीय रक्षा मंत्री बाबू जगजीवन राम के द्वारा वर्ष 1978 में किया तथा अनावरण मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के द्वारा 14 जनवरी, 1984 को किया गया।
(a) दुर्गा शंकर मेहता
(b) गंजन सिंह
(c) सुजान सिंह
(d) रामाधीन
व्याख्या: (a) मध्य प्रदेश के वर्तमान सिवनी जिले में जंगल सत्याग्रह की का आरंभ ओखा लोहार सेनापति के द्वारा वर्ष 1930 में सिवनी के कुरई से 12 किमी. दूर पचधार नदी के पास दुरिया गांव (नागपुर के समीप) से हुआ था, जिसका नेतृत्व दुर्गाशंकर मेहता कर रहे थे।
(a) वॉरेन हेस्टिंग्स
(b) लॉर्ड माउंटबेटन
(c) लॉर्ड वेलेजली
(d) लॉर्ड कार्नवालिस
व्याख्या: (a) भारत के गवर्नर जनरल रहे वॉरेन हेस्टिंग्स ने ग्वालियर को हिंदुस्तान की कुंजी कहा था। मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर की स्थापना सूरज सेन नामक एक स्थानीय सरदार ने की थी, ग्वालियर के किले को किलों का रत्न कहा जाता है।
(a) मंडला
(b) झाबुआ
(c) रीवा
(d) जबलपुर
व्याख्या: (a) 15 अगस्त, 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन के समर्थन में मंडला में जुलूस व सभा आयोजित की गई थी, जिसका नेतृत्व 19 वर्षीय छात्र उदय चंद्र संभाल रहे थे। जिसमें पुलिस ने बर्बरता से गोली चलाई और वीर उदय चंद्र शहीद हो गए।
(a) रानी अहिल्याबाई
(b) रानी दुर्गावती
(c) रानी लक्ष्मीबाई
(d) गिरधारी बाई
व्याख्या: (b) कालिंजर राजा कीर्तिसिंह चंदेल की इकलौती संतान महारानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर, 1524 ई. को 'दुर्गाष्टमी' पर बांदा जिले के कालिंजर किले पर हुआ। दुर्गावती ने अपने पति दलपतशाह की मृत्यु के बाद पुत्र वीरनारायण के नाम से गोंड राज्य में शासन किया किन्तु स्रोतों के अनुसार अकबर भी गोंड राज्य को जीतकर रानी को अपने हरम में डालना चाहता था। अकबर द्वारा रानी दुर्गावती से उसके प्रिय हाथी (सरमन) और विश्वस्त वजीर आधार सिंह को उपहार में मांगने पर दुर्गावती ने मना कर दिया। अकबर ने आसफ खां के नेतृत्व में गोंड साम्राज्य पर हमला कर दिया जिसमें शुरुआत में आसफ खां पराजित हुआ, परंतु अगली बार उसने दोगुनी सेना और अधिक तैयारी के साथ जबलपुर से 18 किमी. दूर मंडला रोड पर अवस्थित बरेला के समीप नरई नाले के किनारे दुर्गावती के दल पर आक्रमण कर दिया। जिसमें दुर्गावती ने स्वयं पुरुष वेश में युद्ध का नेतृत्व किया किंतु दुर्गावती ने अंतिम समय में अपनी कटार स्वयं ही अपने सीने में भोंककर 24 जून, 1564 को वीरगति को प्राप्त हुई।
विशेष: बरेला नरई नाला (जबलपुर) में रानी दुर्गावती की समाधि स्थित है।
(a) राजा भरत
(b) राजा बलराम
(c) राजा शिशुपाल
(d) राजा राम
व्याख्या: (c) पौराणिक कथाओं के अनुसार वर्तमान मध्य प्रदेश के भिंड पर शिशुपाल ने शासन किया था। महाजनपद काल में मध्य प्रदेश में अवस्थित वेदी महाजनपद (वर्तमान भिंड) जिसकी राजधानी चंदेरी (अशोकनगर) थी। इस क्षेत्र का राजा शिशुपाल था जिसे श्रीकृष्ण ने मारा था।
(a) गुलाब सिंह
(b) महादेव तेली
(c) पद्मधर सिंह
(d) उदयचंद्र
व्याख्या: (c) मध्य प्रदेश के सतना जिले के समीप रीवा रोड में अवस्थित कृपालपुर ग्राम में जन्मे पद्मधर सिंह बघेल 12 अगस्त, 1942 को इलाहाबाद में जुलूस का नेतृत्व करते समय राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान की रक्षा करते हुए शहीद हो गये। उनकी वीरता, शौर्य और पराक्रम के कारण उन्हें सतना - रीवा क्षेत्र में रीवा का शेर कहा जाता था।
टिप्पणी: कुछ स्रोतों द्वारा कृपालपुर ग्राम की स्थिति रीवा होना बताया गया है किंतु जिला प्रशासन सतना से प्राप्त आधिकारिक जानकारी के अनुसार कृपालपुर ग्राम सतना जिले में स्थित है।
(a) इंदौर
(b) मंडला
(c) बैतूल
(d) रीवां
व्याख्या: (c) 9 अगस्त, 1942 को प्रारंभ हुए भारत छोड़ो आंदोलन के तीन दिवस बाद 12 अगस्त, 1942 को बैतूल के प्रभात पट्टन बाजार में आंदोलनकारी भीड़ ने पुलिसवालों की वर्दी उतरवाकर उन्हें खादी के वस्त्र धारण करवा दिए। इस आंदोलन के मुख्य नेता महादेव तेली थे।
(a) किंग एडवर्ड टाउन हॉल
(b) प्रिंस ऑफ वेल्स हॉल
(c) महारानी एलिजाबेथ हॉल
(d) महारानी विक्टोरिया टाउन हॉल
व्याख्या: (a) इंदौर स्थित गांधी हॉल किंग एडवर्ड सप्तम के राज्यारोहण के समय वर्ष 1904 में बनाया गया था, तथा इसका उद्घाटन नवंबर, 1905 में प्रिंस ऑफ वेल्स (जॉर्ज पंचम) द्वारा किया गया था। मूलतः इसका नाम किंग एडवर्ड टाउन हॉल था पर वर्ष 1947 में देश स्वतंत्र होने के बाद इसका नाम गांधी हॉल कर दिया गया। इस हॉल का निर्माण प्रसिद्ध वास्तुकार स्टीवेंसन ने किया था। इसके ऊपर राजपूताना शैली में गुंबद और मीनारे बनी हुई है। यह सफेद भवन सिवनी और पाटन के पत्थरों से इन्डोगोथिक शैली में बनाया गया है।
(a) चंदेरी
(b) विदिशा
(c) महोबा
(d) पन्ना
व्याख्या: (c) आल्हा और ऊदल दो भाई थे ये बुंदेलखंड के महोबा के वीर योद्धा और परमारों के सामंत थे। इनके पिता का नाम दसराज और इनकी मां देवला दे थी। कालिंजर के राजा परमार के दरबार में जगनिक नाम के एक कवि ने आल्हाखंड नामक एक काव्य रचा था, जिसमें इन वीरों की 52 लड़ाइयों में वीरगाथाओं का वर्णन है। आखरी लड़ाई उन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ लड़ी थी जिसमें पृथ्वीराज की युद्ध में हार हुई थी, किन्तु गुरु गोरखनाथ के आदेश से आल्हा ने पृथ्वीराज को जीवनदान दे दिया था। आल्हाखंड के अनुसार इस युद्ध में ऊदल एवं इसका घोड़ा बेंदुल वीरगति को प्राप्त हो गया था।
(a) रॉबर्ट क्लाइव
(b) सर टॉमस रो
(c) लॉर्ड एस्टर
(d) लॉर्ड डलहौजी
व्याख्या: (b) 1615 ई. में सम्राट जेम्स प्रथम ने सर टॉमस रो को अपना राजदूत बनाकर जहांगीर के दरबार में भेजा एवं टॉमस भारत में लगभग तीन साल रहा। व्यापारिक संधि करने के उद्देश्य से टॉमस 23 दिसंबर, 1615 को अजमेर पहुंचा, जब तक 1616 ई. में जहांगीर ने दक्कन में चल रही जंग के नजदीक रहने के दृष्टिकोण से मांडू (मध्य प्रदेश) को छावनी बनाया। सर टॉमस रो की यात्रा में आधारित प्रसिद्ध कृति 'एम्बेसी ऑफ थॉमस रो टू इंडिया' के अनुसार जब टॉमस जहांगीर से मिलने अजमेर जा रहा था तो उसके बेटे परवेज़ से बुरहानपुर (मध्य प्रदेश) में बादशाह से मुलाकात कर सूरत में फैक्ट्री लगाने का फरमान हासिल कर लिया था और शीघ्र ही जहांगीर को सोने और जवाहरात देकर मांडू में भी अधिकार प्राप्त करने में सफल रहा।
(a) नीमच
(b) मंदसौर
(c) राजगढ़
(d) टीकमगढ़
व्याख्या: (b) मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले की भानपुरा तहसील से 26 किमी. दूर नामली ग्राम में मध्य प्रदेश एवं राजस्थान की सीमा में अवस्थित हिंगलाजगढ़ 11 वीं शताब्दी में परमार राजाओं के समय मूर्तिकला के विशिष्ट केंद्र के रूप में प्रसिद्ध था। हिंगलाजगढ़ मुख्यतः शक्ति पीठ था। अतः शक्ति के विविध रूपी मूर्ति शिल्प खासकर अपराजित, वैनायकी, काव्यायनी, भुवनेश्वरी, बगलामुखी, गौरी आदि देवियों की प्रतिमायें प्राप्त हुई। सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हिंगलाजगढ़ में एक दुर्ग का निर्माण कराया गया था। दुर्ग में पाटनपोल, सूरजपोल, कटरापोल और मंडलेश्वरी पोल के नाम से चार दरवाजे हैं। पहले तीन दरवाजे पूर्वमुखी और मंडलेवरी दरवाजा पश्चिम मुखी है। 18वीं शताब्दी में होलकर साम्राज्य द्वारा इस दुर्ग का जीर्णोद्धार कराया गया।
(a) सतवंत सिंह
(b) भानु गुप्त
(c) सवाई जय सिंह
(d) महिपाल
व्याख्या: (c) उज्जैन शहर में दक्षिण की ओर शिप्रा नदी के दाहिने ओर जयसिंहपुरा नामक स्थान में जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह ने 1733 ई. में जंतर-मंतर महल का निर्माण कराया। जंतर मंतर, 'यंत्र-मंत्र' का अपभ्रंश रूप है और इसे अंग्रेजी में ऑब्जरवेटरी (observatory) कहते हैं। जंतर-मंतर में पांच यंत्र लगाए गए हैं-सम्राट यंत्र, नाड़ी वलय यंत्र, दिगंश यंत्र, भित्ति यंत्र एवं शंकु यंत्र। उज्जैन जंतर-मंतर के इन यंत्रों की 1925 ई. में महाराजा माधोराव सिंधिया ने मरम्मत करवाई थी। राजा जयसिंह ने इस तरह की 5 वेधशालाओं का निर्माण कराया, जिनमें उज्जैन के अतिरिक्त दिल्ली, जयपुर, मथुरा, और वाराणसी में स्थित हैं। इसमें सबसे पुरानी वेधशाला दिल्ली के कनॉट प्लेस में वर्ष 1724 ई. में बनवाई गई थी।
(a) कृष्णराज
(b) हुशंगशाह
(c) नन्नूक
(d) वाकपतिमुंज
व्याख्या: (b) होशंगाबाद की स्थापना मांडू (मालवा) के द्वितीय राजा सुल्तान हुशंगशाह गोरी द्वारा 15वीं शताब्दी के आरंभ में की गई थी। होशंगाबाद का प्राचीन नाम नर्मदापुरम था। होशंगाबाद नर्मदा नदी के किनारे स्थित है तथा इसके किनारे पर सतपुड़ा पर्वत स्थित है। नर्मदा नदी होशंगाबाद की उत्तरी सीमा के साथ-साथ बहती है। नर्मदा की सहायक नदी दूधी है, जो कि होशंगाबाद जिले की उत्तरी-पूर्वी सीमा बनाती है। नर्मदा नदी का प्रसिद्ध सेठानी घाट होशंगाबाद में ही है, जहां प्रतिवर्ष नर्मदा जयंती उत्सव मनाया जाता है।
(a) जबलपुर
(b) कटनी
(c) मंडला
(d) छतरपुर
व्याख्या: (b) कटनी से लगभग 32 किमी. दूर जबलपुर मार्ग पर स्थित स्लीमनाबाद कस्बे का नाम, कर्नल विलियम हेनरी स्लीमेन के नाम पर रखा गया था जो ठगी गतिविधियों को दबाने के लिए प्रसिद्ध थे। वस्तुतः मुगल साम्राज्य के पतन के बाद 18वीं शताब्दी में दिल्ली से जबलपुर जाने वाले मार्ग में स्थित थानों कराची, लाहौर, मंदसौर, मारवाड़, काठियावाड़, मुर्शिदाबाद के कई व्यापारी अपने पूरे दस्ते के साथ गायब हो जाते थे और यह घटना स्लीमनाबाद के आस-पास ज्यादा होती थी। कर्नल स्लीमेन आखिरकार लूटपाट करने वाले इस गिरोह के मुखिया 'ठग बेहराम' को स्लीमनाबाद के समीप पकड़ने में कामयाब हो गए। अत: कर्नल स्लीमेन के द्वारा आबाद गांव स्लीमनाबाद कहलाया। स्लीमेन की याद में एक स्मारक भी बनाया गया है। आज भी उनके वंशज इस स्मारक को देखने आते हैं।
(a) इब्राहिम लोधी
(b) शेरशाह सूरी
(c) मोहम्मद बिन तुगलक
(d) संग्राम शाह
व्याख्या: (a) राजा विक्रमाजीत तोमर ग्वालियर रियासत के प्रतापी राजा मानसिंह तोमर का पुत्र था। इब्राहीम लोदी (1517-1526 ई.) के आगरा सिहांसन में आसीन होने के बाद इसने हुमायूं शेरवानी को ग्वालियर आक्रमण के लिए भेजा। आक्रमण में राजा विक्रमादित्य को हथियार डालने पड़े और वह इब्राहीम का अधीनस्थ सामंत हो गया।
(a) झांसी
(b) ग्वालियर
(c) ओरछा
(d) कानपुर
व्याख्या: (b) लक्ष्मीबाई मराठा शासित राज्य झांसी की रानी थी और 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की द्वितीय शहीद वीरांगना थी। झांसी वर्ष 1857 के संग्राम का एक प्रमुख केंद्र बन गया। 18 जून, 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में अंग्रेजी सेना से लड़ते-लड़ते अंगरक्षिका झलकारीबाई सहित रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु हो गई।
विशेष: 19 नवंबर, 1828 को मोरोपंत तांबे के घर जन्मी लक्ष्मीबाई के बचपन का नाम 'मणिकर्णिका' था जो परिवर्तित होकर मनु हो गया। गंगाधर राव से विवाह के बाद ये लक्ष्मीबाई नाम से जानी जाने लगी।
(a) विद्या विनोद
(b) सरस्वतीकंठा भरण
(c) युक्तिकल्पत
(d) उपर्युक्त सभी
व्याख्या: (d) परमार वंशीय राजा भोज जो एक कवि, दार्शनिक और ज्योतिषी थे, जिन्होंने लगभग 84 ग्रन्थों की रचना की है। जिनमे सरस्वतीकंठाभरण, श्रृंगारमंजरी, चंपूरामायण, चारुचर्या, तत्वप्रकाश, व्यवहारसमुच्चय, श्रृंगारप्रकाश, तत्वप्रकाश (शैवागम), वृहद्राजमार्तंड (धर्मशास्त्र) विद्याविनोद आदि प्रमुख स्थान रखते हैं।
रचना | विषय वस्तु |
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समरांगणसूत्रधार | भारतीय वास्तुशास्त्र से संबंधित |
सरस्वतीकंठाभरण | सरस्वती के कंठ की माला काव्यतत्व का विवेचन। |
भोजवृत्ति या राजमार्तंड | पतंजलि के योगसूत्रों पर व्याख्या। |
राजमृगांक | चिकित्सा पद्धति का विवरण। |
युक्तिकल्पतरू | यह ग्रंथ राजा भोज के समस्त ग्रंथों में अद्वितीय है। |
भोजप्रबंध | यह बल्लाल की कृति है। इसकी रचना पद्यात्मक है। |
(a) शिवराज शाह
(b) मधुकर शाह
(c) नरहरी शाह
(d) चंद्र शाह
व्याख्या: (c) गढ़ा मंडला में गोंड राज का अंतिम शासक नरहरि शाह था। मराठों के साथ संघर्ष में आबा साहब मोरो व बापूजी नारायण ने उसे हराकर गढ़ा मंडला में मराठा शासकों का आधिपत्य स्थापित कर लिया।
(a) बानमोर
(b) खजुराहो
(c) सिहोनिया
(d) संबलगढ़
व्याख्या: (c) सिहोनिया मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में स्थित एक नगर है। इसे प्राचीन व मध्य काल में सिंहपानीय के नाम से जाना जाता था। 9वीं शताब्दी ई. से पहले यहां गुर्जर प्रतिहार राजवंश के अवशेष मिलते हैं। इसके उपरांत यह कच्छपघात राजवंश का एक मुख्य केंद्र था। कच्छपघात का अर्थ "कछुआ मारने वाला" होता है। सिहोनिया में ककनमठ शिव मंदिर प्रसिद्ध है, जिसका निर्माण कच्छपघात राजवंश के शासक कीर्तिराज ने कराया था। गुर्जर प्रतिहार शैली में बना यह मंदिर 115 फीट ऊंचा है। सिहोनिया जैन धर्म के अनुयायियों के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। यहां 11 वीं शताब्दी के शांतिनाथ, कुंथूनाथ, आदिनाथ, पार्श्वनाथ आदि जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं।
(a) जयशक्ति
(b) नन्नूक
(c) रघुनाथ
(d) वाक्पति
व्याख्या: (b) चंदेल वंश मूल रूप से राजपूत वंश था। जिसने 8वीं से 12वीं शताब्दी तक स्वतंत्र रूप से राज किया। प्रतिहारों के पतन के साथ ही चंदेल नौवीं शताब्दी में सत्ता पर आए इस वंश का संस्थापक नन्नुक अथवा नानुक (831-845 ई.) था। इनका साम्राज्य यमुना और नर्मदा के बीच, बुंदेलखंड तथा उत्तर प्रदेश के दक्षिण-पश्चिम तक विस्तृत था। चंदेलकालीन स्थापत्य कला ने समूचे विश्व को प्रभावित किया। उस दौरान वास्तुकला तथा मूर्तिकला अपने उत्कर्ष पर थी। खजुराहो के मंदिर इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं। 1203 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने इस वंश के अंतिम शासक परमार्दिदेव को पराजित कर कालिंजर पर अधिकार कर लिया और अंतत: 1305 ई. में चंदेल राज्य दिल्ली में मिल गया।
(a) रॉयल आयरिश
(b) कर्नल स्टाकतो
(c) केप्टन लुडओ
(d) कर्नल राबर्ट
व्याख्या: (a) 4 अप्रैल, 1858 को सर ह्यूरोज ने झांसी पर आक्रमण किया जिससे झांसी की रानी लक्ष्मीबाई (गंगाधर राव की विधवा) ने तात्या टोपे के साथ ग्वालियर पर अधिकार कर लिया। इस घटनाक्रम के बाद 18 जून, 1858 में रॉयल आयरिश के विरुद्ध युद्ध करते हुए रानी लक्ष्मीबाई एवं इनकी अंगरक्षिका झलकारीबाई ग्वालियर के समीप वीरगति को प्राप्त हो गई।
विशेष: तात्या टोपे इस युद्ध में बच निकले, किंतु तात्या टोपे को सिंधिया के एक सामंत मानसिंह द्वारा षड्यंत्रपूर्वक अंग्रेजों को पकड़वा दिया गया और 18 अप्रैल, 1859 को शिवपुरी में फांसी दे दी गई।
(a) बघेलखंड
(b) बुंदेलखंड
(c) मालवा
(d) विंध्य क्षेत्र
व्याख्या: (b) जेजाकभुक्ति या जिझौती राज्य, यमुना और नर्मदा नदी के बीच में स्थित है जिसे अब बुंदेलखंड कहते हैं। चंदेल राजा जयशक्ति जेजाक के नाम से ही बुंदेलखंड का नाम जेजाकभुक्ति या जिझौती पड़ा है। इसके मुख्य नगर महोबा, कालिंजर तथा खजुराहो हैं। जेजाकभुक्ति वही क्षेत्र है, जहां छत्रसाल, आल्हा उदल जैसे वीरों का जन्म हुआ है।
(a) जय शक्ति
(b) नन्नुक
(c) बंगदेव
(d) यशोवर्मन
व्याख्या: (c) चंदेल वंश का संस्थापक नंनुक (831-845 ई.) ने अपनी राजधानी महोबा या कलिंजर को बनाया जिसे धंगदेव द्वारा (950-1000 ई.) बदल कर खजुराहो किया गया। धंगदेव यशोवर्मन का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था, जिसे चंदेलों की वास्तविक स्वाधीनता का जन्मदाता माना जाता है। धंगदेव ने 'महाराजाधिराज' की उपाधि धारण की थी। ग्वालियर की विजय धंगदेव की सबसे महत्वपूर्ण सफलता थी। धंग ने भटिंडा के शासक जयपाल को सुबुक्तगीन के विरुद्ध सैनिक सहायता भेजी तथा उसके विरुद्ध बने हिंदू राजाओं के संघ में सम्मिलित हुआ। धंग के दरबार में न्यायाधीश 'भट्टयशोधर' तथा प्रधानमंत्री 'प्रभास' जैसे विद्वान ब्राह्मण शामिल थे। धंग विजेता होने के साथ ही, उच्चकोटि का निर्माता भी था। इसके शासन काल में निर्मित खजुराहो का पार्श्वनाथ मंदिर स्थापत्य कला का एक अनोखा उदाहरण है। धंगदेव ने इलाहाबाद (प्रयाग) में गंगा-यमुना के पवित्र संगम में अपना शरीर त्याग दिया था।
(a) उपेंद्र
(b) भोज
(c) हर्ष
(d) मुंज
व्याख्या: (a) परमार वंश (800-1327 ई.) मध्यकालीन भारत का अग्निवंशी क्षत्रिय राजपूत राजवंश था। इस वंश की स्थापना मालवा क्षेत्र में उपेंद्र या कृष्णराज द्वारा की गई थी। इस राजवंश का अधिकार धार, मालवा, उज्जयिनी, आबू पर्वत और सिन्धु के निकट अमरकोट आदि राज्यों तक था।
टिप्पणी: कुछ इतिहासकारों ने परवर्ती शासक सिंपाक द्वितीय को परमार राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
(a) गोंड
(b) मराठा
(c) राजपूत
(d) मौर्य
व्याख्या: (a) मध्य प्रदेश के पूर्वी भाग में 15 से 17 वीं शताब्दी के बीच गोंड जनजाति का सफल शासन स्थापित था। रामनगर, मंडला गोंडो की राजधानी थी। इन शासकों का साम्राज्य मध्य भारत से पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार तक विस्तृत था। गोंडवाना साम्राज्य की प्रसिद्ध रानी दुर्गावती गोंड जाति की ही थी। मध्य प्रदेश के इस वंश के शंकर शाह ने 1857 ई. की क्रांति में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था।
(a) महकलदेव
(b) राजा भोज
(c) मिहिर भोज
(d) कृष्णराज
व्याख्या: (b) मालवा के परमार वंश का 9वां शासक भोज (1000-1055 ई.) सर्वाधिक यशस्वी राजा था। इसकी राजधानी धार थी। राजा भोज वाक्पति मुंज के छोटे भाई सिंधुराज का पुत्र था। राजा भोज ने अपने प्रधानमंत्री रोहक मंत्री भुवनपाल तथा सेनापति कुलचंद्र साढ़ एवं तरादित्य की सहायता से बहुत से युद्ध किए और अपनी प्रतिष्ठा स्थापित की तथा भोज ने चंदेलों के देश पर भी आक्रमण किया था जहां विद्याधर नामक राजा राज करता था। भोज ने एक बार दाहल के कलचुरी गांगेयदेव के विरुद्ध भी आक्रमण किया था। परमार राजा भोज ने 'नवसाहसांक' अर्थात 'नव विक्रमादित्य' की उपाधि धारण की थी।
(a) योगाभ्यास
(b) चिकित्सा
(c) धनुर्विद्या
(d) संस्कृत अध्ययन
व्याख्या: (d) प्रतापी परमार शासक राजा भोज द्वारा 1034 ई. में मध्य प्रदेश के धार नगर में निर्मित सरस्वती सदन ही बाद में भोजशाला के नाम से विख्यात हुआ। भोजशाला संस्कृत अध्ययन का प्रमुख केन्द्र तथा सरस्वती का मंदिर था। जहां राजा भोज के शासन में ही मां सरस्वती या वाग्देवी की प्रतिमा स्थापित की गई। राजा भोज की भोजशाला में भवभूति, माघ, बाणभट्ट, कालिदास, मानतुंग, भास्करभट्ट, धनपाल, बौद्ध संत बन्स्वाल, समुन्द्र घोष आदि विश्व विख्यात आचार्यों के सानिध्य में लाखों विद्यार्थियों ने अलौकिक ज्ञान प्राप्त किया। 1305 ई. में इस्लामी आक्रान्ता अलाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला पर आक्रमण कर माँ वाग्देवी की प्रतिमा को खंडित कर दिया तथा 1200 आचार्यों की हत्या कर यज्ञ कुण्ड में डाल दिया। 1456 ई. में महमूद खिलजी ने इसी स्थान में मौलाना कमालुद्दीन के मकबरे और दरगाह का निर्माण करवाया। विशेष: वर्ष 1880 में ब्रिटिश मेजर किनकेड वाग्देवी की प्रतिमा को अपने साथ लंदन ले गया था, जो अब तक लंदन संग्रहालय में सुरक्षित है। वर्ष 1909 में धार रियासत द्वारा 'वर्ष 1904 के एशिएंट मोन्यूमेंट एक्ट को लागू कर धार दरबार के गजट जिल्द में भोजशाला को संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया। बाद में भोजशाला को पुरातत्व विभाग के अधीन कर दिया गया।
टिप्पणी: भोजशाला को विवादित कामिल मौला मस्जिद माना जाने लगा है, जिसको लेकर पिछले एक दशक में बसंत पंचमी के अवसर पर अक्सर धार जिले में सांप्रदायिक तनाव की स्थिति निर्मित होती है। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए हैं।
(a) राजा मानसिंह तोमर
(b) सम्राट अशोक
(c) राजा भोज
(d) राजा कीर्ति पाल
व्याख्या: (a) ग्वालियर के राजा मानसिंह तोमर (1486-1517 ई.) कुशल योद्धा एवं न्यायप्रिय शासक तथा ललित कला प्रेमी व स्थापत्य शैली के जानकार थे। इनके शासनकाल में ग्वालियर के इतिहास को 'स्वर्ण युग' कहा जाता है। राजा मानसिंह तोमर ने ग्वालियर के किले में मान मंदिर एवं गूजरी महल का निर्माण कराया था। राजा मानसिंह तोमर ध्रुपद संगीत के संरक्षक थे, उनके नाम पर ही, मध्य प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2008 में ग्वालियर में मानसिंह तोमर संगीत विश्वविद्यालय की स्थापना की गई।
(a) इंद्ररथ
(b) कीर्तिराज
(c) गांगेयदेव
(d) उपर्युक्त सभी
व्याख्या: (d) परमार वंश के सबसे प्रतापी शासक, राजा भोज ने उड़ीसा में महानदी के तट पर स्थित, आदिनगर के शासक इंद्ररथ को पराजित किया था। इसी क्रम में भोज ने दक्षिण गुजरात के शासक कीर्ति राज से युद्ध किया था। 1020 ई. में भोज ने शिलाहार काशी देव को पराजित कर, कोकण में विजय प्राप्त की थी। भोज की एक और अन्य विजय कलचुरी नरेश गांगेयदेव के विरुद्ध थी।
(a) मराठा
(b) सातवाहन
(c) शक
(d) राष्ट्रकूट
व्याख्या: (d) मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में शासन करने वाला परमार वंश पहले प्रतिहारों के अधीन था, किंतु 812 ई. के आस-पास राष्ट्रकूट नरेश गोविंद तृतीय ने प्रतिहार नरेश नागभट्ट द्वितीय से मालवा को जीतकर अपने सामंत उपेंद्र या कृष्ण राज को सिंहासन पर आसीन किया था। इस तरह से परमार परिवार को राष्ट्रकूट नरेश गोविंद तृतीय एवं दंती दुर्ग द्वारा स्थापित किया गया माना जाता है। हालांकि परमार राजवंश के संस्थापक उपेंद्र कृष्णराज थे।
(a) राजा भोज
(b) केशवदास
(c) पाणिनि
(d) परिमल
व्याख्या: (d) परमार वंशीय राजा सिंधुराज के दरबारी कवि पद्मगुप्त परिमल ने 'नवसाहसांकचरित' की रचना की। इस ग्रंथ में परिमल ने परमार वंश की उत्पत्ति के विषय में बताया है। इसके अनुसार ऋषि वशिष्ठ ने ऋषि विश्वामित्र के विरुद्ध युद्ध में सहायता प्राप्त करने के लिए आबू पर्वत पर यज्ञ किया। उस यज्ञ के अग्निकुंड से एक वीर पुरुष प्रकट हुआ, ये वीर पुरुष ऋषि वशिष्ठ को साथ देने का प्रण लिए थे, जिनके पूर्वज अग्निवंश के क्षत्रिय थे। इसी वीर पुरुष का नाम प्रमार रखा गया, जो इस वंश का संस्थापक हुआ और उसी के नाम पर वंश का नाम परमार हो गया।
(a) कृष्णराज
(b) शंकरगण
(c) बुधराज
(d) वामराज
व्याख्या: (a) महिष्मति के कल्चुरी वंश के संदर्भ में कल्चुरियों का उल्लेख मिलता है जो कीर्तिवीय अर्जुन के वंशज थे। इस राजवंश के वास्तविक संस्थापक कृष्णराज (550-575 ई.) को माना जाता है। महिष्मति के कल्चुरी वंश के अन्य प्रसिद्ध शासक शंकर गण तथा बुद्ध राज थे।
(a) उपेंद्र
(b) उदयादित्य
(c) भोज
(d) बैरसिंह द्वितीय
व्याख्या: (d) परमार वंश से संबंधित उदयपुर प्रशस्ति के अनुसार, बैरी सिंह द्वितीय (914-941 ई.) के शासनकाल में राजधानी अवंति से धार स्थानांतरित की गई। हलांकी धार को प्रसिद्धि नौवें शासक राजा भोज के शासनकाल में मिली। इस वंश के शासक उपेंद्र, वैरसिंह प्रथम, सीयक प्रथम, वाक्पति प्रथम एवं बैरसिंह द्वितीय थे।
टिप्पणी: हालांकि कुछ इतिहासकारों के अनुसार उज्जैन से धार राजधानी परिवर्तन, परमार वंश के शासक राजा भोज के शासनकाल में मानी जाती है।
(a) राष्ट्रकूट
(b) गुर्जर प्रतिहार
(c) चंदेल
(d) पांडू
व्याख्या: (a) बैतूल जिले के तिवारखेड़ प्रशस्ति में राष्ट्रकूट नरेशों, दुर्गराज, गोविंदराज, स्वामिक राज नन्नराज के मध्य प्रदेश के बैतूल क्षेत्र पर आधिपत्य स्थापित होने के प्रमाण मिले हैं। यह प्रशस्ति अचलपुर में जारी की गई थी। इन प्रशस्तियों की मुहर में गरुड़ की आकृति अंकित है। नन्नराज ने इस वंश का चिन्ह गरुड़ निर्धारित किया था।
(a) शहडोल
(b) उमरिया
(c) कटनी
(d) पन्ना
व्याख्या: (b) बांधवगढ़ का किला मध्य प्रदेश के उमरिया जिले में स्थित है। इस किले को रीवा के राजा विक्रमादित्य सिंह ने बनवाया था। यह किला "भाई का किला" नाम से भी प्रसिद्ध है। इस किले में क्षीरसागर कुंड, योगी की समाधी जैसी प्रसिद्ध इमारतें हैं। रीवा के राजा मार्तंड ने किले के ही पास सफेद शेर को पकड़ा था। उस शेर का नाम मोहन था।
टिप्पणी: इस किले का विवरण नारद पंचरत्न और शिवसहिंता पुराण में भी है। जिसके अनुसार किले का निर्माण भगवान श्रीराम ने लंका पर विजय पाने के बाद करवाया था। इस किले का निर्माण 2800 फीट ऊंचे पर्वत पर हुआ था।
(a) कंदरिया महादेव मंदिर
(b) चौसठ योगिनी मंदिर
(c) रामराजा मंदिर
(d) त्रिपुर सुंदरी मंदिर
व्याख्या: (b) चौंसठ योगिनी मंदिर मध्य प्रदेश के जबलपुर का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। संगमरमर की चट्टान के पास स्थित इस मंदिर में देवी दुर्गा को 64 अनुसंगिको की प्रतिमा है। मंदिरों की विशेषता यह है की इसके बीच में भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित है जो देवियों की प्रतिमा से घिरी हुई है। इस मंदिर का निर्माण 1000 ई. के आसपास कल्चुरी वंश के शासकों ने कराया था। इस मंदिर को गोलकी मठ भी कहा जाता है।
(a) दिलावर खां
(b) आदिलशाह
(c) अनूप खां
(d) महमूद खिलजी
व्याख्या: (a) दिलावर खां, दिल्ली सल्तनत के पतन के दौरान, मध्य भारत के मालवा प्रांत के गवर्नर थे। दिल्ली की अदालत में सेवा देने के बाद, उन्हें धार में राज्यपाल नियुक्त किया गया। नासिरुद्दीन द्वितीय के मालवा से जाने के बाद ही 1401 ई. में दिलावर या हुसैन ने मालवा में स्वतंत्र मुस्लिम राज्य की स्थापना की थी और अपनी राजधानी धार में स्थापित की। दिलावर खां का पुत्र होशंगशाह गोरी (अल्पखां) ने राजधानी मांडू (शादियाबाद) में स्थानांतरित की।
(a) शत्रुवाती
(b) हैहय राजा
(c) अहिल्याबाई
(d) कीर्तिवीर्य अर्जुन
व्याख्या: (b) महिष्मति नामक नगर की स्थापना नर्मदा नदी के किनारे हैहय वंश के राजा महिष्मत (महिएतम) ने की थी। महिष्मति प्राचीन भारत की नगरी थी, जिसका उल्लेख महाभारत तथा दीर्घनिकाय सहित अनेक ग्रंथों में हुआ है। अवंति महाजनपद के दक्षिणी भाग में यह सबसे महत्वपूर्ण नगरी थी। बाद में यह अनूप महाजनपद की राजधानी भी रही। यह नगरी वर्तमान समय के मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी के तट पर स्थित महेश्वर नाम से प्रसिद्ध है।
(a) कीर्तिपाल
(b) लोकपाल
(c) रामपाल
(d) दिनेशपाल
व्याख्या: (a) नौखंडा महल मध्य प्रदेश में अशोकनगर स्थित चंदेरी के किले में स्थित है। इस महल का निर्माण प्रतिहार राजा कीर्तिपाल ने 11वीं सदी में कराया था। यह किला मध्य प्रदेश के जिले अशोक नगर में बेतवा नदी के किनारे स्थित है।
(a) शुजायत खान
(b) बहादुर शाह
(c) बाज बहादुर
(d) कादिर शाह
व्याख्या: (c) मालवा के अंतिम सुल्तान बाज बहादुर (1556-1562 ई.) ने अपने साम्राज्य विस्तार के लिए, गोंड वंश की शासिका रानी दुर्गावती पर अनेक आक्रमण किए किंतु वह असफल रहा। इसके बाद संगीत एवं कला के प्रेमी बाज बहादुर ने अपनी प्रेयसी रूपमती के साथ मालवी गुजरी, मूप कल्याण, रागिनी, तोड़ीराग बाजखानी ख्याल आदि रागों की रचना की।
टिप्पणी: बाज बहादुर के राजा बनने के कुछ ही समय के बाद इसकी मुलाकात सारंगपुर क्षेत्र के फूलपुर ग्राम की ब्राम्हण कन्या, स्वरलहरी एवं गायन-वादन- कला में निपुण स्त्री रूपमती से हुई और रूपमती के इन गुणों ने बाज बहादुर को उसकी ओर आकर्षित कर दिया, क्योंकि बाज बहादुर स्वयं भी गायन-वादन कला का शौकीन था। बाज बहादुर एवं रूपमती के परिणय सूत्र में बंधने के बाद समूचे मालवा क्षेत्र में ललित कला एवं संगीत विद्या का ऐतिहासिक उन्नयन एवं अभूतपूर्व विकास हुआ। रूपमती द्वारा रचित अनेक गीत और पद्य, जनसाधारण में तब से प्रचलित है तथा अभी तक मालवा के कई भागों में लोकगीतों के रूप में गाए जाते हैं।
(a) होशंगाबाद
(b) हरदा
(c) सागर
(d) दमोह
व्याख्या: (b) मकड़ाई के किले का निर्माण मध्य प्रदेश के हरदा जिले में राजा मकरंद शाह ने पिंडारियों के हमलों से बचने के लिए कराया था। इस किले की प्रमुख इमारतों के रूप में चार द्वार भवन, राजपरिवार का निवास स्थान, बुज एवं विशाल की बावड़ी शामिल है।
(a) वीर सिंह बुंदेला
(b) भारतीचंद सिंह बुंदेला
(c) रूद्रप्रताप सिंह बुंदेला
(d) जुझार सिंह बुंदेला
व्याख्या: (c) ओरछा मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले (वर्तमान निवाड़ी) में बेतवा नदी के तट पर स्थित है। ओरछा की स्थापना 1501 ई. में रूद्रप्रताप सिंह बुंदेला ने की थी और ओरछा को अपनी राजधानी बनाया। जिसके चंपत राय तथा छत्रसाल प्रतापी राजा हुए। छत्रसाल को महाबली तथा बुंदेल केसरी के नाम से जाना जाता था। ओरछा अपने राज महल या रामराजा मंदिर, शीश महल, जहांगीर महल, राम मंदिर, उद्यान और मंडप आदि के लिए प्रसिद्ध है।
(a) वीरसिंह बुंदेला
(b) छत्रसाल
(c) रूद्रप्रताप बुंदेला
(d) सत्यवीर सिंह
व्याख्या: (a) मुगल बादशाह अकबर ने अपने नवरत्नों में से एक अबुल फजल को अपने पुत्र सलीम (जहांगीर) को काबू करने के लिए भेजा था, लेकिन सलीम ने 12 अगस्त, 1602 को वीरसिंह बुंदेला की मदद से उसकी हत्या करवा दी। इससे खुश होकर जहांगीर ने ओरछा की कमान वीर सिंह को सौंप दी थी।
विशेष: 14 जनवरी, 1551 में उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में जन्मे अबुल फ़जल ने अकबरनामा एवं आइने अकबरी जैसी प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की।
(a) सुजान सिंह बुंदेला
(b) इंद्रमणि बुंदेला
(c) यशवंत सिंह बुंदेला
(d) विक्रमादित्य सिंह बुंदेला
व्याख्या: (d) ओरछा रियासत के राजा विक्रमादित्य सिंह (1776-1817 ई.) ने मराठों के आतंक और लूटमारी से परेशान होकर राजधानी ओरछा से टेहरी (टीकमगढ़) स्थानांतरित की एवं समीप ही बांध ग्राम (बल्देवगढ़) में युद्ध सामग्री भंडारण हेतु प्राचीन बल्देव मंदिर के समीप दुर्ग का निर्माण कराया था। जो बल्देवगढ़ के किले के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस किले में युद्ध सामग्री के तौर पर रखी भुमानी शंकर तोप एवं गर्भगिरावनी तोप प्रसिद्ध थीं। गर्भगिरावनी तोप को 'बल्देवगढ़ की तोप" के नाम जाना जाता है। इतिहासकारों के अनुसार जब यह तोप युद्ध के समय चलती थी, तब इसके वेग से गर्भवती माताओं के गर्भ गिर जाते थे।
टिप्पणी: वर्ष 1972 में गर्भगिरावनी तोप से विशाल विस्फोट हुआ था जिसमें 17 व्यक्ति मारे गए थे। अतः इसकी सुरक्षा एवं ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए, यह तोप भोपाल म्यूजियम में पहुंचा दी गई है।
(a) 1236 ई.
(b) 1241 ई.
(c) 1238 ई.
(d) 1242 ई.
व्याख्या: (a) बघेल राज्य की स्थापना 1236 ई. में गुजरात से आए दो बघेल भाई बीसलदेव और भीमलदेव ने की थी। बाद में बीसलदेव अन्हिलवाड़ा चला गया जहां पर वह अपने पिता की मृत्यु के पश्चात उनके स्थान पर 1238 ई. में अन्हिलवाड़ा के सोलंकी राजा भीमदेव द्वितीय का प्रधानमंत्री बना।
(a) रामचंद्र देव
(b) वीर सिंह देव
(c) बल्लालदेव
(d) सहदेव
व्याख्या: (a) रामचंद्र देव (1555-1592 ई.) अपने पिता वीरभान की मृत्यु के पश्चात 1555 ई. में बघेल राज्य का शासक बना। उसने अपनी राजधानी बांधवगढ़ स्थानांतरित कर दी। रामचंद्र देव मुगल बादशाह अकबर का समकालीन था।
टिप्पणी: संगीत सम्राट तानसेन राजा रामचंद्र देव के दरबारी गायक थे जिनकी ख्याति सुनकर अकबर ने 1562 ई. में जलाल खां कोर्ची को राजा रामचंद्र देव के पास भेज कर तानसेन को अपने दरबार में बुला लिया था।
(a) भट्टारिका
(b) वत्सराज
(c) नागबल
(d) जयबल
व्याख्या: (d) रीवा रियासत के बम्हनी में प्राप्त ताम्रपत्र के अनुसार पांडव वंश का प्रथम शासक जयबल था। जयबल का पुत्र वत्सराज एवं वत्सराज पुत्र नागबल था। वत्सराज पांडु वंश के अभिलेख बूढ़ीखार, मल्हार, जो कि मल्हार से प्राप्त हुए हैं।
(a) वीर सिंह बुंदेला
(b) रूद्रप्रताप सिंह बुंदेला
(c) इंद्रमणि बुंदेला
(d) मलखान सिंह बुंदेला
व्याख्या: (a) जुझार सिंह, वीर सिंह बुंदेला के बड़े पुत्र थे, जो 1627 ई. में ओरछा के राजा बने। जहांगीर ने जुझार सिंह को राजा की उपाधि से सम्मानित किया। किंतु कुछ समय पश्चात अशुद्ध कस्लेखा की शाहजहां द्वारा जाँच किए जाने में यह भाग कर महावत खां की शरण में जाकर क्षमा याचना की, जो बादशाही सेना के एक भाग का नेतृत्व कर रहा था। महावत खां इन्हें शाहजहां के दरबार में ले आया। शाहजहां ने इन्हें क्षमा तो कर दिया किन्तु चौरागढ़ दुर्ग पर आक्रमण कर उसे जीत लिया। जुझार सिंह पुत्र विक्रमाजीत सिंह के साथ जंगलों में छिपे रहे। 1644 ई. में देवगढ़ के गोंडों ने इन दोनों की हत्या कर दी।
(a) लक्ष्मीकर्ण
(b) कर्णदेव
(c) अक्षय वट
(d) प्रबोध चंद्रोदय
व्याख्या: (b) त्रिपुरी के कल्चुरी वंश का सबसे प्रतापी शासक कर्णदेव (1041-1072 ई.) था। कर्णदेव ने साम्राज्य विस्तार के लिए लगातार अभियान किए एवं दक्षिण के चोल, मालवा के शासक राजाभोज, चंदेल राजा कीर्तिवर्मन एवं पश्चिम बंगाल के शासक को पराजित किया। इन लगातार उपलब्धियों के कारण उसे हिंद का नेपोलियन कहा जाता है।
विशेष: अमरकंटक के मंदिर का निर्माण कर्णदेव द्वारा करवाया गया था।
(a) हरिश्चंद्र
(b) नागभट्ट प्रथम
(c) देवराज
(d) उपर्युक्त सभी
व्याख्या: (d) मालवा के गुर्जर प्रतिहार वंश के संस्थापक हरिश्चंद्र के पुत्र, नागभट प्रथम थे। जिन्होंने 725 ई. के लगभग मालवा उज्जैन के समीप गुर्जर प्रतिहार वंश की स्थापना की। नागभट प्रथम के बाद उसके पुत्र कुक्कुस्थ और देवराज गद्दी पर बैठे तत्पश्चात देवराज का पुत्र वत्सराज शासक बना।
(a) सियक द्वितीय
(b) नरेश गोविंद
(c) नागभट्ट द्वितीय
(d) वाकपति मुंज
व्याख्या: (d) परमार वंश के प्रतापी शासक वाकपति मुंज (973-998 ई.) एक महान योद्धा, विद्वान एवं सुयोग्य शासक था। मुंज ने महेश्वर, उज्जैन, ओकारेश्वर और धर्मपुरी में मंदिरों का निर्माण कराया था। उसने धार में प्रसिद्ध मुंज सागर झील का निर्माण कराया। वाकपति मुंज के शासनकाल से मालवा के स्वर्ण युग का आरंभ माना जाता है।
(a) उज्जैन
(b) मुरैना
(c) खजुराहो
(d) रतलाम
व्याख्या: (b) बटेश्वर हिंदू मंदिर, मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में गुर्जर राजाओं के द्वारा बलुआ पत्थर से निर्मित हिंदू मंदिर है, ये मंदिर समूह उत्तर भारतीय मंदिर वास्तुकला की शुरुआती गुर्जर प्रतिहार शैली के मंदिर समूह हैं। यह ग्वालियर के उत्तर में लगभग 35 किमी. और मुरैना शहर से लगभग 30 किमी. दूर स्थित हैं। ये मंदिर शिव, विष्णु और शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं।
टिप्पणी: इन मंदिरों को 1882 ई. में अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा खोज किया गया। बटेश्वर समूह मंदिर को वर्ष 1920 में एक संरक्षित स्थल के रूप में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा नामांकित किया गया था। वर्ष 2005 में भारतीय पुरातत्व विभाग के भोपाल क्षेत्र के अधीक्षक पुरातत्वविद् के. के. मोहम्मद के नेतृत्व में, 60 मंदिरों को पुनर्निमाण हेतु चिंहित किया गया था।
(a) गोंड
(b) चंबेल
(c) मौर्य
(d) कल्चुरी
व्याख्या: (a) मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में सतपुड़ा पर्वतीय श्रृंखलाओं की गोद में स्थित गोंड़ों का धार्मिक और ऐतिहासिक लांजीगढ़ किला बालाघाट गोंदिया मार्ग के रजेगांव ग्राम से पूर्व की ओर 30 किमी. की दूरी पर है। लांजीगढ़ के समीप ही प्राचीन कोटेश्वर महादेव का देवालय है, जो काले पत्थरों को तराश कर बनाया गया है उसकी शिल्पकला भैरमगढ़, देवगढ़ शैली की है। लांजीगढ़ में प्रतिवर्ष चैत्र पूर्णिमा में मेला लगता है इस तरह लांजीगढ़ गोंडा का ऐतिहासिक नहीं बल्कि धार्मिक तीर्थ भी है।
(a) इटारसी
(b) महू
(c) बुरहानपुर
(d) पन्ना
व्याख्या: (c) मुगल शासक शाहजहां विशेष रूप से आगरा के ताजमहल निर्माण के लिए प्रसिद्ध है और ताज महल का निर्माण शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल की याद में कराया था। वास्तव में मुमताज महल का जन्म तो आगरा में हुआ था लेकिन मृत्यु 17 जून, 1631 ई. में मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में हुई थी। मुमताज का असली नाम आरजूमंद बानू था।
टिप्पणी: मुमताज की मृत्यु अपनी 14वीं संतान की प्रसूति के दौरान बुरहानपुर में हुई थी। ताजमहल के बनने तक मुमताज का शव छह माह तक बुरहानपुर में ताप्ती नदी किनारे एक कब्र में दफनाकर रखा गया था। ताजमहल निर्माण के बाद इनकी कब्र बुरहानपुर से आगरा स्थांनानतरित की गई।
(a) विदिशा
(b) उज्जयिनी
(c) सांची
(d) महेश्वर
व्याख्या: (b) चंद्रगुप्त द्वितीय, गुप्त वंश के एक महान शक्तिशाली सम्राट थे। गुप्त साम्राज्य का यह समय प्राचीन भारत का स्वर्ण युग भी कहा जाता है। चंद्रगुप्त द्वितीय ने अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह वाकाटक नरेश रूद्रसेन से किया। रूद्रसेन की मृत्यु के बाद चंद्रगुप्त ने अप्रत्यक्ष रूप से वाकाटक राज्य को अपने राज्य में मिलाकर उज्जैन को अपनी दूसरी राजधानी बनाया, जबकि उसकी प्रारंभिक राजधानी पाटलिपुत्र थी।
(a) धार
(b) सिंगरौली
(c) छिंदवाड़ा
(d) विदिशा
व्याख्या: (d) मौर्य सम्राट अशोक (269-232 ई. पू.) एक प्रसिद्ध शक्तिशाली शासक था। सिंहली अनुकृतियों के अनुसार अशोक की पत्नी का नाम देवी था जो वर्तमान मध्य प्रदेश के विदिशा के एक धनी व्यापारी की पुत्री थी। अशोक ने देवी से तब विवाह किया जब वह उज्जैन में प्रांतपाल के पद में था।
(a) नर्मदा
(b) ताप्ती
(c) चंबल
(d) सोन
व्याख्या: (b) निमाड़ के फारूखी राजवंश के संस्थापक मलिक रजा की मृत्यु के बाद उसका पुत्र मलिक नासिर गद्दी पर बैठा और असीरगढ़ को अपनी राजधानी बनाया। मलिक नासिर ने अपने धर्म गुरु संत जैनुद्दीन की सलाह पर ताप्ती नदी के दोनों तटों पर जैनाबाद और बुरहानपुर नगर की स्थापना की। ताप्ती नदी का उद्गम मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के निकट मुलताई की पहाड़ियां से होता है।
(a) शाहजहाँ
(b) औरंगजेब
(c) जहाँगीर
(d) हुमायूँ
व्याख्या: (b) बुरहानपुर से 4 मील की दूरी पर ताप्ती नदी के किनारे "राजा की छतरी" नामक एक उल्लेखनीय स्मारक है। ऐसा कहा गया है, कि मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश से राजा जयसिंह के सम्मान में इस छतरी का निर्माण हुआ था। दक्कन में, राजा जयसिंह मुगलसेना के सेनापति थे। दक्खन अभियान से लौटते समय बुरहानपुर में राजा जयसिंह की मृत्यु हो गई थी। कुछ इतिहासकारों के अनुसार इस स्थान पर उनका दाह संस्कार किया गया था।
(a) वर्ष 1945
(b) वर्ष 1948
(c) वर्ष 1946
(d) वर्ष 1949
व्याख्या: (d) 14 जनवरी, 1949 को मकर संक्रांति के दिन रायसेन के समीप बोरास गांव में नर्मदा नदी के तट पर तिरंगा फहराने के कारण नवाब की सेना के अधिकारी जाफर अली खान और स्थानीय लोगों के मध्य संघर्ष हुआ। इस संघर्ष में बैजनाथ गुप्ता, मंगल सिंह, विशाल सिंह, छोटेलाल आदि देशभक्तों की गोली मारकर हत्या कर दी गई, इस कांड को भोपाल का जलियांवाला बाग कांड कहा जाता है।
(a) हृदय शाह
(b) दलपत शाह
(c) वीरनारायण
(d) आम्हणदास
व्याख्या: (d) गढ़ा राज्य के महानतम शासक आम्हणदास (1510-1513 ई.) ने संग्रामशाह की पदवी धारण की थी। रामनगर शिलालेख के अनुसार संग्रामशाह के अधिकार में 52 गढ़ थे संग्रामशाह की 'मृत्यु' पश्चात 1543 ई. में उसका ज्येष्ठ पुत्र दलपत शाह सिंहासन पर बैठा।
(a) 1601 ई.
(b) 1602 ई.
(c) 1603 ई.
(d) 1604
व्याख्या: (a) असीरगढ़ का ऐतिहासिक किला बहुत प्रसिद्ध है। असीरगढ़ का किला बुरहानपुर से लगभग 20 किमी. की दूरी पर उत्तर दिशा में सतपुड़ा पहाड़ियों के शिखर पर समुद्र सतह से 250 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। आदिलशाह फारूकी के देहांत के बाद असीरगढ़ का किला बहादुरशाह के अधिकार में आ गया था। सम्राट अकबर असीरगढ़ की प्रसिद्धि सुनकर इस किले पर अपना अधिपत्य स्थापित करने हेतु प्रयासरत था। निर्णायक रूप से अकबर ने 17 जनवरी, 1601 को असीरगढ़ के किले पर विजय प्राप्त कर ली और किले पर मुगल शासन का ध्वज फहराने लगा। इसके बाद अकबर की सेना ने बहादुरशाह के पुत्रों को बंदी बना लिया।
विशेष: इतिहासकारों ने असीरगढ़ के किले को "दक्षिण का द्वार और दक्षिण की कुंजी" की संज्ञा दी है, क्योंकि इस किले पर विजय प्राप्त करने के पश्चात दक्षिण का द्वार खुल जाता था और विजेता का संपूर्ण खानदेश क्षेत्र पर आधिपत्य स्थापित हो जाता था।
(a) टोडरमल
(b) अब्दुल रहीम खानखाना
(c) अबुल फजल
(d) मानसिंह
व्याख्या: (b) शुद्ध जल प्रदाय करने की दृष्टि से मुगल शासकों ने आठ जल प्रदाय प्रणालियों का निर्माण करवाया था। ये निर्माण कला के अद्वितीय नमूने हैं। खूनी भंडारा या कुंडी भंडारा का निर्माण मुगल बादशाह अकबर के शासन काल में अब्दुलरहीम खानखाना द्वारा करवाया गया था। सतपुड़ा की पहाड़ियों से ताप्ती नदी की ओर बहने वाले भूमिगत स्रोतों को तीन स्थानों पर रोका गया है, इन्हें मूल भंडारा, सूखा भंडारा और चिंताहरण जलाशय कहा जाता है।
विशेष: 1890 ई. में खूनी भंडारा और सूखा भंडारा से पानी ले जाने वाले पाइपों के स्थान पर ढलवां लोहे की पाइप लाइन डाली गई। वर्ष 1922 से जल पूर्ति के स्रोत का प्रबंध नगरपालिका बुरहानपुर के पास आ गया।
(a) शेखर देव
(b) मानसिंह
(c) कीर्तिसिंह
(d) मानसिंह
व्याख्या: (b) तोमर राजवंश के ग्वालियर साम्राज्य के यशस्वी व प्रतापी महाराजा मान सिंह तोमर महान साहित्यकार थे। उन्होंने अनेक दोहों, चौपाईयों, कविताओं एवं अनेक छंदों की रचना की। विश्व प्रसिद्ध ग्रंथ मान कुतुहाल ग्रंथ की रचना मानसिंह तोमर ने 1516 ई. में की थी। मान कुतूहल ग्रंथ में ध्रुपद संगीत शैली पर प्रकाश डाला गया है। इस ग्रंथ में अनेक रागों को लिपिबद्ध करके लिखा गया है। महाराजा मान सिंह तोमर के दरबार में प्रसिद्ध साहित्यकार व संगीतकार बक्शु, महमूद लोहंग, नायक पांडेय, देवचंद्र, रतनरंग, मानिक कवि थेघनाथ सूरदास (बचपन काल में), गोविंददास, नाभादास, हरिदास, कर्ण, नायक गोपाल भगवंत रामदास आदि थे।
विशेष: फकीरुल्लाह ने मान कौतूहल का फारसी अनुवाद "राग दर्पण" नाम से करके औरंगजेब को अर्पित किया। महाराजा मान सिंह तोमर के ही एक महा आमात्य खेमशाह ने प्रसिद्ध ग्रंथ "बेताल पच्चीसी" की रचना मानिक कवि से कराई। मानसिंह ने ग्वालियर के किले में मान मंदिर तथा गूजरी महल का निर्माण कराया, साथ ही इनके द्वारा सिंचाई हेतु अनेक झीलों का निर्माण भी करवाया गया था।
(a) जबलपुर
(b) सागर
(c) सतना
(d) रीवा
व्याख्या: (c) 19 जुलाई, 1938 को सतना जिले के बिरसिंहपुर के समीप हिनौता गांव में ब्रिटिश शासन की सोहावल रियासत में अंग्रेज शासन के विरोध में लाल बुद्ध प्रताप सिंह के नेतृत्व में एक आम सभा आयोजित की जा रही थी। इस सभा में सम्मिलित होने जा रहे रामाश्रय गौतम, मंधीर पांडेय, लालबुद्ध प्रताप सिंह की, माजन गांव के समीप ब्रिटिश सैनिकों द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस हत्याकांड को सोहावल का नरसंहार अथवा माजन गोलीकांड के नाम से जाना जाता है।
टिप्पणी: सोहावल रियासत ब्रिटिश राज के बघेलखंड एजेंसी की रियासत थी।
(a) सीहोर
(b) राजगढ़
(c) नरसिंहगढ़
(d) बैरसिया
व्याख्या: (c) कुंवर चैन सिंह मध्य प्रदेश के नरसिंहगढ़ के राजकुमार थे। जिन्हें स्वतंत्रता समर का प्रथम शहीद माना जाता है। वर्ष 1824 में कुंवर चैन सिंह, अंग्रेजों के साथ युद्ध करते हुए सीहोर के दशहरा बाग के मैदान में अपने दो अंगरक्षक, हिम्मत खान एवं बहादुर खान सहित शहीद हो गए। मृत्यु स्थल दशहरा बाग (सीहोर) पर ही इन वीर सपूतों की छत्री स्मारक के रूप में निर्मित की गई है।
(a) त्रिभुवन तिवारी
(b) भैरव प्रसाद उरमलिया
(c) (a) एवं (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
व्याख्या: (c) 28 फरवरी 1947 को रीवा राज्य के जबरिया लेबही वसूली के विरोध में भैरव प्रसाद उरमलिया एवं त्रिभुवन तिवारी को रीवा राज्य के सैनिकों द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस कांड को रीवा का चावल आंदोलन कहा जाता है।
(a) 1737 ई.
(b) 1738 ई.
(c) 1739
(d) 1740 ई.
व्याख्या: (a) पेशवा बाजीराव एवं हैदराबाद के निजाम के मध्य 1737 ई. के भोपाल युद्ध में पेशवा ने निजाम को परास्त किया था। युद्ध के उपरांत दोनों में दौरासराय की संधि हुई थी। संधि तहत निजाम ने नर्मदा चंबल क्षेत्र के बीच के सारे क्षेत्र पर मराठों का आधिपत्य स्वीकार कर लिया था, हालांकि अंग्रेजों ने मराठों के साथ पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे युद्ध में क्रमश: पेशवा, होल्कर, सिंधिया और भोसले को परास्त करके ब्रिटिश सत्ता स्थापित कर ली।
(a) धार
(b) खंडवा
(c) मुरैना
(d) इंदौर
व्याख्या: (d) मध्य प्रदेश के धार जिले के अमझेरा के राजा बख्तावर सिंह, मालवा के पहले शासक थे जिन्होंने अंग्रेजी शासन विरुद्ध खुली लड़ाई छेड़ी। किंतु बख्तावर सिंह को अपने विश्वसनीय सहयोगियों के विश्वासघात के कारण 11 नवंबर, 1857 को धार जिले से 10 किमी. की दूरी में लालगढ़ किले के पास गिरफ्तार किया गया एवं 10 फरवरी, 1858 को इंदौर में फांसी दी गई।
(a) 1350-1360 ई.
(b) 1398-1505 ई.
(c) 1360-1398 ई.
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
व्याख्या: (b) ग्वालियर दुर्ग ग्वालियर शहर का प्रमुखतम स्मारक है। यह किला 'गोपाचल' नामक पर्वत पर स्थित है। 727 ई. में सूरजसेन नामक एक स्थानीय सरदार ने लाल बलुए पत्थर से इस किले का निर्माण प्रारंभ किया। इस किले में मध्यकालीन स्थापत्य के अद्भुत नमूने स्थित हैं। 15वीं शताब्दी में इस किले में निर्मित गूजरी महल राजा मानसिंह और रानी मृगनयनी के गहन प्रेम का प्रतीक है। 1398 से 1505 ई. तक इस किले पर तोमर वंश का राज रहा। टिप्पणी किले की स्थापना के बाद करीब 989 ई. तक इस पर पाल वंश का अधिकार था। इसके बाद प्रतिहार वंश ने राज किया। 1023 ई. में महमूद गजनवी ने इस किले पर आक्रमण किया लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा। 1196 ई. में लंबी घेराबंदी के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने इस किले को अपने अधीन किया लेकिन 1211 ई. में उसे हार का सामना करना पड़ा। 1231 ई. में गुलाम वंश के इल्तुतमिश ने इसे अपने अधीन कर लिया।
(a) कीरत सिंह
(b) गंड
(c) यशोवर्मन
(d) हर्ष
व्याख्या: (a) चंदेल शासकों द्वारा बनवाया गया कालिंजर अजयगढ़ का किला, चंदेलों की शक्ति का केंद्र रहा है। पहाड़ी पर बने इस किले के मुख्य द्वार तक पहुंचने के लिए खड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। किले के बीचों-बीच अजय पलका नामक झील है। झील के आस-पास प्राचीन कालीन मंदिर हैं। किले की प्रमुख विशेषता है कि ऐसे तीन मंदिर हैं, जिन्हें अंकगणितीय विधि से सजाया गया है। शेरशाह सूरी ने कालिंजर के किले पर आक्रमण किया जो उस समय राजा कीरत सिंह के अधिकार में था। इसी समय 'उक्का' नाम की तोप चल ही रही थी कि तभी एक गोला आकर पास पड़े बारूद के ढेर पर जा गिरा और विस्फोट के कारण शेरशाह सूरी की मृत्यु हो गई। शेरशाह को सासाराम, बिहार में दफनाया गया जहां शेरशाह का मकबरा बनवाया गया, यह मकबरा मध्यकालीन कला का एक उत्कृष्ट नमूना है। महमूद गजनवी द्वारा भी इस किले पर आक्रमण का उल्लेख मिलता है। इसने सतयुग में कीर्तिनगर, त्रेतायुग में मध्यगढ़, द्वापर युग में सिंहलगढ़ और कलियुग में कालिंजर के नाम से ख्याति पाई है। कालिंजर का अपराजेय किला प्राचीन काल में जेजाकभुक्ति साम्राज्य के अधीन था। जब चंदेल शासक आए तो इस पर मुगल शासक महमूद गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक और हुमायूं ने आक्रमण कर इसे जीतना चाहा। परंतु कामयाब नहीं हो पाए। अंत में अकबर ने 1569 ई. में यह किला जीतकर बीरबल को उपहार स्वरूप दे दिया। बीरबल के बाद यह किला बुंदेल राजा छत्रसाल के अधीन हो गया। इनके बाद किले पर पन्ना के हरदेव शाह का कब्जा हो गया। 1812 ई. में यह किला अंग्रेजों के अधीन हो गया। यहां के मुख्य आकर्षणों में नीलकंठ मंदिर है। इसे चंदेल शासक परमादित्य देव ने बनवाया था। इस दुर्ग के निर्माण के नाम का ठीक-ठीक साक्ष्य कहीं नहीं मिलता पर जनश्रुति के मुताबिक चंदेल वंश के संस्थापक चंद्र वर्मा द्वारा इसका निर्माण कराया गया। किंतु इतिहासकारों के मुताबिक इस दुर्ग का निर्माण केदार बर्मन द्वारा ई. की दूसरी से सातवीं शताब्दी के मध्य कराया गया था। कुछ इतिहासकारों का मत है कि इसके द्वारों का निर्माण मुगल शासक औरंगजेब ने करवाया था।
टिप्पणी: चंदेलवंश का वास्तविक संस्थापक नन्नुक था।
(a) भाबरा
(b) काबरा
(c) हरदा
(d) पिथौरा
व्याख्या: (a) चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को वर्तमान अलीराजपुर जिले के भाबरा गांव (चंद्रशेखर आजाद नगर) में हुआ था। इन के बचपन का नाम पंडित हरिशंकर ब्रह्मचारी था। इस प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी को गिरफ्तार करने के लिए, जब पुलिस अति सक्रिय हो गई तो चंद्रशेखर आजाद, ओरछा राज्य में सतार नदी के किनारे एक कुटिया 'बनाकर ब्रह्मचारी के रूप में रहने लगे और इस भूमिगत अवस्था में वह स्वयं को सुरक्षित करने में सफल रहे। वर्ष 1925 से वर्ष 1927 तक झांसी और ओरछा के बीच ग्राम भीमपुरा के नजदीक सतार नदी के किनारे पंडित हरिशंकर ब्रह्मचारी के नाम से क्रांतिकारी गतिविधियों का संचालन किया। जब यह गिरफ्तार हुए तो इन्होंने अपना नाम 'आजाद' अपने पिता का नाम "स्वाधीन" और अपना घर 'जेलखाना" बताया। 27 फरवरी, 1931 को चंद्रशेखर आजाद इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में पुलिस से मुठभेड़ करते वक्त अपनी बंदूक की आखिरी गोली स्वयं को मारकर आत्महत्या करते हुए शहीद हो गए।
(a) शाहजहां
(b) जहांगीर
(c) अकबर
(d) औरंगजेब
व्याख्या: (c) 1561 ई. में अदम खान और पीर मोहम्मद खान के नेतृत्व वाली अकबर की सेना ने मालवा पर हमला किया और 29 मार्च, 1561 को सारंगपुर की लड़ाई में बाज बहादुर को हराया किंतु बाज बहादुर इस आक्रमण में अपनी जान बचाने में सफल रहा। 1562 में, अकबर ने अब्दुल्ला खान के नेतृत्व में एक और सैन्य दल को भेजा, जिसने अंततः बाज बहादुर को हराया। हालांकि 1568 ई. में मांडू की तत्कालीन राजधानी सारंगपुर में अकबर ने एक मकबरे का निर्माण कराया, जिसमें बाज बहादुर एवं रानी रूपमती की समाधि साथ-साथ है।
(a) शैव
(b) जैन
(c) वैष्णव
(d) उपर्युक्त सभी
व्याख्या: (d) शैव, वैष्णव और जैन धर्म के मंदिरों का समूह विश्व के सबसे प्रसिद्ध और ऐतिहासिक विरासतों में से एक है। उत्तर भारत में स्थापत्य की नागर शैली से निर्मित ये मंदिर मुख्य तौर पर अपनी वास्तु विशेषज्ञता, बारीक नक्काशियों और कामुक मूर्तियों के लिए पहचान रखते है। यूनेस्को द्वारा वर्ष 1986 से वैश्विक धरोहर की सूची में भी शामिल है।
(a) होल्कर
(b) सिंधिया
(c) परमार
(d) राजपूत
व्याख्या: (a) 21 दिसम्बर 1817 में होलकर सेना तथा अंग्रेजी की ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच माहिदपुर में घमासान युद्ध हुआ था। इसमें होलकर सेना का नेतृत्व महज 11 वर्षीय महाराजा मल्हार राव, 22 वर्षीय हरिराव होलकर और 20 वर्षीय भीमाबाई होलकर ने किया था। युद्ध में पराजय के बाद भी कई दिनों तक भीमा बाई ने अद्वितीय साहस के साथ घुड़सवार सैनिकों को लेकर अंग्रेजों पर कई बार छापे मारे। भारत की प्रथम महिला के रूप में युद्ध क्षेत्र में अंग्रेजों से लोहा लेने वाली वह पहली महिला कहलाती हैं। युद्ध के बाद 6 जनवरी 1818 में मंदसौर संधि हुई। इस्ट इंडिया कंपनी की ओर से ब्रिगेडियर जॉन मॉल्कम व होलकरों की ओर से तात्या जोग ने संधि पर हस्ताक्षर किए।
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